कोरोना से या हुई हो अकाल मौत, मृतात्मा की शांति के लिए गया में करें नारायण बलि श्राद्ध, जानें- खास बातें
कोरोनावायरस के संक्रमण से हुई मौत अकाल मौत है जिसके लिए मोक्षभूमि गया में विशेष श्राद्ध की परंपरा है। अकाल मौत के मामलों में मृतात्मा की शांति के लिए वहां नारायण बलि श्राद्ध किया जाता है। इससे जुड़ीं खास बातें जानिए इस खबर में।
गया, कमल नयन। कोरोनावायरस के संक्रमण की दूसरी लहर में बिहार में हजारों लोग असमय काल के गाल में समा गए। यही हाल देश-दुनिया का भी है। इसके पहले की लहर में भी हजारों जानें चली गईं थीं। जब भी मृतात्मा की शांति के लिए कर्मकांड की भी बात आती है, मोक्षभूमि गयाजी का ध्यान बरबस आ जाता है। यहां पितरों को पिंडदान व तर्पण कर तृप्त किया जाता है। गया में हर साल लगने वाला पितृपक्ष मेला खासकर पितरों के तृप्त करने का मेला होता है। गयाजी में अकाल मौत के मामलों में सामान्य श्राद्ध से कुछ अलग नारायण बलि श्राद्ध का विधान है। गयाजी के तीर्थ पुरोहित कोरोनावायरस संक्रमण से मौत को स्वभाविक मृत्यु नहीं मानते, इसलिए नारायण श्राद्ध पर बल दे रहे हैं। इन दिनों लॉकडाउन कह बंदिशों के कारण गया आकर श्राद्ध करने में परेशानी हो तो आप लॉकडाउन के बाद भी यह कर्मकांड कर सकते हैं।
असामयिक मौत पर नारायण बलि श्राद्ध का इंतजाम
मोक्षधाम गयाजी में पितृ की तृप्ति या असामयिक मौत पर उनकी सदगति के लिए कर्मकांड का विधान है। यह विधान श्राद्ध और पिंडदान से जुड़ा है, जिसे नारायण बलि श्राद्ध के रूप में जाना जाता है। यह श्राद्ध मृत आत्मा की शांति के लिए उनके स्वजन द्वारा करने का विधान है। यह माना जाता है कि असमय मृत्यु के बाद ही वे शांति पूर्वक रहें और अपने परिवारजनों को सुख-शांति बनाए रखें।
फल्गु तट पर विष्णुपद में है नारायण का चरण चिह्न
वैसे तो गयाजी में श्राद्ध के लिए अनेकों स्थान हैं जहां लोग जा-जाकर कर्मकांड करते हैं, परंतु विशेष नारायण बलि श्राद्ध का मुख्य स्थल गयाजी का फल्गु तट पर स्थित विष्णुपद है। वहां नारायण (भगवान श्री विष्णु) का चरण चिह्न अवस्थित है। इन्हीं के समक्ष नारायण बलि श्राद्ध करने की मान्यता है। इसके अतिरिक्त धर्मारण्य और प्रेतशिला में यह भी श्राद्ध संपन्न कराया जाता है। इस श्राद्ध के कर्मकांड में लगभग छह से सात घंटे का समय लगता है।
लॉकडाउन के बाद आराम से कर सकते हैं कर्मकांड
नारायण बलि श्राद्ध करने के लिए कोई समय और तिथि की निश्चितता नहीं बताई जाती है। चूंकि गयाजी एक स्वतंत्र तीर्थस्थल है, इसलिए यह श्राद्ध किसी दिन भी हो सकता है। वैसे एक मान्यता यह भी है कि मृत्यु के 11वें दिन भी नारायण बलि श्राद्ध किया जाता है। इन दिनों लॉकडाउन की बंदिशों के कारण आप इस श्राद्ध को करने के लिए इंतजार कर सकते हैं। आप लॉकडाउन के बाद आराम से इस कर्मकांड को कर सकते हैं।
स्वभाविक नहीं है कोरानावायरस संक्रमण से मौत
गयाजी के तीर्थ पुरोहित पीतल किवाड़वाले पंडाजी महेश लाल गुपुत कहते हैं कि कोरोना काल में संक्रमण के प्रभाव में आने से मृत्यु हुई है। इसलिए यह स्वभाविक मृत्यु नहीं है। नारायण बलि श्राद्ध इसी अस्वभाविक मृत्यु के लिए धर्मग्रंथों में वर्णित है। इसमें कर्ता मृत आत्मा की शांति के लिए विष्णुपद में नारायण के समर्पित श्राद्ध करता है। जिससे मृत आत्मा को सदगति की प्राप्ति होती है।
सामान्य श्राद्ध से कुछ अलग है नारायण बलि श्राद्ध
मोक्षधाम गयाजी में श्राद्ध कराने के लिए कोई विशेष व्यवस्था की जरूरत नहीं है। नारायण बलि श्राद्ध सामान्य श्राद्ध से कुछ अलग हटकर है। कर्मकांड के दौरान छह कलश की स्थापना की जाती है और 16 पिंडदान किए जाते हैं।मृत आत्मा को स्मरण करके श्रद्धा के साथ श्राद्ध किया जाता है।