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    टिकारी राज का वैभवशाली गौरवपूर्ण व स्वर्णिम इतिहास कालचक्र में विस्मृत होता नजर आ रहा

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 25 Sep 2019 06:48 PM (IST)

    पेज- 6 फोटो 44 45 टिकारी राज के गौरवशाली अतीत की आज भी याद दिलाती है किला स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट नमूना है किला लखौरी ईंट से पांच तलों में निर्मित राजमहल शान शौकत की दिलाती है याद संवाद सहयोगी टिकारी

    टिकारी राज का वैभवशाली गौरवपूर्ण व स्वर्णिम इतिहास कालचक्र में विस्मृत होता नजर आ रहा

    गया। स्वतंत्रता के पूर्व राजतंत्र के सूबों में विभाजित और प्रशासनिक विकेंद्रीकरण के अंतर्गत एक शक्तिशाली केंद्र के रूप में टिकारी राज रहा है। इसकी आधार श्रृंखला का जीता जागता नमूना इस राजमहल का ऐतिहासिक खंडहर है। जो अतीत और वर्तमान के बीच उपजी कई चीजों को दर्शा रहा है। टिकारी राज का वैभवशाली गौरवपूर्ण स्वर्णिम इतिहास भी कालचक्र में विस्मृत होता नजर आ रहा है।

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    टिकारी राज के वास्तविक संस्थापक लाव गाव में जन्मे सुंदर सिंह थे। सुंदर शाह के नाम से विख्यात इस राजा ने टिकारी राज का विस्तार नौ परगनों में किया था। बुनियाद सिंह, अमरिजीत सिंह, हित नारायण सिंह, मोदनारायन सिंह, महाराजा कैप्टन गोपाल शरण सिंह आदि टिकारी राज के प्रमुख राजा महाराजा थे। जबकि इंद्रजीत कुअंर, राजरूप कुअंर, रामेश्वरी कुअंर टिकारी राज की प्रतापी महारानी हुईं। महारानी राजरूप कुअंर धर्मपरायण, विद्या अनुरागी एवं उदार हृदय वाली यशस्वी महिला थीं। उन्होंने धार्मिक शैक्षणिक एवं कई जनउपयोगी कार्य कर टिकारी राज का उज्जवल कृतिमान स्थापित कीं।

    टिकारी राज के इतिहास में महाराजा गोपाल शरण सिंह अंतिम प्रसिद्ध एवं प्रतापी राजा हुए। प्रजा उन्हें भगवान समझती थी। अंग्रेजी सरकार ने उन्हें कैप्टन की उपाधि से सम्मानित किया था। जमींदारी प्रथा खत्म होने तक वे टिकारी राज के महाराजा रहे। लगभग 150 वषरें के इतिहास में टिकारी राज ने कई उतार चढ़ाव देखे, लेकिन राजाओं द्वारा निर्मित किला जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। फिर भी उस राज के गौरवशाली अतीत की आज भी याद दिलाती है। टिकारी राज का किला स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। एक ऊंचे टीले पर लखौरी ईंट से लगभग पांच तलों में निर्मित राजमहल शान शौकत की याद दिलाती है। इसके राजमहल, राज प्रसाद, भूमिगत महल, सामरिक मैदान, बामन आगन का महल, भूल भूलैया, भूमिगत सुरंग, सुरक्षात्मक खाइया, रंग महल, अतिथिशाला, श्रृंगार घर, नाच घर, रहस्यमयी तालाब, चौड़ी और ऊंची चहारदीवारी, सिंह द्वार, बाघों का पिंजरा आदि हाल के दिनों तक लोगों के लिए दर्शनीय बना रहा है। टिकारी राज द्वारा 1876 में बना राज स्कूल और 1885 में स्थापित टिकारी नगर पालिका टिकारी राज के धरोहर के रूप में आज भी विद्यमान है।

    ऐतिहासिक किला को बचाने और इसे सुरक्षित स्थल घोषित करने के साथ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दशकों से संघर्ष जारी है, लेकिन किला की जमीन पर हकदारी जताने और भूमि को बेचने की बीच जंग चल रही है। इसके बीच किला बचाओ संघर्ष समिति इसके आन बान और शान को बचाने के लिए हमेशा तत्पर है। केस मुकदमे के बीच टिकारी की यह शान और धरोहर दम तोड़ने के कगार पर जा पंहुचा है।