जमींदार इरशाद अली खान ने 120 वर्ष पहले कराई थी उच्चतर विद्यालय भदेया की स्थापना
गया। वर्ष 1902 में बाराचट्टी प्रखंड के भदेया में बच्चों को मुफ्त शिक्षा व्यवस्था की नींव जमींदार बाबू इरशाद अली खान ने की थी। उन्होंने अपनी भूमि पर तत्कालीन जिला जज हौलवुड से स्कूल का शिलान्यास कराया।
गया। वर्ष 1902 में बाराचट्टी प्रखंड के भदेया में बच्चों को मुफ्त शिक्षा व्यवस्था की नींव जमींदार बाबू इरशाद अली खान ने की थी। उन्होंने अपनी भूमि पर तत्कालीन जिला जज हौलवुड से स्कूल का शिलान्यास कराया। जमींदार ने यह स्कूल अपने पुत्र मुस्ताक अली खान के जन्म लेने की खुशी में स्थापित कराया था। उस वक्त मोहनपुर, बाराचट्टी, बोधगया, शेरघाटी एवं डोभी के प्रखंडों में एक भी स्कूल नहीं थे। इलाके के बच्चों को अशिक्षित देखकर वे काफी कुंठित होते और शिक्षा को लेकर काफी चितित रहते थे।
खुद संचालित कराते थे स्कूल को
जमींदार इरशाद अली खान की चर्चा आज भी इलाके में लोग करते नहीं थकते हैं। स्कूल के सदस्य जलालउद्दीन खान कहते हैं कि पूर्वजों से सुनी बात के मुताबिक इस स्कूल में हिदू व मुस्लिम बच्चों के लिए अलग-अलग खपैड़ल के आवासीय छात्रावास बने थे। छात्रों के रहने खाने की व्यवस्था भी जमींदार साहब के द्वारा किया गया था। दूर-दूर से लोग अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां भेजते थे। पढ़ाई का कोई शुल्क नहीं लिया जाता था। यहां पढ़े बच्चे कई शहरों में पदाधिकारी हैं। जमींदार ने उर्दू मदरसा एवं स्कूल कमेटी का किया था गठन
जमींदार ने स्कूल का संचालन कराने के लिए उर्दू मदरसा एवं स्कूल कमेटी का गठन किया, जो स्कूल में शिक्षण कार्य और बच्चों को रहन-सहन खानपान का मुआयना करता था। स्कूल कमेटी की बैठक में जमींदार खुद उपस्थित होते थे। समस्या का निदान वे करते थे। किसी चीज की जरूरत पड़ने पर अपने निजी पैसे से करते थे।
1902 में मात्र बीस बच्चे हुए थे नामांकित
स्कूल का जब शिलान्यास हुआ उस वक्त अब्दुल अजीज खान सहित बीस बच्चों का प्रारंभ में नामांकन हुआ था जो सभी भदेया के थे। भदेया के अब्दुल अजीज खान इस विद्यालय से शिक्षा प्राप्त किए थे। ये गया कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रहे। जलालउद्दीन खान बताते हैं कि उस वक्त बेटियों की पढ़ाई को लेकर कोई जागरूकता नहीं थी। इस कारण उर्दू की पढ़ाई करने मात्र दो-चार की संख्या में बेटियां स्कूल जातीं थीं।
स्कूल में जमीनदाता का नाम या प्रतिमा नहीं
सरकारी व्यवस्था के अधीन आने के बाद इस स्कूल की नींव रखने वाले जमीनदाता के नाम की एक प्रतिमा स्कूल प्रांगण में नहीं लगी है। इससे साफ जाहिर होता है कि स्कूल प्रबंधन ने विरासत को सहेजने या यादें जीवंत रहने का कोई प्रयास नहीं किया है।