सनातनधर्मियों के लिए परमपूज्य है गयाजी का विष्णुपद, जानिए मंदिर का इतिहास, क्यों रखे भगवान विष्णु यहां अपने चरण
विश्व में विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है जहां भगवान विष्णु के चरण का साक्षात दर्शन कर सकते हैं। विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु का चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर है। यहां जानिए कैसे आया भगवान विष्णु का पग क्या है मंदिर का इतिहास।

कमल नयन, गयाः उत्तर भारत की सांस्कृतिक नगरी गयाजी में फल्गु तट पर भगवान विष्णु के पदचिह्न लिए विशाल विष्णुपद सनातन धर्मियों के लिए पूज्य है। जिसका इंदौर की धर्मपरायण महारानी अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा जीर्णोद्धार किया गया। इस खबर में मंदिर का इतिहास, मंदिर कैसे और किन कारीगरों द्वारा बनाया गया, भगवान विष्णु के पद की लंबाई-चौड़ाई, पंडा का इतिहास आदि सबके बारे में हम जानेंगे।
भगवान विष्णु का दाहिने पैर का चरण है 18 इंच लंबा
गया के पत्थलकट्टी के पत्थर को तराशकर लगभग 100 फीट ऊंचा और 58 फीट चौड़ा राजमंडप बनाया गया जो सबों को आकर्षित करता है। इसे जयपुर के कुशल कारीगरों द्वारा बनाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में एक शिला पर भगवान विष्णु का चरण है। 18 इंच लंबा यह चरण भगवान विष्णु के दाहिने पद का है। जो अष्टपहल के बीच में चिह्नित है जिस पर हर सनातनी शीश नवाकर नमन करना अहोभाग्य समझते हैं।
20 वर्षों में बनकर तैयार हुआ पूरा मंदिर
साहित्यकार डा. महेश कुमार शरण इसके निर्माण का काल 1766-1787 ई. बताते हैं। यानी पूरा मंदिर 20 वर्षों में बनकर तैयार हुआ।
चीनी यात्री व्हेन सांग ने 629-634 में ई. में गया को प्रसिद्ध हिन्दू शहर के रूप में बताया था। उसने बताया कि यहां छोटी सी जनसंख्या थी। ब्राह्मणों का एक हजार परिवार था। बुकानन ने भी गया को ऐसे 45 तीर्थस्थलों की सूची दी।
कैसे आया भगवान विष्णु का पग
विश्व में विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान विष्णु के चरण का साक्षात दर्शन कर सकते हैं। विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु का चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर है। राक्षस गयासुर को स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से माता धर्मवत्ता शिला को लाया गया था, जिसे गयासुर पर रख भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया। इसके बाद शिला पर भगवान के चरण चिह्न है।
विष्णु के सेवक के रूप में यहां के पंडा को मिली है महत्ता
आर्किलोजिकल सर्वे आफ इंडिया के रिपोर्ट के अनुसान गया के अक्षयवट के पास एक शिलापट पर दसवीं शताब्दी के प्राप्त एक शिलालेख में अक्षयवट वृक्ष के महत्ता पर प्रकाश डाला गया है। यह साबित करता है गया एक प्राचीन और धार्मिक शहर है। हिंदूओं के द्वारा अपने पूर्वजों को पितृ तर्पण और पिंडदान का कर्मकांड यहां किया जाता है। इसके लिए तीर्थ पुरोहित के रूप में गया पाल पंडा का एक समाज है जो आदरणीय और पूजनीय है। विष्णु के सेवक के रूप में इन्हें महत्ता मिली है। प्रतिवर्ष देश-विदेश से हिन्दू श्रद्धालु गयाजी आकर अपने पितरों का श्रद्धा के साथ श्राद्ध करते हैं। प्रारंभिक काल से ही विष्णुपद में अहिंदुओं का प्रवेश निषेध है।
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