Gaya News: गया में हस्तकरधा का बड़ा केंद्र है मानपुर, मौर्यकाल तक प्राचीन इसका समृद्ध इतिहास
Gaya News बिहार के गया में हस्तकरधा का बड़ा केंद्र है मानपुर। जयपुर के राजा सवाई मानसिंह के नाम पर इसका नामकरण किया गया है। इसका इतिहास गया से भी प्राचीन है। मानपुर कभी सत्ता का मुख्य केंद्र हुआ करता था। जानिए इसके बारे में कुछ खास बातें।

गया, विश्वनाथ प्रसाद। गया शहर और फल्गु के पूर्वी तट पर बसा है मानपुर। यह हस्तकरघा का महत्वपूर्ण केंद्र है, जिसे आज मानपुर के नाम से जाना जाता है। यि कभी सदीकाबाद, गोपालगंज और बुनियादगंज नाम से चर्चित था। टिकारी के राजा बुनियाद सिंह के समय बुनियादगंज के नाम से जाना जाने लगा। जब महाराज कैप्टन गोपाल शरण सत्ता में आए तो यह क्षेत्र गोपालगंज के रूप में मशहूर हो गया। आज भी मुख्य बाजार की सड़क गोपालगंज रोड के नाम से जानी जाती है। जयपुर के राजा सवाई मानसिंह के नाम पर यह मानपुर हो गया। इसका इतिहास गया से भी पुराना मौर्यकाल तक जाता है। मानपुर कभी सत्ता का मुख्य केंद्र हुआ करता था। मानपुर में एक मशहूर शायर थे-अंजुम मानपुरी। उनकी लिखी किताब मिरइक्का की गवाही और टमटम वाले आज भी लाल किला के म्यूजियम में रखी हुई है।
सवाई मानसिंह के नाम पर है मानपुर
1594 ईसवी में बंगाल के नवाब की नाफरमानी के कारण अपने मुगल बादशाह अकबर ने सिपहसालार और अजमेर के शासक राजा सवाई मानसिंह को मानपुर भेजा। उन्होंने अपनी छावनी फल्गु के पूर्वी तट पर लगाई। उस समय बंगाल की राजधानी मुंगेर वर्तमान में खड1गपुर क्षेत्र में स्थित है। नवाब को सबक सिखाने के बाद राजा सवाई मान सिंह ने नदी किनारे गंगा- जमुनी पोखर से मिट्टी निकाल कर चौमहला महल का निर्माण कराया। यहां वे चार वर्षों तक रहे । इसी बीच अपनी रियासत के कई कार्य किए। सिंचाई के लिए कई पोखर और तालाब खुदवाए। कुएं बनवाए। सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया। वर्तमान में भी यह देखने को मिलता है। मानपुर सूर्य पोखर तथा उसके किनारे विशाल सूर्य मंदिर उनके समय की महान संरचना है।
पशु मेला और बौहरा बाजार था प्रसिद्ध
मानपुर का इतिहास गया शहर से काफी पुराना है । यहां का प्रसिद्ध भुसूंडा पशु मेला मौर्यकालीन है। बताया जाता है कि जबसे गया में सिंह धर्मावलंबी तर्पण के लिए विष्णुपद मंदिर और सीता कुंड आ रहे हैं तब से सबसे प्रमुख बाजार के रूप में बौहरा बाजार था। उस बाजार में तब तक खूब चहल-पहल रही जब तक भारत में राजतंत्र रहा। राजतंत्र खत्म होने के बाद भुसूंडा का प्रसिद्ध पशु मेला और बौहरा बाजार की रौनक भी समाप्त हो गई।
आते थे कई देशों के राजा-महाराजा
जल परिषद के पूर्व अध्यक्ष सह किसान नेता इंन्द्रदेव विद्रोही बताते हैं कि राजतंत्र के समय यहां एक लाख पेड़ों का लखिया बगीचा था। वहां पूरे देश से पशुओं को लाया जाता था। देश के राजा महाराज घोड़ा-हाथी खरीदने के लिए आते थे। लेकिन अब पशु मेले का अस्तित्व संकट में पड़ चुका है। हाल में कुकरा मौजा अंतर्गत अलीपुर गढ़ पर एक जलमीनार का निर्माण कराया जा रहा है। जब उसकी खुदाई कराई जा रही थी तो उस गढ़ में मिट्टी के बर्तन, पत्थर के औजार और कई तरह के नक्काशी किए हुए साजो सामान मिले। बाद में पुरातत्व विभाग की टीम उसे ले गई। लगभग 10 बीघा जमीन में विशालगढ़ का वजूद है। उसके अध्ययन से पता चलता है कि वह गढ़ करीब दो हजार साल पुराना है।
टेकारी के राजा ने बसाई पटवाटोली
जब मुगल साम्राज्य अपना अस्तित्व खो रहा था, उसी जमाने में राजा वीर सिंह उर्फ धीर सिंह ने टिकारी राज का गठन किया। उस दौरान भी मानपुर क्षेत्रीय सत्ता का केंद्र बना रहा। मानसिंह का किला टिकारी राज के जमाने में उनके राजाओं के ठहरने का प्रमुख केंद्र था । कई स्थानों पर कचहरी का निर्माण किया गया था, जहां प्रजा को न्याय मिलता था। बुनियाद सिंह जब टेकारी के राजा बने तो उन्होंने बाजार के निकट बुनकरों का एक बस्ती बसाई थी, जो आज पटवाटोली के नाम से मशहूर है। गोपाल नारायण सिंह, जिन्हें कैप्टन गोपाल शरण के नाम से जाना जाता था, की भी मानपुर में बहुत ख्याति थी।

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