Move to Jagran APP

गया की बकरखानी के विदेशी भी कायल

संजय कुमार, गया गया का तिलकुट नहीं, बकरखानी भी मशहूर है। इसके कायल देश के ही नहीं, विदेशों के लोग

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Jun 2019 02:11 AM (IST)Updated: Tue, 04 Jun 2019 02:11 AM (IST)
गया की बकरखानी के विदेशी भी कायल

संजय कुमार, गया

loksabha election banner

गया का तिलकुट नहीं, बकरखानी भी मशहूर है। इसके कायल देश के ही नहीं, विदेशों के लोग भी हैं। रमजान माह में गया में तैयार की गई बकरखानी सउदी अरब, पाकिस्तान के साथ कई मुस्लिम देशों में भी सौगात के रूप में पहुंचाया जाता है। रमजान के महीने में पचास लाख का कारोबार होता है।

इसका सालाना कारोबार करीब साढ़े तीन करोड़ का है।

तीन सौ ग्राम वाली बकरखानी की कीमत 40 और 450 ग्राम की 70 रुपये है। इसे मुस्लिम समुदाय के अलावे अन्य समाज के लोग भी बेहद पंसद करते हैं। अन्य समाज के लोग इसे बकरखानी के नाम से नहीं बल्कि मीठी रोटी कहते हैं। कारण यह बहुत ही मुलायम और स्वादिष्ट होती है।

गया शहर के छत्ता मस्जिद के पास बारी रोड में बकरखानी की कई दुकानें हैं, जहां इन दिनों सुबह से शाम तक भीड़ देखी जा सकती है। वैसे तो इसकी बिक्री साल भर होती है, पर रमजान के दिनों में मांग काफी बढ़ जाती है।

-----------------------

कैसे तैयार होती है बकरखानी

पहले मैदा में चीनी, दूध, इलाइची, खोवा, रिफाइन, नारियल का बुरादा, चेरी, ड्राइ फ्रुट आदि को मिलाया जाता है। उसके बाद जरूरत के अनुसार पानी डालकर काफी देर तक गूंथा जाता है। इसके बाद बेला जाता है। फिर मशीन से गोल-गोल आकार में काटने के बाद भट्ठी में डाला जाता है। 20 मिनट के बाद निकाल लिया जाता है। उस पर रिफाइन लगाकर पॉलिश की जाती है। अब बकरखानी तैयार है।

-----------------------

इन देशों के लोग चखते हैं स्वाद

विदेशों में रह रहे लोग भी गया से बकरखानी मंगाते हैं। रमजान के दिनों में इसकी मांग अधिक होती है। इसकी मांग अमेरिका, इंग्लैंड, सउदी अरब, इराक, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, चीन, भूटान, नेपाल आदि देशों में है। खास तौर से वहां इस इलाके या बिहार के रहने वाले लोग तो मंगाते ही मंगाते हैं। यहां से लोग संदेश के रूप में भेजते हैं।

-----------------------

मो. सुलेमान ने की थी शुरुआत

शहर में बकरखानी वर्ष 1980 से बनाई जा रही है। इसकी शुरुआत मो. सुलेमान ने की थी। उन्होंने दो किलो मैदा से इसकी शुरुआत की थी। आज इसका स्वरूप व्यापक हो गया है।

---------------------

39 वर्षो से जुड़े हैं पेशे से

सुलेमान के पुत्र मो. जावेद कहते हैं कि शहर में पहली बार बकरखानी उनके पिता ने बनाई थी। उनके इंतकाल के बाद भी परिवार ने इसे छोड़ा नहीं। वे लोग 39 वर्षो से इस पेशे से जुड़े हैं। इसमें कम लागत में अच्छी आय हो जाती है। चार लोगों को रोजगार भी मिल जाता है। काम करने वाले मिस्त्री वगैरह भी होते हैं। बाजार भी बड़ा हो गया है। लोग विदेशों से भी ऑर्डर देकर मंगाते हैं।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.