रोहतास की कैमूर पहाड़ी में मिले चार हजार वर्ष पुराने श्ािवलिंग, गुफा की दीवार पर है इनका चित्रण
रोहतास जिले में स्थित कैमूर पहाड़ी की गुफाओं में चार हजार वर्ष पुराने शिवलिंग का पता चला है। इतिहासकार डॉ. श्याम सुंदर तिवारी ने इन्हें खोजा है। उनक ...और पढ़ें

ब्रजेश पाठक, सासाराम (रोहतास)। शिवलिंग रूप में परमब्रह्म की पूजा प्राचीन संस्कृतियों में होती रही है। यह परंपरा प्रबल और सर्व व्यापक थी। वैदिक संस्कृति में भी अपनी उर्वरता संबंधी विधियां थीं। रूद्र उस उर्वरता के देवता थे। इस रूद्र के उपासक व्रात्य थे। सिंधु सभ्यता में बड़ी संख्या में मिले लिंगाकार पाषाणों का संबंध लिंग पूजा से जोड़ा गया है। हाल के दिनों में कैमूर पहाड़ी में आदि मानव के शैलाश्रयों (चट्टानों के घर) में बने शैलचित्रों में भी लिंगोपासना के प्रमाण मिले हैं। प्राचीन शैलचित्र में शिवलिंग और योनि रूपी अर्घ्य का चित्रण किया गया है। यह प्रमाणित करता है की लिंग उपासना आदि संस्कृतियों में भी व्याप्त थी। शिव की आराधना इस रूप में आदिकाल से होती आ रही है।
चार हजार वर्ष पुराने शिवलिंगों की खोज
इसकी खोज सोन घाटी संस्कृति और कैमूरांचल के इतिहासकार डॉ श्याम सुंदर तिवारी ने की है। डॉ तिवारी बताते हैं की गुप्ता धाम गुफा के आसपास के शैलाश्रयों में शिवलिंगों का चित्रण है। एक शैलाश्रय में शिवलिंग का अंकन है। डॉ तिवारी के अनुसार ये चित्र 10 सेंटीमीटर से लेकर 30 सेंटीमीटर तक लंबे हैं। इनका काल कम से कम 4000 वर्ष पूर्व का है। कैमूरांचल के ये चित्र इस बात के ठोस प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि उर्वरता संबंधी देवता के रूप में भारत की आदि संस्कृतियों में लिंगोपासना व्याप्त थी।
आदिकाल से हो रही शिवलिंग की आराधना
लिंग और योनि के रूप में शिव-शक्ति रूपिणी ब्रह्मोपासना की शुरुआत हो चुकी थी। उनका मानना है कि मानव के सांस्कृतिक विकास के क्रम में देव के रूप में शिवलिंग पूजित रहे हैं। यहां के शैल चित्रों में शिवलिंग की मानव परिकल्पना इस बात का प्रमाण है कि यहां की संस्कृति में तब शिवलिंग की पूजा चार हजार वर्ष पूर्व भी होती रही है। शिव लिंग के साथ अर्घ्य स्वरूप शक्ति का भी चित्रण यहां के शैलचित्रों में किया गया है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।