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    7 हजार से शुरू किया मुर्गी पालन का बिजनेस, फिर कमाई बढ़ने पर खोली दुकान; एक झटके में चमक गई सुनीता की किस्मत

    Bihar News गया जिले में जीविका स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं के जीवन में बदलाव की कहानी हम बताते जा रहे हैं। गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण और ऋण देकर स्वरोजगार के अवसर प्रदान किए गए। आज ये महिलाएं प्रतिमाह 8 से 10 हजार रुपये कमा रही हैं और लखपति कहला रही हैं।

    By Vishwanath prasad Edited By: Mukul Kumar Updated: Sun, 05 Jan 2025 07:09 PM (IST)
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    एक झटके में चमक गई सुनीता की किस्मत

    विश्वनाथ प्रसाद, गया। ये एक-दो दर्जन नहीं, गरीबी रेखा से नीचे बसर कर रहीं लगभग 50 हजार दीदियों की आर्थिक स्थिति में आए बड़े परिवर्तन की कहानी है। जहां कभी रोजगार के अवसर नहीं थे, पलायन होता था, वहां पर अब व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं छोटे-छोटे अवसरों के सृजन से बदलाव आ रहा है।

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    गया के अलग अलग प्रखंडों में जीविका समूह की मदद से स्व रोजगार के विकल्प उपलब्ध होने लगे, जिससे महिलाओं की सोच में भी परिवर्तन हो रहा है। वह शिक्षा के महत्व को समझ रहीं हैं।

    छोटे परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वावलंबी भी बन रही हैं। यहां एक दशक में जीविका समूह के प्रयासों का परिणाम सामने है, ये दीदियां अब प्रतिमाह आठ से दस हजार रुपये की कमाई कर रही हैं और लखपति कहला रही हैं।

    इन्हीं में से एक गया के फतेहपुर प्रखंड के जयपुर गांव की सुनीता देवी एवं उनके पति अखिलेश मांझी हैं। दोनों दिहाड़ी मजदूर थे, नियमित काम भी नहीं मिलता था। सुनीता पांच वर्ष पहले जीविका समूह से जुड़ीं।

    मुर्गी पालन एवं व्यवसाय का प्रशिक्षण प्राप्त किया। फिर समूह से सात हजार रुपये कर्ज लेकर मुर्गियां पालने लगीं। इसकी कमाई से ऋण वापस कर दोबारा बीस हजार रुपये कर्ज लिया और किराना दुकान खोल ली।

    ऐसे मिली सफलता

    पति के सहयोग से मुर्गी फार्म और किराना दुकान चल निकला तो समूह से तीसरी बार 40 हजार रुपये कर्ज लिया और बचत के रुपये जोड़कर टेंपो खरीद लिया। सुनीता बताती हैं कि आज वह पूरी तरह कर्ज मुक्त है।

    दूसरी खिजरसराय के कैथबिगहा गांव की सुनीता देवी हैं। पति की मजदूरी पर ही पूरा परिवार आश्रित था। तीन बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पा रही थी। वर्ष 2013 में जीविका समूह से जुड़ी।

    समूह से पांच हजार कर्ज लेकर बीज की दुकान खोली, लेकिन अपेक्षित बिक्री नहीं हो सकी। उसके बाद समूह से 50 हजार कर्ज लेकर आइसक्रीम का उत्पादन शुरू किया। अपनी जमीन में पौधों की नर्सरी लगाई।

    दोनों व्यवसाय चल निकले। इसी बीच पति का चयन जीविका के बुक कीपर पद के लिए हुआ और आमदनी दस हजार रुपये से अधिक हो गई है।

    इसी प्रकार परैया प्रखंड के खिरी गांव की उषा देवी और पति दिलीप मांझी मजदूरी कर किसी तरह तीन बच्चों का पालन-पोषण कर रहे थे। वर्ष 2016 में जीविका समूह से जुड़ीं।

    उसके बाद समूह से 45 हजार कर्ज लेकर एक गाय खरीदी। दूध बिक्री की आमदनी से एक किराना दुकान खोली। पूंजी कम रहने के कारण ग्राहकों की मांग पूरी नहीं कर पा रहीं थीं तो समूह से दोबारा 70 हजार कर्ज लेकर दुकान में सामग्रियां बढ़ाई। आज वह पति संग मिलकर गोपालन व दुकानदारी अच्छे से कर रही हैं।

    10 लाख से अधिक महिलाएं जोड़ी

    • जीविका के मूल्यांकन एवं अनुश्रवण प्रबंधक राकेश कुमार ने बताया कि गया जिले में 10 लाख से अधिक महिलाएं विभिन्न समूहों से जोड़ी गई हैं।
    • सबसे पहले इनमें से गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली महिलाओं की सूची बनाई गई। उनको उनके इच्छित व्यवसाय का प्रशिक्षण दिया गया।
    • उसके बाद उन्हें ऋण देकर व्यवसाय शुरू कराया गया। आज उनकी वार्षिक आमदनी लाख रुपये से अधिक हो गई है।

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