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    दिव्यांग बच्चों ने प्रशिक्षण प्राप्त कर शुरू की नर्सरी, बना रहे अपनी अलग पहचान, पढि़ए कितनी सुंदर है इनकी बगिया

    By Prashant KumarEdited By:
    Updated: Mon, 05 Jul 2021 05:05 PM (IST)

    कोरोना काल में भले ही लोग संक्रमण को लेकर हलकान रहे हो। लेकिन बच्चों का एक समूह जिसे समाज में दिव्यांग कहा जाता है वैसे समूह के बच्चे इस दौरान कुछ नया ...और पढ़ें

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    नर्सरी में कई औषधीय व सजावटी पौधों के लगाए गए बीज। जा्गरण।

    जागरण संवाददाता, बोधगया (गया)। कोरोना काल में भले ही लोग संक्रमण को लेकर हलकान रहे हो। लेकिन बच्चों का एक समूह जिसे समाज में दिव्यांग कहा जाता है, वैसे समूह के बच्चे इस दौरान कुछ नया कर अपनी अलग पहचान बनाने का कर रहे थे और सफल रहे। इसमें दिव्यांग बच्चों को न सिर्फ श्रीपुर स्थित बोधि ट्री संस्था का भरपूर सहयोग मिला, बल्कि नंदनी नर्सरी के संचालक संतोष कुमार भी इन बच्चों पर ज्यादा ध्यान दिए।

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    लगभग दस की संख्या में रहे बच्चों को नंदनी नर्सरी में पौधारोपण का प्रशिक्षण दिया गया और फिर उन्हें देखरेख करने से लेकर पौधों के महत्व को बताया गया। कम समय में ऐसे बच्चे पौधारोपण करने का गुर सीखे और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझते हुए बोधि ट्री संस्था में नर्सरी की अभिनव शुरूआत कर दी।

    आज बच्चे नर्सरी में कई औषधीय व सजावटी पौधों का बीजीकरण, रोपण, वर्मी कम्पोस्ट की उपयोगिता, संवद्र्धन एवं संरक्षण आदि के कार्य में जुटे हैं। संस्था के धीरेंद्र शर्मा बताते हैं कि तीन महीने का प्रशिक्षण और परिश्रम का फलाफल यह है कि दिव्यांग बच्चों द्वारा पांच सौ 17 अलग-अलग प्रजाति के पौधों को खरीदा गया। जिसमें एलोवेरा, डायफून बीथिया, प्राइड ऑफ इंडिया, लेमन ग्रास, रीबन प्लांट, नागफनी, सास्केट प्लांट, नैरो लीफ प्लांट, अशोक, पीपल, डम्ब केन, नीम, पर्पल क्वीन, चाइनीज एप, पाइन लिपू  के पौधे शामिल हैं।

    शर्मा ने बताया कि नर्सरी शुरूआत दिव्यांग बच्चों को स्वावलंबन बनाने के उद्देश्य से किया गया है। फिलहाल इन्हें एक हजार रुपये प्रति माह का स्टाइपेंड प्रारंभ किया गया है। सूबे में चल रहे जल जीवन हरियाली को सार्थक करने का संस्था द्वारा एक छोटा सा प्रयास भी है। नर्सरी में कटोरवा से रौशन, बड़की बभनी से काजल, शेखबारा से सत्यम एवं छोटू, शिराजपुर से राकेश, प्रदुम्न, वीर बहादुर सभी बोधगया प्रखंड के हैं।

    बता दें कि बोधि ट्री संस्था के कार्यों को तिब्बतियों के आध्यात्मिक धर्मगुरु पावन दलाई लामा व 17 वें करमापा उज्ञेन त्रिनले दोरजे द्वारा सराहा गया है।