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    जम्होर और सिरिस घाट पर उमड़े श्रद्धालु, साल में तीन बार होता पिंडदान, धर्मशाला 25 वर्षों से जर्जर, असुविधा पर आस्था भारी

    By Prashant Kumar PandeyEdited By:
    Updated: Fri, 16 Sep 2022 09:51 AM (IST)

    गया पहुंचने के पहले आदिगंगा पुन पुना (पुनपुन नदी) के तट पर प्रथम पिंडदान का महत्व है। झारखंड के पलामू से निकलने के बाद पुनपुन नदी जहां-जहां से गुजरी ह ...और पढ़ें

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    पुनपुन नदी किनारे के साथ औरंगाबाद के जम्होर और सिरिस घाट पर पिंडदानियों की भीड़

     विद्या सागर, पटना : पितृपक्ष शुरू हुए छह दिन बीत गए। पितरों को पिंडदान व तर्पण के लिए देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु गयाजी के फल्गु तट पहुंच चुके हैं। उतना ही महत्व गया पहुंचने के पहले आदिगंगा पुन: पुना (पुनपुन नदी) के तट पर प्रथम पिंडदान का भी है। झारखंड के पलामू से निकलने के बाद पुनपुन नदी जहां-जहां से गुजरी है, वहां श्रद्धालु उमड़ पड़े हैं। पटना के पुनपुन नदी किनारे के साथ औरंगाबाद के जम्होर और सिरिस घाट पर भी पिंडदानियों का मेला लगा है। यह बात अलग है कि यहां असुविधाएं काफी हैं, परंतु आस्था के आगे वह भी हार गई है। विष्णु प्रकाशन से प्रकाशित पंडित रुद्रदत्त पाठक की संस्कृत में लिखित पुस्तक ‘श्राद्ध पारिजात’ में पुनपुन नदी के जम्होर व पटना के पुनपुन घाट का स्पष्ट वर्णन है।

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    जम्होर घाट पर पांच तीर्थ पुरोहित कराते हैं पिंडदान

    औरंगाबाद जिले में जम्होर पुनपुन घाट पर पांच तीर्थ पुरोहित पिंडदान कराते हैं। जिसमें जम्होर गांव के तीन व रघुआ गांव के दो तीर्थ पुरोहित हैं। जम्होर गांव के कर्मकांड कराने वालों में कुंदन पाठक, पुरुषोत्तम पांडेय, नरेश पांडेय हैं। वहीं पुरुषोत्तम पाठक व अरुण पाठक रघुआ गांव के हैं। कुंदन पाठक बताते हैं कि उनके पूर्वज दीनदयाल पाठक जम्होर घाट पर ही पिंडदान का कर्मकांड कराते थे। वे पांचवीं पीढ़ी के हैं। 20 वर्ष से यहां पिंडदान कराते हैं। बताते हैं कि जम्होर में हर वर्ष लगभग एक लाख लोग पिंडदान कराने आते हैं। हालांकि सुगम रास्ते के कारण सिरिस घाट पर पांच लाख लोग पिंडदान के लिए पहुंचते हैं।

    जम्होर घाट के पास है अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन

    पूर्व मध्य रेल के मुगलसराय मंडल में औरंगाबाद जिले के जम्होर थाना क्षेत्र में पुनपुन नदी किनारे अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन स्थित है। इस वर्ष भी यहां पितृपक्ष के दौरान 15 दिनों के लिए ट्रेनों का ठहराव है। ट्रेन से गयाजी जाने वाले पिंडदानियों के लिए यह स्टेशन सुगम है। स्टेशन पर उतरते ही उत्तर दिशा में पुनपुन नदी के घाट पर कर्मकांड किया जाता है। वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-दो पर बारुण प्रखंड में स्थित सिरिस घाट पर पिंडदानी बस या अपने साधन से पहुंचते हैं।

    जम्होर में पिंडदानियों के आवासन के लिए बनी थी धर्मशाला

    जम्होर में पुनपुन नदी तट पर वर्ष 1907 में 10 एकड़ परिसर में एक विशाल धर्मशाला बनी थी। राय सूरजमल झुनझुनवाला ट्रस्ट की इस धर्मशाला में तीन दिनों तक पिंडदानियों के रहने की निश्शुल्क व्यवस्था थी। अभी इस धर्मशाला की हालत जर्जर है। परिसर में झाड़ियां उग आई हैं। धर्मशाला की सुरक्षा के लिए एक केयर टेकर यहां जरूर रहते हैं लेकिन 25 वर्षों से यहां पर पिंडदानियों के आवासन की सुविधा नहीं है। यहां आने वाले पिंडदानी स्थानीय तीर्थ पुरोहितों के घर में ही ठहरते हैं।

    जम्होर व सिरिस घाट पर नहीं है सुविधा

    पुनपुन नदी के जम्होर व सिरिस घाट पर सुविधाएं न के बराबर है। घाट पर न ही स्वच्छ पेयजल की सुविधा है और न ही शौचालय की। तीर्थपुरोहित कुंदन पाठक बताते हैं कि जम्होर घाट पर नदी में पक्के घाट के निर्माण के लिए कई बार जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से मांग की लेकिन कुछ नहीं हो सका। पहले सुरक्षा को लेकर स्थानीय जम्होर थाने से पुलिस की ड्यूटी लगती थी लेकिन इस वर्ष पुलिस की भी तैनाती नहीं है। सिर्फ रेल यात्रियों के लिए घाट स्टेशन पर जीआरपी के तीन जवानों की तैनाती है। 

    1975 की बाढ़ में तबाह हो गया था जम्होर घाट

    पुनपुन नदी पर स्थित जम्होर घाट पर पहले पिंडदान धर्मशाला से ठीक पश्चिम में किया जाता था। वर्ष 1975 में आई बाढ़ में घाट तबाह हो गया। तब जिला प्रशासन ने रेलवे लाइन की उत्तर दिशा में पिंडदानियों के लिए व्यवस्था कराई। बाद में रेलवे के फ्रेट कोरिडोर के कारण यह व्यवस्था भी खत्म हो गई। इसके बाद जम्होर घाट पर सीधे नदी किनारे ही तीर्थपुरोहित कर्मकांड की व्यवस्था करते हैं।

    साल में तीन बार पिंडदान करने जम्होर आते हैं लोग  

    पितरों के पिंडदान के लिए साल में तीन बार लोग जम्होर पुनपुन घाट पहुंचते हैं। चैत माह में महाराष्ट्र व दक्षिण भारत के लोग यहां आते हैं। अभी विधान भाद्र (भादो) माह में पूरे देश से लोग पहुंचे हैं। वहीं पौष माह में नेपाल व भूटान के लोग पिंडदान करने पहुंचते हैं। तीर्थपुरोहित बताते हैं कि यहां साल में तीन बार पिंडदान होता है। चैत व पौष माह में यहां कम लोग पहुंचते हैं।