सांस्कृतिक कार्यक्रम: गया में सजी संगीत की महफिल, ठप्पा ठुमरी और ख्याल के गायन से मंत्रमुंग्ध हुए श्रोता
गया जी मोक्ष की भूमि पर सुर ताल लय की समा बंधने की परंपरा को सुर सलिल का अनोखा प्रयास किया जा रहा हैं। गयाजी की संगीत घराना की प्रमाण इतिहास पुराणों ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, गया। गया जी मोक्ष की भूमि पर सुर ताल लय की समा बंधने की परंपरा को सुर सलिल का अनोखा प्रयास किया जा रहा हैं। गयाजी की संगीत घराना की प्रमाण इतिहास पुराणों से माना जाता हैं। गयाजी धरती पर अनेकों संगीत साधकों का जन्म हुआ। जिससे हमेशा गयाजी व देश दुनियां के कलाकारों द्वारा वर्तमान समय भी उन्हें गयाजी के कलाकार का सम्मान देकर याद किया जाता हैं। गया घराना के अनेकों कलाकार धुरूपद, ठप्पा, खयाल, ठुमरी गायन सितार, पखावज, इसराज, तबला वादन और अन्य विधाओं में भी एक से बढ़कर एक गुणी पंडित एवं उस्ताद संगीत के क्षेत्र में अपना छाप छोड़ गये। वर्तमान समय में अलग अलग संगीत महापुरुषों की याद में कार्यक्रम का आयोजन कर युवा पीढ़ी को संगीत की संस्कार व संस्कृति को बचाने का काम करने का प्रयास किया जा रहा हैं।
गुरुवार की संध्या में स्मरणाज्जली कार्यक्रम में पद्म भूषण स्वर्गीय राजन मिश्र को याद किया गया। जिसमें कार्यक्रम की सुरुआत राजन मिश्र के प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के बाद दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन संस्था के अध्यक्ष, सचिव अन्य अथितियों ने किया। काकोली मुखर्जी की गायन (कोलकाता), गरूण मिश्रा गायन (दिल्ली) पिनाकी चक्रवर्ती तबला संगत (कोलकाता), संजना गुहा संगत (तानपुरा), सर्वोत्तम कुमार (हार्मोनियम), पंडित हरिहर शर्मा भट्ट (सितार वादक जयपुर), पंडित महेंद्र शंकर तबला संगत (जयपुर) अन्य कलाकारों ने श्रोताओं को मन को मोहलिया। पद्म भूषण स्वर्गीय राजन मिश्र की गायकी को याद करते हुऐ उनका जन्मतिथि पर एक से बढ़कर खयाल बंदिस, ठुमरी की सुरों से लोग झूमते रहें।
कोरोना काल के कई महीनों के बाद संगीत की महफिल में संगीत की शौकीन व्यक्ति शहर के और अन्य शहरों के भी आकर संगीत की सुरों को सुनकर कुछ समय के लिये आत्मा को शकुन प्रदान किया, जबकि गयाजी में मोक्ष देकर आत्मा को शान्ति प्रदान करने की परंपरा हैं। साथ ही इस धरती पर देश दुनियाभर के रंगकर्मी व संगीत साधक अपनी संगीत की प्रस्तुति देकर अपना शांति और संगीत की मोक्ष प्रदान करना पसंद करतें हैं। चूंकि, गयाजी की धरती पर श्रोताओं में भी संगीत सुनने की काफी धर्य से सुनने की तमन्ना रहती हैं। यहां कि मिट्टी में संगीत की खुशबू जन्म के साथ जुड़ा हुआ ईश्वरीय देन कहा जाता हैं। राग मारू बिहग, गरूर मिश्र की गायकी से शुरुआत एक ताल विलम्बित लय, संगत पिनाकी चक्रवर्ती का तबला रंग खूब लाया और कब समय निकल गया लोगों को पता ही नहीं चला। गाने वाले गायक और सुनने वालों की समय की खबर तक नहीं सिर्फ कानों में सुर-ताल, लय-सितार, तानपुरा की स्वरों में कान को खोल व आंखें बंद कर आनंदित श्रोता होते रहे।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।