Bihar Politics: बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र में टिकट बदलने का दांव, रणनीति या सियासी रिस्क?
बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र में टिकट बंटवारे को लेकर चर्चा है। पार्टी ने अंतिम समय में उम्मीदवार बदलकर नई बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे 'परिवार की निरंतरता' बता रहे हैं, तो कुछ 'जनाधार की उपेक्षा'। इस बदलाव ने राजनीति को जीवंत बना दिया है, लेकिन पार्टी के भीतर मतभेद भी दिख रहे हैं। अब देखना है कि यह फैसला पार्टी के लिए क्या परिणाम लाता है।

बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र में टिकट बदलने का दांव, रणनीति या सियासी रिस्क?
संवाद सूत्र, बाराचट्टी (गया)। बाराचट्टी सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र में इस बार चुनावी चर्चा किसी प्रचार या सभा से नहीं, बल्कि टिकट बंटवारे की रणनीति से शुरू हुई है। पार्टी नेतृत्व ने जिस तरीके से अंतिम समय में प्रत्याशी का चेहरा बदला, उसने इलाके की सियासत में नई बहस छेड़ दी है। समर्थकों से लेकर विरोधियों तक, हर ओर यही सवाल है क्या यह फैसला संगठन को नई दिशा देगा या पुराने जनाधार पर असर डालेगा?
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, शुरू में क्षेत्र के एक अनुभवी और दो बार निर्वाचित प्रतिनिधि को उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाया गया था। संगठन ने पूरा खाका उसी आधार पर तैयार किया था। लेकिन नेतृत्व ने अचानक उसी परिवार के एक नए चेहरे को चुनावी मैदान में उतार दिया।
निर्णय भले ही पार्टी की रणनीति का हिस्सा रहा हो, मगर स्थानीय स्तर पर इसके अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं। कई कार्यकर्ता मानते हैं कि नेतृत्व ने “परिवार की निरंतरता” बनाए रखने का फैसला लिया है।
उनका कहना है कि राजनीति में पीढ़ीगत बदलाव जरूरी है, और नया चेहरा उस सोच का प्रतीक है। वहीं, कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ता इसे “जनाधार की उपेक्षा” मानते हुए सवाल उठा रहे हैं कि “जब जनता और संगठन किसी एक चेहरे के साथ चल रहे थे, तो आख़िरी वक्त पर बदलाव क्यों?
इस पूरे प्रकरण ने स्थानीय राजनीति को अप्रत्याशित रूप से जीवंत बना दिया है। गांव-गांव में चर्चा है कि पार्टी ने इस बार जोखिम भरा लेकिन सोच-समझकर कदम उठाया है। लोगों की राय भी बंटी हुई है एक वर्ग इसे “नए नेतृत्व की पहचान” बता रहा है, तो दूसरा कहता है कि “चेहरा चाहे या ना बदले, बात बराबर की है।
पार्टी के अंदर भी मतभेद की हल्की लकीर खिंचती दिख रही है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर कोई असंतोष नहीं जताया गया है, परंतु जमीनी स्तर पर कुछ कार्यकर्ताओं की सक्रियता में कमी महसूस की जा रही है। उनका कहना है कि मेहनत उन्हीं की है, चेहरा बदल जाने से मनोबल पर असर पड़ा है।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि टिकट बदलने का यह फैसला एक सोची-समझी रणनीति हो सकता है पार्टी एक ओर पारिवारिक पहचान को बनाए रखना चाहती है, वहीं दूसरी ओर मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश में है, लेकिन यह भी सच है कि बाराचट्टी जैसे क्षेत्र में जहां राजनीति रिश्तों और भरोसे पर टिकी होती है, वहां अचानक बदलाव जनता के मन में सवाल भी खड़े करता है।
अब जबकि प्रचार अभियान तेज़ी पर है, पार्टी नेतृत्व और स्थानीय संगठन दोनों ही मोर्चे पर सक्रिय हैं। समर्थक संदेश दे रहे हैं कि “यह बदलाव किसी व्यक्ति का नहीं, सोच का है।”
वहीं कुछ पुराने कार्यकर्ता अब भी यह मानते हैं कि “जनाधार चेहरों से नहीं, विश्वास से बनता है। सच तो यह है कि बाराचट्टी की सियासत इस वक्त अपने दिलचस्प मोड़ पर है। टिकट बदलने का यह फैसला पार्टी के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित होगा या सियासी रिस्क — इसका जवाब जनता की चुप्पी में छिपा है।

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