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    Bihar Election 2025: मगध में चुनाव प्रचार के अनोखे रंग, जातिगत जोड़-तोड़ और जुगत की लड़ाई

    Updated: Sun, 09 Nov 2025 12:03 PM (IST)

    बिहार में 2025 के चुनावों के लिए मगध क्षेत्र में चुनावी माहौल तेज हो गया है। जातिगत समीकरणों और जोड़-तोड़ की राजनीति चरम पर है। पार्टियां लोकगीतों और नाटकों के माध्यम से प्रचार कर रही हैं, युवाओं को लुभाने के लिए नई योजनाओं की घोषणा कर रही हैं।

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    मगध में राजनीतिक समीकरण। फाइल फोटो

    डॉ चंदन शर्मा, गया। बिहार विधानसभा चुनाव के सबसे निर्णायक क्षेत्रों में से एक, मगध प्रमंडल (जिसमें अरवल, औरंगाबाद और गया जिले शामिल हैं) की कुल 26 सीटों पर प्रचार अंतिम चरण पर है। आज शाम प्रचार का दौर थम जाएगा। 11 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले, एनडीए और महागठबंधन दोनों ही जाति समीकरणों को एकजुट रखने और विरोधी वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में पूरी ताकत झोंक चुके हैं।

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    मीडिया अध्येता और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. शोभित सुमन बताते हैं कि, चुनावी प्रचार का माध्यम भी अब डिजिटल हो गया है। व्हाट्सएप पर जाति के समर्थन और विरोध में तमाम ग्रुप पर बातें चल रही हैं। हालांकि, जमीन पर भी दोनों गठबंधन जातीय समीकरण साधने की कोशिश कर रहे हैं। मगध क्षेत्र में सवारी गाड़ियों और बसों पर चुनाव प्रचार आम है। मोटरसाइकिल, टोटो और ऑटो रैलियां भी निकाली गई है।

    मगध के प्रचार में रंग-बिरंगा तूफान

    मगध में प्रचार सिर्फ लाउडस्पीकर और बड़ी रैलियों तक सीमित नहीं है। मतदाता तक पहुंचने के लिए उम्मीदवार और उनके समर्थक स्थानीय और भावनात्मक तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

    1- नुक्कड़ नाटक और स्थानीय गीत

    छोटे शहरों और गांवों में नुक्कड़ नाटकों का चलन बढ़ा है। ये नाटक स्थानीय भाषा (मगही) में बनाए गए हैं, जो सरकारी योजनाओं की विफलता या विपक्षी दल के वादों को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से जनता तक पहुंचाते हैं। कई उम्मीदवारों के लिए विशेष चुनावी गीत बनाए गए हैं जो भोजपुरी/मगही संगीत की धुन पर प्रचार करते हैं।

    2- टोटो और रिक्शा रैलियां

    ईंधन की बढ़ती कीमतों और सादा जीवन का संदेश देने के लिए कुछ भाकपा-माले और राजद उम्मीदवार ग्रामीण और भीतरी इलाकों में साइकिल और रिक्शा रैलियां निकाल रहे हैं। यह तरीका कार्यकर्ताओं को भीड़भाड़ वाली गलियों में घुसने और गरीबों के मसीहा की छवि बनाने में मदद करता है। टोटो रैली भी निकल चुकी है।

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    बसों में सवार होकर जनसभा में जाते कार्यकर्ता। फोटो जागरण 


    3- महिला टोली का घर-घर प्रचार

    रालोजपा जैसी पार्टियों ने महिला प्रत्याशियों के समर्थन में महिलाओं की विशेष टोलियां बनाई हैं। ये टोलियां केवल महिलाओं वाले घरों में जाकर उनसे स्थानीय मुद्दों पर चर्चा करती हैं और अपनी महिला उम्मीदवार के लिए समर्थन मांगती हैं। यह तरीका महिला वोटबैंक को भावनात्मक रूप से मजबूत करने का काम कर रहा है।

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    घर-घर प्रचार कर रही रालोजपा की प्रत्याशी दिव्या भारती। फोटो जागरण

    टेकारी विधानसभा: जोड़ की लड़ाई और कबाड़ का नारा

     गया जिले की टेकारी विधानसभा सीट पर एनडीए (हम) और महागठबंधन (राजद) के बीच कई समीकरणों पर टक्कर चल रही है।

    युद्ध का मैदान: राजद के उम्मीदवार अपने पारंपरिक MY (मुस्लिम-यादव) आधार को एकजुट रखने की जुगत में हैं, जबकि हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के उम्मीदवार अन्य पिछड़ी जातियों और सवर्ण वोटों के गठजोड़ पर निर्भर हैं।

    प्रमुख नारा: इस क्षेत्र में 'कबाड़ फेंकने' का नारा प्रमुखता से उछाला जा रहा है, जिसका अर्थ है पुरानी व्यवस्था या विपक्ष की विफलताओं को नकारना। दोनों ही खेमे इस नारे का इस्तेमाल कर रहे हैं। एनडीए गठबंधन पुराने जंगलराज की वापसी को कबाड़ बता रहा है, तो महागठबंधन सत्ताधारी दल की महंगाई और बेरोजगारी को कबाड़ कह कर हटाने का आह्वान कर रहा है।

    अरवल: लाल सलाम और कमल के बीच जातीय समीकरण

    मगध के हृदय कहे जाने वाले अरवल विधानसभा सीट पर मुकाबला बेहद कांटे का है। भाकपा-माले के विधायक महानंद सिंह ने 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़े अंतर से हराया था।

    जातीय जुगत: माले पारंपरिक रूप से दलितों और भूमिहीन किसानों के वोटों को एकजुट रखने पर निर्भर है। भाजपा ने इस बार मनोज शर्मा को उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा है। पिछली बार शर्मा गोह से चुनाव लड़ चुके हैं। एनडीए ने अति पिछड़ी जाति (EBC) और सवर्ण वोट बैंक को समन्वित करने की कोशिश की है।

    अन्य दावेदार: पशुपति पारस की रालोजपा ने महिला प्रत्याशी दिव्या भारती को चुनाव में उतारकर दलित वोटों में सेंध लगाने की रणनीति अपनाई है।

    औरंगाबाद: गोह विधानसभा में चिराग की गूंज और वोट ट्रांसफर का गणित

    औरंगाबाद जिले की गोह सीट पर राजनीतिक माहौल गरम है। 200 मीटर की दूरी पर तीनों प्रमुख दलों का अस्थाई कार्यालय है। जनसुराज में खाली कुर्सियां है, वहीं राजद में कार्यकर्ताओं के मंत्रणाओं का दौर चल रहा है। सबसे ज्यादा चहल-पहल एनडीए कार्यालय में दिखती है।

    एनडीए की सेंधमारी: चिराग पासवान ने गोह में रैली कर एनडीए के पक्ष में हवा बनाई है। भाजपा उम्मीदवार एनडीए के वोट ट्रांसफर की सफलता पर निर्भर हैं। कार्यकर्ताओं का उत्साह जोरदार है।

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    NDA कैंप में चहल-पहल। फोटो जागरण

    महागठबंधन का आधार: राजद उम्मीदवार अपने कोर आधार को मजबूत करने में लगे हैं और आशा कर रहे हैं कि एनडीए खेमे में होने वाले छोटे-मोटे असंतोष से उन्हें लाभ मिलेगा।

    अन्य दल: प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज भी तीसरा विकल्प बनने की जद्दोजहद में है, लेकिन उसका फोकस मुख्य गठबंधनों के वोट बैंक में सेंध लगाने से ज्यादा निराश मतदाताओं को अपनी ओर खींचने पर है।

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    खाली पड़ा जनसुराज का दफ्तर। फोटो जागरण 

    गया: पुरानी रंजिशें और गठबंधनों का मिश्रण

    ज्ञान और मुक्ति की भूमि गया में प्रचार पुरानी राजनीतिक दुश्मनी और नए गठबंधनों का मिश्रण है।

    वोट बैंक एकजुटता: गया टाउन विधानसभा में प्रेम कुमार (भाजपा) हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के साथ मिलकर पिछड़ी जातियों पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं। महागठबंधन के लिए कांग्रेस और राजद के संयुक्त प्रयास में सबसे बड़ी चुनौती वोट ट्रांसफर को सुनिश्चित करना है।

    दलित वोटों पर नजर: चिराग पासवान ने गुरुआ में अपने उम्मीदवार उपेंद्र दांगी के लिए रैली करके दलित वोटों को एकजुट करने का दावा किया, जबकि रालोजपा की महिला प्रत्याशी भी सक्रिय हैं, जो महिला और दलित वोटों में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं।

    यहां टोटो और ऑटो दोनों से चुनाव प्रचार करते पार्टी के कार्यकर्ता दिख जाएंगे। चुनावी प्रचार में भी एनडीए-महागठबंधन एक-दूसरे की नकल करते दिख रहे हैं।

    मगध प्रमंडल की इन 26 सीटों पर जातीय समीकरणों को साधने की यह जोड़ की लड़ाई ही 11 नवंबर को मतदान का रंग तय करेगी। क्या एनडीए द्वारा गढ़े जा रहे कई समीकरण भारी पड़ेंगे या महागठबंधन अपने आधार को एकजुट रखने में सफल होगा? 14 नवंबर को नतीजे बताएंगे।