Bihar Election 2025: बोधगया में पासवान vs पासवान की सीधी टक्कर, मांझी बने 'गेमचेंजर' फैक्टर!
बोधगया में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में पासवान बनाम पासवान की टक्कर है, जिसमें मांझी समुदाय के दो उम्मीदवारों ने मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है। पिछले चुनाव में राजद ने मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी। इस बार, मांझी मतदाताओं का रुख निर्णायक हो सकता है, जिससे सामुदायिक समीकरणों का महत्व बढ़ गया है। सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि कौन सा दल सही संतुलन बना पाता है।

बोधगया में पासवान vs पासवान की सीधी टक्कर
संवाद सूत्र, फतेहपुर (गया)। विधानसभा चुनाव(Bihar Election 2025) की बेला में बोधगया सीट एक बार फिर जातीय समीकरणों की तमाम जटिलताएं समेटे हुई है। यहां का राजनीतिक परिदृश्य इस बार पासवान बनाम पासवान की सीधी टक्कर का रूप लेता दिख रहा है। दोनों बड़े गठबंधन एनडीए एवं महागठबंधन ने पासवान समाज से उम्मीदवार उतारे हैं। और दोनों ही अपनी-अपनी जातीय ताकत एवं संगठनिक आधार को मजबूत करने में लगे हैं।
लेकिन इसी बीच मांझी जाति के दो प्रत्याशियों की मौजूदगी ने इस लड़ाई को केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि चारकोनिय बना दिया है। जनसुराज पार्टी से एक मांझी उम्मीदवार और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के बागी के रूप में एक अन्य मांझी प्रत्याशी मैदान में हैं। इनकी सक्रियता ने पूरे समीकरण को बदलने की संभावना पैदा कर दी है।
पिछला परिणाम किसने मुमकिन बनाया
पिछली बार, साल 2020 में इस सीट पर कुमार सर्वजीत (राष्ट्रीय जनता दल) ने जीत दर्ज की थी। उन्हें 80,926 वोट मिले जबकि दूसरे पायदान पर रहे हरी मांझी (भारतीय जनता पार्टी) को 76,218 वोट मिले। जीत का मार्जिन मात्र 4,708 वोट का था। इससे साफ है कि वोट बंटवारे का असर यहां सहज ही दिखाई देता रहा है। पिछले बार पासवान एवं मांझी के बीच सीधा मुकाबला था।
इस चुनाव में समीकरण कुछ ऐसा
क्षेत्र में पासवान, मांझी के अलावा यादव, ब्राह्मण, भूमिहार, कुशवाहा तथा अल्पसंख्यक मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। सभी दल इन समुदायों के बीच संतुलन बनाने में जुटे हैं। खासतौर पर मांझी समुदाय के दो प्रत्याशियों की उपस्थिति ने पासवान पासवान की लड़ाई में एक नया मोड़ ला दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि मांझी मतदाता बंट जाएं या मांझी प्रत्याशी अपने दम पर बड़ी संख्या में वोट लाएं तो उनका निर्णायक प्रभाव इस सीट पर दिख सकता है।
क्या होगा इस बार का वोटों का गणित?
अगर मांझी उम्मीदवारों ने अपने समुदाय को संगठित किया और वोट बैंक बना लिया, तो पारंपरिक पासवान वोटों पर असर पड़ सकता है। इस तरह पासवान बनाम पासवान लड़ाई में तीसरे-चौथे कैंडिडेट भी अचानक दौर बदल सकते हैं।
ऐसे में सिर्फ जातिगत गणना नहीं बल्कि सामुदायिक गठबंधन, प्रत्याशी पहचान, और स्थानीय विकास के एजेंडे की भी अहम भूमिका रहेगी। इस बार बोधगया सीट सिर्फ कौन जीतेगा का सवाल नहीं, बल्कि कौन कैसे जीतेगा का समीकरण है।
पासवान बनाम पासवान की लड़ाई में मांझी बने हैं वह ‘फैक्टर’ जो सोशल पालिटिकल समीकरण को पलट सकते हैं। अब देखने वाली बात है क्या प्रत्येक दल समय रहते सही सामुदायिक संतुलन बना पाता है, या इस बार वोट वितरण की चाबी मांझी हाथ में बंद हो जाती है।

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