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    औरंगाबाद में 150 साल पुरानी पूर्वी सोन पटना मुख्‍य नहर को मरम्‍मत का इंतजार, चाहिए 50 करोड़ रुपये

    By Shubh Narayan PathakEdited By:
    Updated: Fri, 29 Jan 2021 08:15 AM (IST)

    औरंगाबाद जिले के दाउदनगर में नहरों के जीर्णोद्धार के लिए चाहिए 50 करोड़ रुपये 30 लाख रुपये लगभग प्रति किलोमीटर पक्की करण पर खर्च 20 करोड़ सिर्फ माली लाइन में खर्च होने का अनुमान सिंचाई प्रमंडल दाउदनगर के नहरों की स्थिति बदतर

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    सोन नदी का इंद्रपुरी बराज। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

    औरंगाबाद/दाउदनगर [उपेंद्र कश्यप]। बिहार की सिंचाई व्‍यवस्‍था में सोन नहर का योगदान काफी महत्‍वपूर्ण है। रोहतास और औरंगाबाद जिले के मध्‍य इंद्रपुरी बराज के पास से निकली नहरों के जरिये सोन के दोनों किनारों पर आधा दर्जन से अधिक जिलों के हजारों एकड़ खेत की सिंचाई होती है। औरंगाबाद में भी सोन से निकली नहरों का जाल बिछा हुआ है। इंद्रपुरी बराज से निकली पूर्वी मुख्य पटना कैनाल में प्रारंभिक बिंदु से लेकर 57.6 किलोमीटर दूर वलीदाद तक का पूरा इलाका दाउदनगर सिंचाई प्रमंडल के अंतर्गत आता है। करीब 150 साल पुरानी इस नहर को अब मरम्‍मत और जीर्णोद्धार की सख्‍त जरूरत है।

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    करीब 150 साल पुरानी है पूर्वी मुख्‍य पटना नहर

    13 सितंबर 1872 को इस कैनाल का उद्घाटन हुआ था। इससे करीब एक दर्जन शाखा नहरें निकली हुई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार करीब 300 किलोमीटर लंबी छोटी-बड़ी नैहरें फैली हुई है। नहरों के इस जाल को बीते सवा सौ बरस में कभी भी न तो मरम्मत की गई है और ना ही पक्कीकरण किया गया, जबकि करोड़ों रुपये नहरों के सुदृढ़ीकरण की योजना पर खर्च हो चुके हैं। आज स्थिति यह है कि पटना मुख्य केनाल हो या इससे निकली शाखा नहरे, दोनों के तटबंध जर्जर हैं। कहीं-कहीं तो लगता है कि तटबंध है ही नहीं। बस जैसे-तैसे काम किया जा रहा है ताकि पटवन का काम हो सके और किसान अन्न उपजा सके। वस्तु स्थिति यह है कि नहरों की बदतर स्थिति पर काम नहीं हो रहा है।

    नहर के पक्‍कीकरण पर प्रति किलोमीटर 30 लाख रुपये का खर्च

    विभागीय सूत्रों के अनुसार प्रति किलोमीटर नहरों के पक्कीकरण पर करीब 30 लाख रुपये का खर्च आएगा। इस हिसाब से सिर्फ पक्की करण पर ही 90 करोड़ रुपये खर्च अनुमानित है। नहरों के संचालन के लिए जो आधारभूत संरचनाएं तैयार की गई है वह भी खस्ताहाल है। उनके भी मरम्मत किए जाने की जरूरत है। अगर इसका भी खर्च जोड़ें तो करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। यदि बिहार सरकार डेढ़ सौ करोड़ रुपए दाउदनगर प्रमंडल को नहरों के जीर्णोद्धार के लिए दे दे तो नहरों के तेल एंड तक पानी पहुंचाने समेत कई लाभ होंगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार नहरों का पक्कीकरण किया जाना, तटबंध का मरम्मत किया जाना और अन्य आधारभूत संरचनाओं के मरम्मत किए जाने की आवश्यकता है। सरकार ने हर खेत को पानी योजना को अपने सात निश्चय में प्राथमिकता में रखा है, लेकिन सरकार जब पैसे ही नहीं देगी तो कुछ भी होना संभव नहीं है।

    दाउदनगर से गुजरने वाली नहरें और उनकी लंबाई

    • पूर्वी मुख्य केनाल बारुण से वालिदाद तक 57.6 किलोमीटर
    • कोचहासा लाइन 35.2 किलोमीटर माली लाइन 41.6 किलोमीटर
    • अंछा फीडर 07.04 किलोमीटर
    • तुतुरखी 12.8 किलोमीटर
    • चंदा लाइन 18 किलोमीटर
    • तेजपुरा फीडर 05 किलोमीटर
    • तेलडीहा लाइन 05.5 किलोमीटर
    • मनोरा लाइन 21 किलोमीटर इमामगंज लाइन 22.4 किलोमीटर
    • अनपरा 20.8 किलोमीटर

    इसके अलावा भी कई छोटी नहरें हैं।

    क्या होगा अगर खर्च हो डेढ़ सौ करोड़ रुपये

    सिंचाई प्रमंडल कार्यालय के कार्यपालक अभियंता रामप्रवेश सिंह एवं सहायक अभियंता राकेश रंजन के अनुसार यदि डेढ़ सौ करोड़ रुपये सरकार दाउदनगर सिंचाई प्रमंडल को नहरों के जीर्णोद्धार कार्य के लिए दे और पक्की करण एवं मरम्मत का काम हो जाए तो कई लाभ मिलेंगे। जैसे पानी की क्षति कम होगी। छोटी बड़ी नहरों के टेल एंड तक पानी पहुंच सकेगा जो अभी कई बार नहीं पहुंच पाता है। अवैध आउटलेट सारे खत्म हो जाएंगे। मछली मारने और जानवर धोने के लिए नहरों के जो तटबंध ग्रामीण द्वारा तोड़े जाते हैं, उनका टूटना बंद हो जाएगा और सबसे बड़ी बात अंग्रेजों के बनाए नहर प्रणाली में पहली बार भारतीयों का योगदान भी शामिल हो जाएगा।

    नहरों के उद्धार के लिए विधायक ने उठाया बीड़ा

    विधायक ऋषि कुमार ने बुधवार को शाखा नहर का सिंचाई विभाग के अधिकारियों के साथ निरीक्षण किया। उन्होंने दैनिक जागरण से बताया कि उन्होंने नहरों के पक्कीकरण और मरम्मत कराने का बीड़ा उठाया है। सरकार की एक अच्छी योजना है हर खेत को पानी इसलिए हम चाहेंगे कि ओबरा विधानसभा क्षेत्र में सबसे पहले यह काम हो। उन्होंने कहा कि 125 वर्ष पूर्व अंग्रेजों ने जो नहर बनाया था वह जर्जर हो चुका है। अब जरूरत है कि हम हिंदुस्तानी इसे बनाएं ताकि किसानों को लाभ मिले और हर खेत पर पानी उपलब्ध हो सके।