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    Bihar: रक्सौल के लिए बेहद शुभ है पितृपक्ष, यहां के लोगों को क्‍यों रहता है इन 15 दिनों का इंतजार? जानिए वजह

    By Edited By: Shashank Shekhar
    Updated: Thu, 28 Sep 2023 08:06 PM (IST)

    Pitru Paksha Mela 2023। बिहार में पितृपक्ष मेले की शुरुआत हो गया है। इसके लिए प्रशासन की ओर से तैयारियां पूरी तैयारी है। वहीं रक्सौल में भी इसे लेकर खास तैयारियां है क्योंकि यहां के लोगों के लिए पितृपक्ष मेला काफी फायदेमंद होता है। बताया जाता है कि यहां पर कारोबारियों को 15 दिनों में करोड़ों की कमाई है। आइए जानते हैं कैसे शुभ है यहां के लिए पितृपक्ष।

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    रक्सौल के लिए बेहद शुभ है पितृपक्ष, यहां के लोगों को क्‍यों रहता है इन 15 दिनों का इंतजार?

    जागरण संवाददाता, रक्सौल (पूर्वी चंपारण): आमतौर पर पितृपक्ष को कारोबार के दृष्टिकोण से अच्छा नहीं माना जाता। शुभ कार्य नहीं होने से लोग खरीदारी से कतराते हैं, लेकिन नेपाल सीमा से सटे पूर्वी चंपारण के रक्सौल में अच्छे कारोबार की शुरुआत पितृपक्ष से ही शुरू होती है।

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    इस दौरान करीब 25 करोड़ का कारोबार होता है। पिंडदान के लिए गया जाने वाले नेपाल के लोगों का पहला पड़ाव रक्सौल ही होता है। यहां होटलों में ठहरकर दान सामग्री की खरीदारी करते हैं। वे यहीं से भारतीय नंबर की गाड़ी रिजर्व कर प्रस्थान करते हैं।

    नेपाल के काठमांडू, मकवानपुर, बारा, परसा, रौतहट, नवलपरासी और बुटवल से करीब पांच हजार लोग गया जाते हैं। रक्सौल अनुमंडल से भी करीब पांच सौ स्थानीय पिंडदानी गया जाते हैं।

    एक से सवा करोड़ का होता होटल कारोबार

    होटल, कपड़ा, आभूषण व्यापारी से लेकर ट्रेवल एजेंसियों को एक साल तक पितृपक्ष के इस पखवारे का इंतजार रहता है। काठमांडू के अलावा विभिन्न जिलों से लोग रक्सौल पहुंचते हैं। यहां रात्रि विश्राम के बाद सड़क व रेल मार्ग से गया निकलते हैं। शहर में कुल 13 होटल हैं। 15 दिनों तक ये भरे रहते हैं।

    800-1200 में सामान्य और 1500-2000 में वातानुकूलित कमरों की सप्ताह भर पहले से बुकिंग शुरू हो जाती है। एक से सवा करोड़ का होटल का कारोबार हो जाता है।

    गया जाने के लिए कुछ लोग भारत-नेपाल मैत्री बस की सेवा लेते हैं, लेकिन ज्यादातर निजी वाहनों से जाना पसंद करते हैं। सात से आठ हजार में दो दिनों के लिए वाहनों की बुकिंग होती है।

    तांबे और पीतल के छोटे बर्तनों की होती मांग

    नेपाली पितरों को दान देने के लिए बर्तन, आभूषण और कपड़ों की भी यहीं से खरीदारी करते हैं। रामगढ़वा, आदापुर, छौड़ादानो आदि प्रखंडो में बर्तन बाजार सज गए हैं। जौ के आटे की भी खूब मांग होती है।

    बर्तन कारोबारी मनी सर्राफ, रमेश कुमार और गौतम प्रसाद साह ने बताया कि पूर्व में लोग स्टील का बर्तन सेट खरीदते थे। अब तांबे और पीतल के छोटे आकार के पांच या 11 बर्तन खरीद रहे हैं।

    हल्के स्वर्ण आभूषणों की भी खरीदारी होती है। नेपाल के पर्सा निवासी पुरेंद्र चौधरी, रूपनारायण प्रसाद और अशोक ठाकुर कहते हैं कि यहां कम पैसों में अच्छे सामान मिल जाते हैं। समय की भी बचत होती है, इसलिए रक्सौल में ही दान और पूजन सामग्री की खरीदारी कर लेते हैं।

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    चैंबर आफ कॉमर्स, रक्सौल के अध्यक्ष ने क्या कहा

    चैंबर आफ कॉमर्स, रक्सौल के अध्यक्ष अरुण कुमार गुप्ता का कहना है कि पितृपक्ष में अच्छा व्यापार होता है। स्थानीय लोगों के अलावा नेपाल के विभिन्न जिलों से भी लोग रक्सौल आते हैं। 132 किलोमीटर लंबे बॉर्डर पर करीब 25 करोड़ का कारोबार होता है।

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