Nepal Gen Z Protest: बेटी पैदल ही चली ससुराल...आपात स्थिति वाले लोगों के लिए खुली राह
नेपाल में जेनजी आंदोलन के चलते भारत-नेपाल सीमा पर सख्ती बरती गई। वाहनों का आवागमन बंद रहा जिससे लोगों को पैदल यात्रा करनी पड़ी। पूर्वी चंपारण में ब्याही रेखा देवी जैसी महिलाओं को अपने बीमार परिजनों के पास जाने के लिए जवानों से मिन्नतें करनी पड़ीं. कई लोग इलाज और श्राद्ध जैसे जरूरी कामों के लिए परेशान दिखे क्योंकि उन्हें सीमा पार करने की अनुमति नहीं मिल रही थी।

अमरेंद्र तिवारी, वीरगंज (नेपाल)। Nepal Gen Z Protest:नेपाल में जारी जेनजी आंदोलन के कारण बुधवार को भारत-नेपाल की सीमा पर सख्त पहरा रहा। कोशिश यह रही कि किसी भी स्थिति में कोई कंफ्यूजन नहीं हो और कोई आपराधिक तत्व सीमा पार से भारतीय सीमा में नहीं घुसे या फिर भारतीय इलाके से नेपाल की ओर कोई संदिग्ध प्रवेश नहीं हो इसको लेकर दोनों देशों के सुरक्षाकर्मी अलर्ट पर रहे। इस दौरान वाहनों की आवाजाही पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहा।
गिनती के वाहन ग्रामीण सड़कों पर दौड़ते दिखे। इन सबके बीच आपात स्थिति में जब किसी के सामने कोई चारा नहीं चला तो महिला व पुरुषों ने पैदल यात्रा की। पूर्वी चंपारण के सुगौली में ब्याही गई नेपाल के विंध्यवासिनी की बेटी नेपाल की रेखा देवी की आंखें भारत-नेपाल सीमा के सिवान टोला बार्डपर नम हो गईं।
उनका दर्द कुछ इस तरह से छलका- सिपाही जी हमारा सास के तबीयत खराब बा, हमारा गोदी में छोटा बच्चा बा हमरा के बार्डर पार जाएं दीं। बताया सुगौली में ससुराल है। कहा- आज तो गजब हो गया। 30 साल की उम्र में पहली बार देख रही हूं कि इस पार से उस पार जाने के लिए चिरौरी करनी पड़ रही।
हमारे भाई छोड़ गए और उधर से देवर लेने आ जाएंगे। फिर पहचान पत्र देखने के बाद जवानों ने रेखा को भारतीय क्षेत्र में प्रवेश दिया और वह वहां से आगे बढ़ीं। हरैया सिवान टोला के पास पहुंचे सुमन कुमार श्राद्ध का कार्ड दिखाते हुए बोले - सर, सारा सामान रक्सौल से खरीदा गया है। अगर आप चाहें तो हमें ले जाने दीजिए, वरना श्राद्ध नहीं हो पाएगा। फिर उन्हें भी ...।
कस्टम कार्यालय के पास परिवार संग खड़े विनोद महतो ने कहा- बेटे का इलाज कराने मोतिहारी गए थे, दो दिन बाद लौटे, लेकिन अब यहां दूसरा बखेड़ा खड़ा हो गया। घर जाने नहीं दिया जा रहा है। राजीव कुमार ने बताया कि उनकी वहां प्लास्टिक दाना बनाने की छोटी फैक्ट्री है, जिससे रोज 500-600 रुपये कमा लेते हैं। कबाड़ कारोबारी रुस्तम (बेतिया) ने कहा- हम भी रोज 800–900 रुपये कमाते हैं, आज नहीं जाने दिया गया।
लक्ष्मीपुर के आटो चालक रमेश कुमार बोले - आज सुबह से बोहनी भी नहीं हुई। रोजाना इस बार्डर से लोगों की आवाजाही होती है। अच्छी आमदनी हो जाती है, लेकिन आज सुबह छह बजे से चार बजे तक खड़े रहने के बावजूद खाली हाथ लौटना पड़ रहा।
पगडंडी की राह पकड़ेंगे, लेकिन रोजी का इंतजाम करेंगे। बीमार लोगों को आने-जाने की छूट दी गई। सुहागी देवी बोलीं- सड़क से नहीं जाने दिया, तो गांव की राह पकड़नी पड़ी।भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की आग में नेपाल जल रहा है। हमारा काम जरूरी है सो यात्रा कर रहे।
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