Bihar Chunav: उबल रही विकास की चाय, धूल छंटने की उम्मीद में तय होगा भविष्य
मोतिहारी के चांदमारी चौक पर चुनावी माहौल गरमा गया है। चाय की दुकानों पर विकास की चर्चा है, लेकिन धूल और टूटी सड़कों से लोग परेशान हैं। ओवरब्रिज बनने से राहत की उम्मीद है, पर मुहल्ले की हालत खस्ता है। स्थानीय लोग अब सफाई और सड़क ठीक कराने वाले को ही वोट देने का मन बना रहे हैं।

चाय की दुकान पर चल रही चर्चाएं। (फोटो जागरण)
धीरज श्रीवास्तव शानू, मोतिहारी। चुनावी मौसम है। यह शहर का चांदमारी चौक है। चाय की दुकान हो या फिर पान की या अन्य कोई भी। सभी स्थानों मानों जैसे केतली में विकास की चाय उबल रही हो।
सबकी जुबान पर यह बात है कि इस बार भी विकास की लहर चलेगी, लेकिन तभी कोई इसका जवाब देता है पहले विकास पर जमी धूल तो छंट जाए। फिर जवाब - धूल छंटने के साथ तय हो जाएगा।
सुबह की पहली चाय संग शुरू होने वाली राजनीतिक चर्चा यह बता रही कि शहर की नसों में किस तरह की राजनीति का प्रवाह है। चाय की चुस्की लेते हुए राजन कहते हैं - देखो भाई, चुनाव से पहले कुछ तो हो रहा। सालों से ओवरब्रिज की मांग थी, अब आखिर बन ही रहा है। ट्रैफिक से राहत मिलेगी।
इतना सुनते ही बगल में बैठे मनीष हंसते हुए बोल पड़ते हैं राहत तो मिलेगी, लेकिन पहले सांस लेने की राहत तो मिले। दुकान खोलते हैं तो हवा नहीं, धूल उड़ती है। ग्राहक आते हैं, खुद को झाड़ते हैं, फिर हमें झाड़ते हैं जैसे हम ही रोड कटवा रहे हों।
बात आगे बढ़ाते हुए- मनोज कहते हैं दिन में तीन बार चेहरा धो लो, फिर भी पहचान नहीं आती। कभी-कभी लगता है, वोट देने जाएं तो फोटो अपडेट कराना पड़ेगा। चाय की आखिरी चुस्की के साथ अजीत कहते हैं परेशानी तो है, पर खुशी भी है। ये विकास का ब्रिज है। बस मानक का ध्यान रख दें, तो यही चौक फिर से चमक उठेगा।
इतने में किसी ने चाय मांगी तो व्यंग हुआ धूल वाला या बिना धूल वाला। चारों तरफ हंसी गूंज उठती है, लेकिन उस हंसी में झुंझलाहट ज्यादा है।
पास की सब्जी दुकान पर खरीददारी कर रही सुनीता देवी कहती हैं मुहल्ले की हालत ऐसी है कि बच्चे खेलने जाएं तो मां कहती हैं ध्यान रखना बेटा गड्ढा और नाला दोनों पास हैं। उनकी बात पर बगल में खड़ी श्रेया सिर हिलाते हुए जोड़ती हैं गली का हाल बेहाल है। नालों के स्लैब टूटे पड़े हैं। पार्क तो दूर, अब तो खुली हवा भी ऑनलाइन बुकिंग से मिले शायद।
इसी बीच पास में खड़ी सीमा कहती हैं मोहल्ले में पार्क तो दूर, कोई खुला मैदान भी नहीं है। यहां तो बच्चे और जवान दोनों ही अनजाने में एक्सट्रीम स्पोर्ट्स ट्रेनिंग ले रहे हैं, और विकास अभी भी ऑफलाइन है। धीरे-धीरे बहस ठंडी पड़ती है। सबके कपड़ों पर जमी धूल के नीचे उम्मीद की एक परत अब भी बाकी है।
थोड़ी देर में सब उठने लगते हैं, कोई साइकिल पर, कोई पैदल। स्थानीय संतोष कुमार कहते हैं गलियों में टूटे स्लैब, बहते नाले, धूल-कीचड़ का जमाव ये वो मुद्दे हैं, जिनपर लोग अब ठान चुके हैं कि वोट उसी को देंगे जो गली की सफाई और सड़क सच में नसीब कराए।
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