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    Global Warming: ग्लोबल वार्मिंग से सूखने लगी नदियां, जिंदगी के साथ खेती-किसानी पर खतरा

    Updated: Sun, 01 Jun 2025 03:45 PM (IST)

    ग्लोबल वार्मिंग से नदियां सूख रही हैं जिससे खेती और जीवन खतरे में हैं। नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में खनन से जलस्रोत समाप्त हो रहे हैं जो तिलावे नदी के लिए अभिशाप बन गया है। जलस्तर गिरने से प्रवासी पक्षी भी अपना बसेरा बदल रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण नदियों का जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है और मछुआरों का रोजगार भी प्रभावित हो रहा है।

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    ग्लोबल वार्मिंग के सूखने लगी नदियां, जिंदगी के साथ खेती-किसानी पर खतरा

    संवाद सहयोगी, पूच। ग्लोबल वार्मिंग से नदियां सूखने लगी हैं। ताल-तलैया के साथ-साथ नहरों में भी पानी नहीं दिख रहा है। प्रवासी पक्षियों ने अपना ठिकाना बदल लिया है।

    पशु-पक्षियों को पानी के लिए दूर-दूर तक भटकना पड़ रहा है। खेती किसानी पर भी खतरा मंडराने लगा है। जानकर बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जल का वाष्पीकरण वातावरण में हो जाता है, जिसकी वजह से ग्रीनहाउस गैस बनता है।

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    इसके बाद ग्लोबल वार्मिंग बढ़ता है, जिससे पर्यावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से धरती की सतह का तापमान बढ़ने लगता है।

    इसका असर नदियों,ताल तलैया के साथ नहरों में दिखने लगा है। ग्रामीण बताते हैं कि एक दशक पूर्व तक नदियों में पानी भरा रहता था। लेकिन आज परिस्थितियां बदल गई हैं। नदियां सूख गई हैं या सूखने के कगार पर हैं।

    तटवर्ती गांवों के किसान पानी के अभाव में सब्जी,मक्का आदि नकदी फसलों की खेती नहीं कर पा रहे हैं। नेपाल से निकलने वाली प्रमुख नदियों में तिलावे, गाद, बंगरी, पसाह आदि शामिल हैं, जिनका उदगम स्थल नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों से है।

    ये नदियां रक्सौल, आदापुर, रामगढ़वा व बंजरिया प्रखंड के गावों से होकर बहती हुई सगौली प्रखंड में जाकर सिकरहना में मिलकर खगड़िया जिला मुंगेरघाट के समीप जाकर गंगा में मिल जाती हैं।

    नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों का पानी इन नदियों में आकर गिरता है, जिसका संरक्षण नहीं होने से नदियां बरसात के महीनों में उफनाने लगती हैं।

    लगातार गिरता जा रहा नदियों का जलस्तर 

    ग्लोबल वार्मिंग का असर इतना अधिक बढ़ गया है कि इन नदियों का जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है, जिससे इनके अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है।

    रोजगार के रूप में मछुआरों द्वारा मछली मारने का धंधा भी अब बंद के बराबर है। वहीं पहले नदियों की प्रसिद्ध मछली झींगा,चेलवा,जल कपूर,कौवावा आदि आसानी से मिल जाती थीं,जो कि विलुप्त हो चुकी हैं।

    प्रसिद्ध जंतु विज्ञान के प्रोफेसर सह पर्यावरणविद प्रो.अनिल कुमार सिन्हा ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्रों में खनन के कारण नदियों के जलस्रोत समाप्त हो चुके हैं, जिसके कारण आने वाले कल में जिंदगी तबाह हो सकती है। इस दिशा में ठोस प्रयास की जरूरत है।