पितृपक्ष में गायत्री मंत्र के जाप से पितृदोष व ऋणदोष से मिलती है मुक्ति : पंडित धनंजय
मोतिहारी। सत्य को धारण करना ही श्राद्ध है। अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किए जाने
मोतिहारी। सत्य को धारण करना ही श्राद्ध है। अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध शब्द के नाम से जाना जाता है। इसे पितृयज्ञ भी कहा जाता है। यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि श्राद्ध में दी गई अन्न आदि सामग्रियां पितरों को कैसे मिलती है, क्योंकि विभिन्न कर्मो के अनुसार मृत्यु के बाद जीव को भिन्न-भिन्न गति प्राप्त होती है, कोई देवता वन जाता है तो कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई चिनार का वृक्ष, कोई तृण आदि। श्राद्ध में दिए गए छोटे से पिड से हाथी का पेट कैसे भर सकता है, इसी प्रकार चींटी इतने बड़े पिड को कैसे खा सकती है, देवता अमृत से तृप्त होते है, पिड से उन्हें कैसे तृप्ति मिलेगी, इन सभी प्रश्नों का शास्त्र ने सुस्पष्ट उत्तर दिया है, कि नाम व गोत्र के सहारे विश्वेदेव एवं अग्निश्वान आदि दिव्य पितर हव्य-कव्य को पितरों को प्राप्त करा देते है। उक्त बातें प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित धनंजय ओझा (शास्त्री) ने कही। उन्होंने बताया कि यदि पिता देव योनि को प्राप्त हो गए हो तो अन्य उन्हें अमृत होकर प्राप्त हो जाता है। मनुस्ययोनियों में अन्न रूप में तथा पशुयोनियों में तृण के रूप में उसकी प्राप्ति होतीै है। नागादि योनियों में वायु रूप से, यक्षयोनियों में पानरूप से तथा अन्य योनियों में श्रद्धीय वस्तु भोग जनक तृप्तिकर पदार्थो के रूप में प्राप्त होकर अवश्य तृप्त करती है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार गोशाला में भूली माता को बछड़ा किसी न किसी प्रकार ढूंढ लेता है, उसी प्रकार मंत्र तन्तद् वस्तुज्ञातक प्राणी के पास किसी न किसी प्रकार पहूंचा देता है। जीव चाहे सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है। शास्त्र सम्मत है मध्याह्न व्यापिनी तिथि में तर्पण माध्याह्न व्यापिनी तिथि में श्राद्ध-तर्पणादि करने का शास्त्र सम्मत विधान है। पितृपक्ष के साथ पितरों का विशेष संबंध होता है। यही कारण है कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितृपक्ष पितृश्राद्ध, तर्पण करने का विधान है। पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पणादि करने से पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुल, एश्वर्य व अभिलषित वस्तुओं की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष में गायत्री मंत्र का जाप पुनश्चरण करने से पितृदोष व ऋणदोष से मुक्ति मिलती है। पितृपक्ष में त्रिपिडी श्राद्ध करने से अनेक प्रकार के बाधाएं दूर होती है। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से पितरों का दिन प्रारंभ हो जाता है, जो अमावस्या तक रहता है। पिता के मृत्यु तिथि की जानकारी न होने पर या किसी कारण तय तिथि विशेष पर श्राद्ध न कर पाने पर आमवस्या तिथि को श्राद्ध-तर्पणादि करना बेहतर होगा। श्राद्ध में तुलसी की महिमा तुलसी की गंध से पितृगण प्रसन्न होते है। श्राद्ध में तीन गुण होना जरूरी है। इसमें पवित्रता, अक्रोध व जल्बाजी शामिल है। श्राद्ध में सफेद पुष्प को गाद्य्य पुष्प माना गया है। वही पुष्कर, गया, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थो में श्राद्ध की महिमा विशेष है। सामान्यत: तर्पणादि घर में, गोशाला में, देवालय, गंगा आदि नदियों का भी अत्यधिक महत्व है। श्री शास्त्री ने बताया कि श्राद्ध में प्रशस्त अन्न फलादि के रूप में गाय का दुध, दही, घी, जौ, धान, तिल, गेहूं, मूंग, सवा आदि का भी विशेष महत्व है। वही श्राद्ध के दौरान आसन के रूप में रेश्मी नेपाली कंबल, उन, काष्ठ तृण आदि का भी महत्व है।

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