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    महंगाई पर भारी पड़ी आस्था, दुकानों पर खरीदारों की भीड़

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 09 Jul 2022 12:39 AM (IST)

    मेहसी में बकरीद पर विश्व प्रसिद्ध सूफी संत दाता अब्दुल मिर्जा हलीम साहब की मजार पर लगने वाला तीन दिवसीय मेला मजावर सैयद शमीम अहमद द्वारा किए जानेवाले दाता के इबादत के साथ प्रारम्भ हो गया। श्रद्धालुओं का आना-जाना जारी है।

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    महंगाई पर भारी पड़ी आस्था, दुकानों पर खरीदारों की भीड़

    मोतिहारी । मेहसी में बकरीद पर विश्व प्रसिद्ध सूफी संत दाता अब्दुल मिर्जा हलीम साहब की मजार पर लगने वाला तीन दिवसीय मेला मजावर सैयद शमीम अहमद द्वारा किए जानेवाले दाता के इबादत के साथ प्रारम्भ हो गया। श्रद्धालुओं का आना-जाना जारी है। मेला में दुकानें सज गई है। मेला में महंगाई पर आस्था भारी पड़ रही है। दुकानों पर महिलाओं की खासा भीड़ देखने को मिली रही है। चादरपोशी व मलीदा चढ़ाने का सिलसिला शुरू है। यूपी के बहराइच से पहुंचे शकील अहमद, वाराणसी से आए राजेश, पटना के मोहम्मद सोनू, सिवाई पट्टी मुजफ्फरपुर के रूपेश ने बताया कि आज पहले दिन बिक्री सामान्य रही। ये लोग हलुआ पराठा, पापड़ी मिठाई, जलेबी, मुकुंदाना, परचून आदि की दुकान लगाए हुए हैं। सुरक्षा के ²ष्टिकोण से प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस सक्रिय है। एसडीओ एसएस पाण्डेय व डीएसपी संजय कुमार के निर्देशन में बीडीओ शैलेन्द्र कुमार सिंह, सीओ रविरंजन जमैयार, राजस्व अधिकारी शशि कुमारी, थानाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह, नगर कार्यपालक पदाधिकारी हेमन्त कुमार की टीम ने मेला की सुरक्षा कड़ी कर दी है। ट्रैफिक को लेकर भीड़भाड़ वाले स्थानों पर सुरक्षा बलों को लगाया गया है। मेला में वाहनों का प्रवेश वर्जित है। मेला व सभी संवेदनशील जगहों पर हाई फ्रीक्वेंसी के सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। स्वयंसेवकों का भी सहयोग लिया जा रहा है। ज्ञातव्य हो कि इस मेले में नेपाल व भारत के कोने कोने से श्रद्धालुओं का आगमन होता है। बकरीद के नवाज के बाद स्थानीय स्तर पर लोगो का आना जाना आरंभ होता है।

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    इनसेट

    यहां- दूर-दूर से सभी धर्म के लोग आकर करते चादरपोशी

    मेहसी, संस : विश्व प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मिर्जा हलीम शाह चिस्ती रहमतुल्लाह अलहै की मजार देश-दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल के रूप में जाना जाता है। खासकर बकरीद के मौके पर यहां भव्य मेला का आयोजन होता है। इसमे देश के कोने कोने से अकीदतमंद यहां तशरी़फ लाते हैं और दाता के दरबार में हाजरी लगाते हैं। मजार पर आने वाले लोगों का मानना है कि यह ऐसी जगह है जहां आने के बाद जाति, धर्म संप्रदाय से ऊपर उठकर भावनाएं उमड़ पड़ती है। अमीरी-गरीबी का भेद भाव मिट जाता है। बाहर से आने वाले लोगों के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर दाता के मजार पर चादरपोशी होती है और प्रसाद के रूप में मुर्गा व रोटी से बनी हुई मलीदा चढ़ाया जाता है। मेला की समाप्ति प्रशासन के द्वारा की जाने वाली चादरपोशी से होती है। मजार मुगलकालीन कलाकृति का अछ्वुत नमूना

    अजमेर शरीफ स्थित ख्वाजा मैनुद्दीन चिस्ती के मजार के बाद भारत का यह दूसरी प्राचीन मजार है। मेहसी और इस मजार की चर्चा अबुल फजल द्वारा लिखित आईना-ए-अकबरी में भी मिलती है। आईना-ए-अकबरी की पांडुलिपि आज भी मजार के पास अवस्थित ऐतिहासिक नागरिक पुस्तकालय में उपलब्ध है। मजार का निर्माण कब और कैसे हुआ, मिर्जा हालिम शाह यहां कब आएं आज भी यह एक पहेली बना हुआ है। लेकिन बिहार जनरल रिसर्च सोसाइटी के अनुसार इतिहासकार क्यू अहमद व प्रोफेसर हसन असगरी ने अपने शोध में 1697 के दौरान इस मजार के निर्माण की बात बताई है। मजार की बनावट मुगलकालीन हस्तकला का आकर्षक व अनूठा नमूना है। कैसे पहुंचे

    यह मजार और मेहसी सड़क व रेल दोनों मार्गों से जुड़ा हुआ है। बिहार व्यवसायिक राजधानी माने जाने वाले मुजफ्फरपुर व अहिसात्मक आंदोलन के सूत्रधार रहे मोतिहारी से इसकी दूरी 40 किलोमीटर पर है। यह चंपारण और मुजफ्फरपुर के ठीक मध्य में मुजफ्फरपुर व नरकटियागंज रेलखंड पर अवस्थित है। मजार शरीफ के लिए दोनों जगहों से सवारियां उपलब्ध है।

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