Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नमो दैव्ये महादैव्यै: निश्चय से हारी मजबूरियां, स्वावलंबी बनी बिहार की प्रियंका

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 03:28 PM (IST)

    मोतिहारी की प्रियंका कुमारी ने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। बीमार पति के इलाज और बच्चों के पालन-पोषण के लिए उन्होंने ब्यूटीशियन का प्रशिक्षण लिया और अपना पार्लर खोला। आज वह आर्थिक रूप से सशक्त हैं और अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रही हैं। उनका मानना है कि हौसले से हर मुश्किल आसान हो जाती है।

    Hero Image
    नमो दैव्ये महादैव्यै : निश्चय से हारी मजबूरियां, स्वावलंबी बनी प्रियंका

    सत्येंद्र कुमार झा, मोतिहारी। एक वक्त था जब महिलाओं को बाहर काम करने की इजाजत नहीं थी। उस परिवेश में भी पकड़ीदयाल के बड़का गांव निवासी प्रियंका कुमारी ने वह कर दिखाया जो उन्होंने भी नहीं सोचा था। बीमार पति के इलाज के लिए जब गांव से मोतिहारी आईं तो उनके लिए सबकुछ नया था।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पहली बार मोतिहारी व शहर को करीब से देखा था। 29 जनवरी 2011 का वह दिन उन्होंने अभी भी याद है। घर से रोती हुई मोतिहारी आईं थीं। अपनों ने उनसे किनारा कर लिया। दो बच्चियां छोटी थी और पति बीमार।

    आर्थिक रूप से कमजोरी के बीच पति का इलाज व बच्चों की परवरिश उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, लेकिन उन्होंने भी ठान ली थी कि वह हौसला नहीं हारेंगी व खुद को हुनरमंद बनाएंगी।

    2012 में सेंट आरसेटी से ब्यूटीशियन का प्रशिक्षण प्राप्त कर पहले ब्यूटी पार्लर में नौकरी की, लेकिन उनको उतने पैसे नहीं मिल पाते थे कि पति का इलाज व बच्चों की परवरिश हो सके। 2013 में उन्होंने खुद का पार्लर खोल दिया। उनके काम को महिलाओं ने पसंद किया व आर्थिक रूप से सशक्त होने लगीं।

    पार्लर की आमदनी से दो बच्चों की पढ़ाई व पति का इलाज ठीक से होने लगा। हालांकि, लंबे वक्त तक इलाज के बाद दो साल पूर्व पति की मौत हो गई, लेकिन बच्चियों में संस्कार व हुनर भर उन्हें भी आत्मनिर्भर बनाया।  एक बेटी का खुद का ब्यूटी पार्लर है।

    दोनों बेटियों की शादी कर चुकीं प्रियंका  आज अपने जैसी मजबूर महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करतीं हैं। उन्हें मुफ्त प्रशिक्षण देकर सशक्त बनाने की सीख दे रही हैं। कहती हैं कि उनके पास कई महिलाएं आईं जो मजबूर थीं। आत्महत्या तक करने की बात करती थी, पर उन्हें आत्मबल देकर संघर्ष करने की सीख दी।

    खुद के जीवन का उदाहरण देकर उनके अंदर बेहतर करने का जज्बा बनाया। कहती हैं कि हौसला के साथ महिलाएं आगे बढ़े व अपनी मजबूरी को हथियार बना ले तो कठिन से कठिन काम उसके लिए आसान हो जाता है।