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    Paddy Disease: धान की फसल पर रोग और कीटों के हमले से किसान परेशान, एक्सपर्ट ने बताए बचाव के उपाय

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 04:38 PM (IST)

    पूर्वी चंपारण में कम वर्षा के कारण परेशान किसानों की चिंता धान की फसल पर कीटों के हमले से और बढ़ गई है। भूरा मधुआ कीट और गलका रोग जैसे कीटों के कारण सैकड़ों एकड़ फसल प्रभावित हो रही है। कृषि विभाग ने किसानों को यूरिया का संतुलित उपयोग करने और प्रोपिकोनाजोल जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करने की सलाह दी है ताकि फसल को बचाया जा सके।

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    धान की फसल पर कीटों का हमला। फोटो जागरण

    संवाद सहयोगी, पताही। कम वर्षापात के कारण पहले से ही परेशान किसान अब धान की फसल पर कीटों के हमले से चिंतित हैं। धान के पौधों पर भूरा मधुआ कीट, गलका रोग, तना छेदक कीट और हिस्पा रोग का प्रभाव बढ़ने लगा है, जिससे फसल की उपज पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है।

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    भूरा मधुआ कीट धान के तनों से रस चूसता है, जिससे किसानों की चिंता और बढ़ गई है। फसल को कीटों से बचाने के लिए किसान विभिन्न कीटनाशकों का छिड़काव कर रहे हैं, लेकिन इसका प्रभाव सीमित नजर आ रहा है।

    सावन में वर्षा कम होने के बाद भादो के अंत में थोड़ी बारिश हुई, जिससे फसल को संजीवनी मिली और खेतों में फसल लहलहाने लगी, लेकिन इसी बीच कीटों के प्रभाव ने फिर से परेशानी बढ़ा दी है, जिसके कारण सैकड़ों एकड़ फसल प्रभावित हो रही है।

    किसान चुमन सिंह, आलोक कुमार, दीपक कुमार, शंकर यादव, महेंद्र महतो, रामजी चौहान, बिरेश महतो, चुरामन महतो, श्यामसुंदर महतो और देवकी महतो ने बताया कि धान की फसल पर रोग का प्रकोप तेजी से फैल रहा है।

    धान के पत्ते झुलस रहे हैं, वृद्धि रुक गई है और पौधे लाल होकर सड़ने लगे हैं। फसल को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिल रही है।

    इस संबंध में प्रखंड कृषि पदाधिकारी प्रभात कुमार ने बताया कि इन दिनों किसान भूरा मधुआ कीट, गलका रोग और तना छेदक कीट की शिकायत लेकर कृषि कार्यालय में आ रहे हैं या मोबाइल पर उपाय पूछ रहे हैं।

    एक्सपर्ट ने बताया निदान 

    उन्होंने कहा कि गलका को झुलसा रोग भी कहा जाता है, जिसमें पत्तियों और तनों पर चकत्ते नजर आते हैं। इसके कारण फसल झुलसने लगती है और उत्पादन में 50-60 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

    उन्होंने बताया कि इस बीमारी का फैलाव मेड़ पर घास अधिक होने से होता है। इसके बचाव के लिए यूरिया का संतुलित मात्रा में उपयोग करें और धान की घनी रोपाई न करें।

    प्रकोप दिखाई देने पर प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी या हेक्साकोनाजोल 5 ईसी का छिड़काव प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में मिलाकर करें।

    वहीं, तना छेदक कीट से बचाव के लिए फिप्रोनिल 05 ईसी या करटाप हाईड्रोक्लोराइड 50 एसपी का छिड़काव भी आवश्यक है। इससे फसल को नुकसान नहीं होगा।