सीता कुंड धाम में खुदाई के दौरान मिला प्राचीन शिवलिंग, पूजा-अर्चना के लिए उमड़ी भक्तों की भीड़
सीता कुंड धाम में खुदाई के दौरान एक प्राचीन शिवलिंग पाया गया है। इस खोज के बाद, भक्तों की भारी भीड़ शिवलिंग की पूजा-अर्चना के लिए उमड़ पड़ी है। क्षेत् ...और पढ़ें

सीता कुंड धाम में खुदाई के दौरान मिला प्राचीन शिवलिंग
संवाद सहयोगी, पीपरा। चकिया प्रखंड के बेदीवन मधुबन पंचायत अंतर्गत स्थित पौराणिक स्थल सीता कुंड धाम परिसर में खुदाई के दौरान मंगलवार को एक प्राचीन शिवलिंग मिला है। जिसके बाद से उक्त शिवलिंग को देखने एवं पूजा-अर्चना करने के लिए ग्रामीण भक्तों की भीड़ यहां जुट रही है।
विदित हो कि पर्यटन विभाग से 13 करोड़ 10 लाख की स्वीकृत राशि से यहां विकास कार्य शुरू है। इसी क्रम में कैफेटेरिया निर्माण के लिए जेसीबी से हो रही खुदाई के दौरान एक शिवलिंग दिखाई दिया।
जेसीबी के चालक ने उस शिवलिंग को उठाकर धाम परिसर स्थित कुंड के समीप सुरक्षित रख दिया। धीरे-धीरे यह सूचना स्थानीय लोगों को मिली। सूचना मिलते ही मंगलवार की सुबह से ही इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना शुरू हो गई है।
प्रभु श्रीराम एवं माता जानकी का सीता कुंड में हुआ था विश्राम
त्रेता युग में प्रभु श्रीराम एवं माता सीता की शादी जनकपुर में संपन्न होने के बाद लौटती बारात सीता कुंड धाम में विश्राम के लिए एक रात रुकी थी। माता सीता के स्नान के लिए इस कुंड का निर्माण किया गया था।
इसमें जलस्रोत के लिए सात कुएं का निर्माण कराया गया था। माता सीता ने स्नान के बाद कुंड के दक्षिण-पूर्व की दिशा में महादेव गिरिजानाथ की स्थापना कर उनकी पूजा-अर्चना भी की थी।
बेदीबनगढ़ पर खुला था, कंगन
इस धरती को त्रेता में प्रभु श्रीराम एवं माता सीता की शादी के बाद बारात लौटने के क्रम में चौठारी की रस्म संपन्न कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यहीं बेदीबनगढ़ पर चौठारी की रस्म हुई थी। उस समय यह क्षेत्र राजा जनक के भाई कुशध्वज के साम्राज्य में था।
कुछ वर्ष पहले तक यहां एक आम का पेड़ था जिसके पत्ते कंगन की तरह लिपटे-चिपटे होते थे। यहां के बुजुर्ग उस पेड़ के बारे में बताते हैं। यह स्थल बेदीबनगढ़ के रूप में विख्यात है।
अन्वेषण में प्राप्त सामग्रियां सीताकुंड के ऐतिहासिक होने का है प्रमाण
धरोहरों व विरासतों के इतिहासविद व चंपारण महोत्सव के प्रणेता प्रसाद रत्नेश्वर ने बताया कि सीता कुंड का पौराणिक महत्व है। रामायण परिपथ में पिपरा स्थित सीता कुंड धाम 18 एकड़ क्षेत्र में करीब 15 फीट ऊंचे टीलेनुमा क्षेत्र में अवस्थित है। जो किसी प्राचीन किले का ध्वंसाशेष है।
यहां बने प्राचीन मंदिर, पुरातात्विक शिलालेख, कई प्राचीन प्रतिमाएं, खंडहर व भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण में मिली सामग्रियां चीख-चीख कर इसके पौराणिकता का प्रमाण देती हैं। वर्ष 1346 ईस्वी में एक शिलालेख कॉर्निंघम ने पाया था।
वर्ष 1990 में पुरातत्ववेत्ता डॉ. पीके मौन को एक पंचमार्क तांबे का सिक्का मिला था। वहीं वर्ष 1995 में मोतिहारी सदर एसडीओ को पांच मौर्यकालीन पंचमार्क सिक्के मिले। जिनमें चार तांबे का एवं एक कांसा का तक्षशिला किस्म का सिक्का था।
पहचान के लिए इन सिक्कों को पुरातत्ववेता एसवी सोहनी को भेजा गया। कुंड के शिलालेखों पर ब्राह्मी लिपी के पूर्व के कई संकेताक्षर अंकित हैं। यहां मिली मौर्यकालीन मूर्तियां इसकी प्राचीनता की गवाही देती हैं। राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित चंपारण गजेटियर में इसका उल्लेख है।
लोक आस्था की धरा है सीताकुंड
सीताकुंड स्थित गिरिजानाथ मंदिर के बारे में लोक आस्था है कि जब कभी आसपास के क्षेत्र में सुखाड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उस समय समीपवर्ती गांवों के लोग गिरिजानाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर कुंड का जल चढ़ाते हैं।
जब शिवलिंग जल में डूब जाता है तो 24 घंटे के अंदर बरसात हो जाती है। इसे कई बार स्थानीय लोगों ने आजमाया है। स्थानीय मुखिया विजय कुमार ने बताया कि लोक आस्था है कि सीताकुंड स्थित इस रामजानकी मंदिर में पूजा करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

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