अभिनेता नीतीश भारद्वाज ने कहा, कारखाने लगाने, कृषि के विकास व रोजगार सृजन से ही बदलेगी तस्वीर
मोतिहारी में कृषि मेला सह सम्मान समारोह में पूर्व सांसद नीतीश भारद्वाज ने कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा हमारी संस्कृति है। समाज में बेहतर कार्य करने वालों का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने माटी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बिजली पानी और सड़क विकास के साधन हैं विकास नहीं। बुजुर्गों का सम्मान करना आवश्यक है क्योंकि उन्होंने देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

जागरण संवाददाता, मोतिहारी (पूर्वी चंपारण)। महात्मा गांधी प्रेक्षागृह में दो दिवसीय कृषि मेला सह सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए पूर्व सांसद सह अभिनेता व महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका निभाने वाले नीतीश भारद्वाज ने कहा कि पुरातन काल से गुरु व शिष्य की परंपरा चली आ रही है।
गुरु को प्रणाम करना एवं सम्मान देना हमारी परंपरा रही है। समाज में बेहतर करने वाले लोगों का सम्मान सनातन संस्कार है। जो भारत में मिलता है, इंडिया में नहीं। इंडिया, जहां मैं रहता हूं अर्थात मुंबई, दिल्ली या बड़े महानगर। पर भारत वह है जहां सनातन संस्कृति जीवित है। मैं खुद पशु चिकित्सक था।
तीन साल घोड़ों की सेवा की। लेकिन माटी के महत्व को नहीं जान सका। दुकान से चावल दाल मिलता था, इसलिए दुकान अधिक महत्वपूर्ण लगता था। जब राजनीति में आया तो माटी का असली महत्व समझ में आया। आज उस माटी से उपजे अनाज लोगों को जीवन दे रहे हैं।
कहा कि बिजली, पानी एवं सड़क विकास नहीं है। यह तो विकास की तरफ ले जाने वाला एक माध्यम है। बिहार में यह तीनों संसाधन उपलब्ध हो गए हैं। इस कारण नए कारखाने लगाने, कृषि के विकास व रोजगार सृजन के अवसर के द्वार यहां खुलेंगे।
बुजुर्गों के सम्मान में उन्होंने कहा कि हमारी तकनीक भले विकसित हुई है, लेकिन 1947 में देश के नव निर्माण की नींव रखी गई थी उसमें इनकी भूमिका अहम है। इस कारण हमको यहां तक पहुंचाने में इनकी भूमिका को प्रणाम करना चाहिए।
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