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    नहीं रूक रहा पशु तस्करी का धंधा

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    Updated: Fri, 18 Nov 2011 01:13 PM (IST)

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    रक्सौल,पूच। अनुमंडल के विभिन्न सीमावर्ती क्षेत्रों के रास्ते पिछले कई दशकों से हो रहे मवेशियों की तस्करी का धंधा आज भी जारी है। पशु तस्करी के कारण क्षेत्र के किसान जहां बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं, वहीं मवेशियों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। फलत: गरीब किसान पशु रखने में अक्षम होते जा रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार पूर्वी चम्पारण जिले में कमोबेश एक दर्जन पशु बाजार या मेले लगते हैं, जहां मवेशियों की खरीद-बिक्री होती है। इनमें से कुछ बाजार समय-समय पर लगते हैं, वहीं कई बाजार तो पूरे साल तक लगते हैं। भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र में सक्रिय तस्कर इन्ही बाजारों से पशुओं को खरीद कर सीमावर्ती गांवों में जमा करते हैं, जहां से उन्हें नेपाल के रास्ते बांगला देश भेज दिया जाता है। पूर्वी चम्पारण जिले से प्रति माह लाखों रुपये की पशु तस्करी हो रही है। इससे संबंधित लोग दिनोदिन मालामाल हो रहे है, वहीं पशुपालन में लगे लोग पशुओं की बढ़ती कीमत से परेशान हैं। किसान बताते हैं कि कुछ वर्ष पहले तक गांव के प्राय: सभी किसानों के पास बैलों का जोड़ा होता था तथा घर के आगे गाय-भैंस बंधी रहती थी। लेकिन आज की स्थिति यह है कि मात्र 20-25 प्रतिशत किसानों के पास ही बैलों के जोड़े या गाय-भैंस है। गरीब किसान जिनके पास अब बैल नहीं रह गए हैं, वे अब कृषि हेतु गांव के संपन्न किसान जिनके पास ट्रैक्टर है, उनके सामने मुंह बाए खड़े रहते हैं। जो उनका जमकर आर्थिक शोषण करते हैं। मवेशियों की तस्करी के कारण पशुओं की कीमतों में वृद्धि होने से भारतीय सीमा क्षेत्र के पशुपालक अपने मवेशियों को नेपाली व्यापारियों के हाथों बेंच देते हैं, जिसका उन्हें अधिक मूल्य प्राप्त होता है। इसके कारण अनुमंडल में दुधारू पशुओं की कमी से नवजात शिशुओं, गर्भवती महिलाओं व मरीजों को दूध नहीं मिल पाता है। परिणाम स्वरूप उन्हें कृत्रिम दूध देना पड़ता है। यहां गौरतलब है कि बिहार पशुधन संरक्षण संव‌र्द्धन अधिनियम 1956 के तहत राज्य से बाहर गाय, भैंस, बछड़ा आदि के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध है। इसका उल्लंघन करने वालों को बिना वारंट पकड़ा जा सकता है। इसके बावजूद सीमा क्षेत्र से होने वाली पशुओं की तस्करी का धंधा परवान पर है, जिस पर रोक लगाने में प्रशासन अक्षम साबित हो रहा है।

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