Darbhanga News : सर्दी के आते ही बिरौल बना विदेशी परिंदों का ठिकाना
Bihar Latest news: बिरौल में सर्दी शुरू होते ही प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। साइबेरिया, मंगोलिया और मध्य एशिया से आए ये परिंदे बिरौल के धा ...और पढ़ें

बिरौल के उछटी चौर में प्रवासी पक्षियों की हलचल। जागरण
संवाद सहयोगी, बिरौल (दरभंगा) । बिरौल थाना क्षेत्र के चौरों में सर्दी शुरू होते ही प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। उछटी, सोनपुर, हनुमान नगर समेत अन्य चौरों में इन दिनों प्रवासी पक्षियों की हलचल खूब देखी जा रही है।
सर्दियों की ठंडी हवा के साथ साइबेरिया, मंगोलिया और मध्य एशिया से आए ये परिंदे अपने रास्ते में बिरौल के पानी से जमे लगे धान की खेतों और जलाशयों को आराम का ठिकाना बना रहे हैं।
स्थानीय किसान बताते हैं कि सुबह की धुंध में इनकी चहचहाहट से खेतों में एक अलग ही संगीत बजता है, जो मौसम के बदलाव का संकेत देता है।
इन क्षेत्रों में प्रवासी जलपक्षियों की आवाजाही बढ़ी है, जहां बतखें और हंस ठंडी हवाओं से बचते हुए किनारे पर अठखेलियां करते देखे गए हैं। बिरौल के चौरों धान के खेतों के बीच, और छोटे जलाशयों के पास इन पक्षियों की टोली देखी जा सकती है।
इन पक्षियों का आगमन न केवल पर्यावरणीय संतुलन के लिए अच्छा है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए एक आकर्षण भी बन गया है। लोग सुबह-सुबह पहुंचते हैं, कैमरों में इन खूबसूरत दृश्यों को कैद करते हैं। हालांकि यदि आप बर्ड वाचिंग के शौकीन हैं, तो इस मौसम में बिरौल के खुले मैदानों में सुबह की ठंडी हवा का आनंद लेते हुए इन सुंदर परिंदों को देखना एक यादगार अनुभव हो सकता है।
वहीं प्रवासी पक्षियों का शिकारमाही भी हो रहा है। इधर बिरौल एसडीपीओ प्रभाकर तिवारी ने कहा कि वन संरक्षण विभाग की जिम्मेवारी है कि प्रवासी पक्षियों की शिकार नही हो, इस पर पैनी नजर रखनी होगी।
कुशेश्वस्थान में कभी पक्षियों के कलरव से चौर गूंजते थे
कुशेश्वरस्थान : कुशेश्वरस्थान के विभिन्न चौरों में विगत पांच-छह वर्षों से प्रवासी पक्षियों का आना लगभग बंद हो गया है। कभी शरद ऋतु की चांदनी रातों में जहां विदेशी मेहमान पक्षियों की कलरव से चौर गूंजते थे, आज वहां सन्नाटा पसरा हुआ है।
प्रवासी पक्षियों की अनुपस्थिति से न केवल क्षेत्र की प्राकृतिक पहचान प्रभावित हुई है, बल्कि पर्यटन और पर्यावरण संतुलन पर भी असर पड़ा है। जानकारों के अनुसार प्रवासी पक्षियों के नहीं आने का प्रमुख कारण चौरों में पानी का अभाव है।
दोनों प्रखंडों में फैले लगभग 14 हजार हेक्टेयर क्षेत्र के चौर कभी प्रवासी पक्षियों के प्रमुख शरणस्थली हुआ करते थे। लेकिन कमला बलान नदी के पश्चिमी और करेह नदी के उत्तरी तटबंध को फुहिया में मिलाने के बाद कुशेश्वरस्थान के सभी 14 तथा पूर्वी प्रखंड के छह पंचायतों में बाढ़ का पानी आना बंद हो गया।
इसके कारण चौरों की जलग्रहण क्षमता समाप्त हो गई और वहां पानी का घोर संकट उत्पन्न हो गया। पानी नहीं रहने से प्रवासी पक्षियों का मुख्य भोजन फाइटोप्लैंकटन और जूप्लैंकटन भी लगभग समाप्त हो गया है।
यही वजह है कि वर्ष दर वर्ष यहां आने वाले पक्षियों की संख्या घटती चली गई और अब स्थिति यह है कि चौरों में मेहमान पक्षियों का दर्शन दुर्लभ हो गया है। बताया जाता है कि शरद ऋतु के आगमन के साथ ही मध्य नवंबर से रूस, जापान, मलेशिया, भूटान, बांग्लादेश, चीन, इंडोनेशिया, मारीशस सहित एक दर्जन से अधिक देशों से लाखों की संख्या में प्रवासी पक्षी कुशेश्वरस्थान के चौरों में पहुंचते थे।
इनमें मैल, गडवाल, लालसर, मलार्ड, नीलसर, कॉमन टील, सारवर, मजीठा, सेलडक, हरसिला, कारन, डुमरी, कोईरा, रेड मलार्ड सहित चार दर्जन से अधिक प्रजातियां शामिल थीं। ये पक्षी करीब पांच-छह महीने यहां प्रवास कर प्रजनन करते और ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में अपने नए मेहमानों के साथ वापस लौट जाते थे।

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