Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्या स्वर्ण वैदेही मखाना बनेगा किसानों की आर्थिक उन्नति का सुनहरा रास्ता?

    By Mrityunjay Bhardwaj Edited By: Dharmendra Singh
    Updated: Thu, 04 Dec 2025 07:32 PM (IST)

    Darbhanga News : 28 फरवरी 2002 को स्थापित यह केंद्र विश्व का एकमात्र संस्थान है जो पूरी तरह मखाना अनुसंधान को समर्पित रहा है। निरंतर वैज्ञानिक अनुसंधा ...और पढ़ें

    Hero Image

    राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा। जागरण

    विनय कुमार, दरभंगा । मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर मखाना आज न केवल बिहार की पहचान बन चुका है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण सुपर फूड के रूप में स्थापित हो गया है। मखाना क्षेत्र में आए इस व्यापक परिवर्तन में राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण व केन्द्रीय भूमिका निभाई है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    28 फरवरी 2002 को स्थापित यह केंद्र विश्व का एकमात्र संस्थान है जो पूरी तरह मखाना अनुसंधान को समर्पित रहा है। निरंतर वैज्ञानिक अनुसंधान, उन्नत तकनीकों के विकास और व्यापक किसान प्रशिक्षण के माध्यम से इसने पिछले 23 वर्षों में मखाना उत्पादन, उत्पादकता और इसके वैश्विक विस्तार को नई दिशा, नई गति और नई पहचान प्रदान की है।

    मई 2023 में इसे पुनः राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त होने से इसके कार्यों को और अधिक गति मिली है, साथ ही अनुसंधान का दायरा बढ़ाते हुए इसमें कमल, सिंघाड़ा, मछली और अन्य जलीय फसलों को भी शामिल किया गया है। पिछले लगभग एक दशक में मिथिला के मखाने ने बिहार को वैश्विक पटल पर नई पहचान दिलाई है।

    पौष्टिक तत्वों, औषधीय गुणों और बढ़ती उपभोक्ता जागरूकता के चलते मखाना आज विश्व स्तर पर स्वास्थ्यवर्धक सुपर फूड के रूप में स्थापित है। इसकी वैश्विक मांग बढ़ने के साथ-साथ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसकी कीमतों में भी रिकार्ड वृद्धि हुई है।

    ज्ञात हो कि दुनिया के कुल मखाना उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा बिहार के मिथिलांचल में ही होता है, जिससे यह फसल किसानों और उद्यमियों के लिए आमदनी बढ़ाने का एक स्वर्णिम अवसर बन गई है।

    अनुसंधान केंद्र की उपलब्धियों ने इस बदलाव में निर्णायक भूमिका निभाई है। वर्ष 2013 में विकसित की गई मखाने की पहली उन्नत किस्म ‘स्वर्ण वैदेही’ ने उत्पादकता को लगभग दोगुना कर दिया। इसी प्रकार, तालाब आधारित पारंपरिक खेती के स्थान पर खेत प्रणाली से मखाना की खेती की शुरुआत ने मखाना उत्पादन को नई दिशा दी।

    कम जल-गहराई (1–1.5 फीट) में खेती की इस तकनीक ने उत्पादन में बड़ा बदलाव लाते हुए हजारों नए किसानों को इस फसल से जोड़ा। केंद्र द्वारा विकसित क्रापिंग सिस्टम आधारित खेती, जिसमें एक ही खेत में वर्षभर में दो-तीन फसलें ली जा सकती हैं, ने भूमि उपयोग दक्षता और किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि की है।

    इसके साथ ही मछली-सह-मखाना प्रणाली, पोषक तत्व प्रबंधन, फसल सुरक्षा और वैज्ञानिक पैकेज आफ प्रैक्टिसेज ने उत्पादन और उत्पादकता के नए आयाम स्थापित किए हैं। इसी अवधि में केंद्र ने सिंघाड़ा की दो कांटारहित उन्नत किस्में ‘स्वर्ण हरित’ और ‘स्वर्ण लोहित’ विकसित कीं, जिनसे सिंघाड़ा की खेती सुरक्षित, आसान और नए क्षेत्रों में तेजी से विस्तारित हुई है।

    अनुसंधान केंद्र ने पिछले वर्षों में पांच हजार से अधिक किसानों और उद्यमियों को मखाना उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और विपणन का प्रशिक्षण दिया है। इसके परिणामस्वरूप उत्तर बिहार के अलावा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, असम, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में भी मखाना खेती का विस्तार हुआ है। मखाने की खेती का क्षेत्रफल जहां दस वर्ष पूर्व 13–15 हजार हेक्टेयर था, वहीं आज यह बढ़कर 40 हजार हेक्टेयर से अधिक हो चुका है।

    एक जिला एक उत्पादन के लिए जिले को को मिल चुका है पुरस्कार

    मिथिला मखाना की विशिष्ट गुणवत्ता और परंपरा को मान्यता देते हुए वर्ष 2022 में इसे जीआई टैग प्राप्त हुआ। इसी क्रम में ‘एक जिला, एक उत्पाद’ योजना में उत्कृष्ट कार्य हेतु दरभंगा जिले को वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री पुरस्कार प्रदान किया गया।

    केंद्र सरकार द्वारा बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना की घोषणा तथा मखाने को अलग से अंतरराष्ट्रीय एचएस कोड प्रदान किया जाना इसके वैश्विक विस्तार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। हाल ही में भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौते के तहत मखाना निर्यात के लिए नए अवसर खुले हैं, जिससे मखाने की अंतरराष्ट्रीय मांग में तेजी आने की प्रबल संभावना है।

    इन सभी सकारात्मक संकेतों को देखते हुए अनुमान है कि अगले दशक में भारत में मखाना उत्पादन 35 हजार से बढ़कर 3.5 लाख टन तक पहुंच सकता है, जबकि इसका बाजार मूल्य 5 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 50 हजार करोड़ रुपये तक होने की संभावनाएं हैं। यह परिवर्तन निश्चित रूप से मिथिला सहित पूरे बिहार की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को नई मजबूती प्रदान करेगा।

    राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा, अपनी बहु-विषयक वैज्ञानिक टीम और आधुनिक प्रयोगशाला सुविधाओं के साथ मखाना अनुसंधान, प्रसंस्करण तकनीकों और मूल्य संवर्धन के क्षेत्र में नए मानक स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

    भविष्य में इसका लक्ष्य न केवल देशव्यापी स्तर पर मखाना खेती का विस्तार करना है, बल्कि किसानों की आय वृद्धि, रोजगार सृजन और कृषि अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा देना है।