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    Darbhanga News : एलईडी की चमक में खोती मिट्टी के दीये की रोशनी

    By Sadare Alam Edited By: Dharmendra Singh
    Updated: Sun, 19 Oct 2025 04:43 PM (IST)

    दीपावली के नजदीक आते ही, बाजारों में आधुनिक लाइटों की चमक बढ़ गई है, जिससे मिट्टी के दीयों की मांग कम हो रही है। कुम्हारों का कहना है कि अब दीये बनाने का काम पहले जैसा नहीं रहा। मिट्टी के दीयों का महत्व बताते हुए पंडित सुनील मिश्र कहते हैं कि ये मंगल ग्रह और भूमि का प्रतीक हैं, जिनसे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। लोगों से मिट्टी के दीये जलाने और परंपरा को बचाने की अपील की गई है।

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    माधोपुर मे दिया निर्माण करते कुम्हार व आचार्य सुमन मिश्र व लक्ष्मेशवर चौबे। जागरण

    संवाद सहयोगी, सिंहवाड़ा (दरभंगा)। दीपावली नजदीक है, बाजार जगमगा रहे हैं, लेकिन इस आधुनिक रोशनी में मिट्टी के दीयों की चमक फीकी पड़ती जा रही है। बिजली की झालरों, मोमबत्तियों और सजावटी लाइटों के बीच परंपरागत दीयों की मांग अब नगण्य रह गई है।

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    सिंहवाड़ा प्रखंड के माधोपुर कुम्हार टोली निवासी उप मुखिया संतोष पंडित, राय जी पंडित, दशरथ पंडित, उमेश पंडित, विकास पंडित का कहना है कि पहले जहां दीपावली से एक माह पूर्व से ही दीए और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम शुरू हो जाता था, वहीं अब मुश्किल से कुछ ही लोग खरीदारी करने आते हैं। 15 वर्ष पूर्व हम कुम्हार जाति एक महीने तक दिन-रात दीये बनाते थे।

     

    मेहनत के बावजूद नहीं मिल रहा इस परंपरागत कला को सम्मान व मूल्य 

     

    दीपावली के पहले घर-घर जाकर दीपक और बर्तन पहुंचाते थे। अब डिजिटल युग में वह रौनक नहीं रही। थोड़ी बहुत मिट्टी के बर्तन ही बनाता हूं, जो लोग जरूरत पर खुद आकर ले जाते हैं। मेहनत के बावजूद इस परंपरागत कला को सम्मान और मूल्य नहीं मिल रहा, जिसके वह हकदार हैं।

     

    मिट्टी के दीपक का महत्व


    आचार्य पंडित सुनील मिश्र बताते हैं कि मिट्टी मंगल ग्रह और भूमि का प्रतीक है। दीपक में जलने वाला तेल शनि का प्रतीक माना जाता है। दीपावली की रात मिट्टी के दीये में तेल डालकर जलाने से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और घर में सुख, शांति व समृद्धि आती है।

    पूर्व प्रधानाचार्य लक्ष्मेश्वर चौबे व शिक्षक बच्चन पंडित ने लोगों से परंपरा व पर्यावरण बचाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि मिट्टी के दीये हमारी संस्कृति का प्रतीक हैं। इन्हें विलुप्त न होने दें। इस दीपावली सभी लोग संकल्प लें कि मिट्टी के दीये जलाएं, कुम्हारों से खरीदें और दूसरों को भी प्रेरित करें। इससे न केवल परंपरा जीवित रहेगी बल्कि भारतीय संस्कृति देखने को मिलेगी।