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    स्वावलंबन की दीपमाला से निकल रही शिक्षा की ज्योति

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 15 Aug 2022 12:17 AM (IST)

    दरभंगा। हायाघाट प्रखंड मुख्यालय से पांच किमी की दूरी पर मझौलिया में स्वतंत्रता संग्राम की निशा

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    स्वावलंबन की दीपमाला से निकल रही शिक्षा की ज्योति

    दरभंगा। हायाघाट प्रखंड मुख्यालय से पांच किमी की दूरी पर मझौलिया में स्वतंत्रता संग्राम की निशानी बिहार की पहली महिला विद्यापीठ के परिसर में दाखिल होने के बाद आजादी के दीवानों की गौरव गाथा स्वत: दिखने लगती है। यहां सर्वविदित है कि कैसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कहने पर रघुनाथपुर के नामचीन जमींदार राजेंद्र प्रसाद मिश्र के पुत्र स्वतंत्रता सेनानी रामनंदन मिश्र की अगुआई में मगन आश्रम व महिला विद्यापीठ की स्थापना की गई।

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    जानकार बताते हैं कि मगन आश्रम में आजादी की योजना बनाई जाती थी। महिला विद्यापीठ में महिलाओं को स्वावलंबन की शिक्षा दी जाती थी। उन्हें दीये की टिमटिमाती रोशनी के बीच रात में प्रारंभिक ज्ञान दिया जाता था। दिनभर तेल पेरने, सूत काटने, बकरी पालन व गो पालन जैसी रोजगार परक जानकारी दी जाती थी। इस विद्यापीठ की प्रसिद्धि पूरे देश में थी। देश के कोने-कोने से महिलाएं यहां आती थीं। यहां 1929 में सरदार बल्लभ भाई पटेल भी आए। इसके बाद डा. राजेंद्र प्रसाद, जेबी कृपलानी, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी,विमला फारुखी, जया प्रभा देवी के साथ सैकड़ों कार्यकर्ता भी जुटे। सभी मगन आश्रम में आजादी की योजनाओं को कार्य रूप देते थे और विद्यापीठ में स्वावलंबन की सीख।

    देश की आजादी के बाद विद्यापीठ परिसर का खूब विकास हुआ। अब यहां पहली से 10 वीं तक की पढ़ाई होती है। पहले परिसर में राजकीय नई तालीम बुनियादी विद्यालय की स्थापना हुई। इसमें 335 छात्र-छात्राएं पहली से आठवीं तक की शिक्षा पाती हैं। इसी परिसर में स्थापित उच्च माध्यमिक विद्यालय में 167 विद्यार्थी नौवीं और 10वीं की शिक्षा ले रहे हैं। विद्यालय में 13 शिक्षक कार्यरत हैं। नए भवन की खूबसूरती देखते बनती है। इसे देखते ही तिरंगा का अहसास होता है।

    सेवानिवृत्त शिक्षक सुरेंद्र चौधरी बताते हैं- महिला विद्यापीठ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य महिलाओं व लड़कियों का उत्थान था। रोजगारोन्मुखी बुनियादी शिक्षा के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध महिलाओं व लड़कियों को गोलबंद करना था। विद्यापीठ में महिलाओं और लड़कियों के द्वारा कोल्हू पेरकर तेल निकाला जाता था। चरखा चलाकर सूत काटा जाता था। खेतीबारी, फल उत्पादन, गो-पालन, बकरी पालन आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था। यहीं से पर्दा प्रथा, छुआछूत, नशामुक्ति, विधवा पुनर्विवाह आदि को लेकर आंदोलन चला।

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