अपने मूल स्वरूप को खो रहा एतिहासिक गंगासागर तालाब
मैं गंगासागर हूं। कभी अपने स्वच्छ जल से लोगों की प्यास बुझाया करता था। आज मेरा पानी इतना दूषित हो गया है कि मैं अपनी पहचान तक खो बैठा हूं।
दरभंगा । मैं गंगासागर हूं। कभी अपने स्वच्छ जल से लोगों की प्यास बुझाया करता था। आज मेरा पानी इतना दूषित हो गया है कि मैं अपनी पहचान तक खो बैठा हूं। मेरे पास आने से लोग बचते हैं। बहुत मजबूरी में ही लोग डर-डर के मेरे पास आते हैं। वह भी कुछ ही क्षणों के लिए। कोई शाम के समय मेरे पास बैठकर मेरी पीड़ा नहीं सुनना चाहता। मेरे चारों तरफ आबादी है, बावजूद मैं काफी अकेला हूं। जी हां, गंगासागर सागर तालाब की आज यही वास्तविकता बनकर रह गई है। तालाब के चारों ओर बसी आबादी मुझे रोजाना गंदी करती है। घरों का गंदा पानी और शौचालयों की टंकी से निकलने वाले गंदगी से मेरा मन दुखी हो जाता है। और तो और नगर निगम का गंदा पानी भी मुझमें ही गिराया जा रहा है। चारों तरफ का कचरा मुझ में गिराकर मुझमें पलने वाले मछलियों के साथ यह मानव जाति अन्याय कर रही है। मेरा दायरा दिन-प्रतिदिन सिमटता जा रहा है। कचरा भरकर मेरा अस्तित्व को मिटाने में किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। कभी आस्था का पर्व यहां हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आज स्थिति यह है कि निधन और गरीब तबके के लोग ही यहां लोक आस्था का पर्व छठ मनाते हैं। नाली की व्यवस्था नहीं होने के कारण तालाब के किनारे बसी आबादी गंदा पानी इसी में गिराती है। प्रति वर्ष छठ के अवसर पर नाममात्र का चूना का छिड़काव किया जाता है। पानी इतना गंदा हो चुका है कि तालाब में मानों हरियाली दिखाई देती है। जानकारों की मानें तो तालाब का पानी अब नहाने के लायक भी नहीं रहा। इधर, निगम प्रशासन समय रहते सबकुछ ठीक कर लेने का दंभ भर रहा है। नगर अभियंता रतन किशोर वर्मा ने बताया कि शहरी क्षेत्र के तालाब मत्स्य विभाग के अधीन है। तालाबों की सफाई का जिम्मा उनके ऊपर ही है।
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