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    Ram Mandir: जनकपुरधाम से प्राचीन है मिथिला का श्रीराम मंदिर, 1806 में हुई थी स्थापना; ये है खास बात

    By Mukesh Srivastava Edited By: Mukul Kumar
    Updated: Mon, 08 Jan 2024 03:40 PM (IST)

    दरभंगा राज परिसर स्थित श्रीराम मंदिर नेपाल के जनकपुरधाम से भी प्राचीन है। वर्ष 1806 में तत्कालीन महाराज क्षत्र सिंह ने इस मंदिर की स्थापना कराई थी जो आज कामेश्वर नगर (नरगौना पैलेस) परिसर के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित कामेश्वर झा ने बताया कि यहां 50 वर्षों से प्रतिदिन नियमित रूप से सत्संग के माध्यम से भक्त रामचरित मानस का पाठ करते हैं।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

    मुकेश कुमार श्रीवास्तव, दरभंगा। दरभंगा राज परिसर स्थित श्रीराम मंदिर नेपाल के जनकपुरधाम से भी प्राचीन है। वर्ष 1806 में तत्कालीन महाराज क्षत्र सिंह ने इस मंदिर की स्थापना कराई थी, जो आज कामेश्वर नगर (नरगौना पैलेस) परिसर के नाम से प्रसिद्ध है।

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    यह ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय परिसर के रूप में भी जाना जाता है। इसके 80 वर्ष बाद जनकपुरधाम में श्रीराम मंदिर की स्थापना हुई थी। मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित कामेश्वर झा ने बताया कि यहां 50 वर्षों से प्रतिदिन नियमित रूप से सत्संग के माध्यम से भक्त रामचरित मानस का पाठ करते हैं।

    इस मंदिर की देखरेख कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के माध्यम से होती है। भक्त गजानन प्रसाद सिंह, मुन्नी लाल साह, ओमनारायण साह, मोहन आदि ने बताया कि विश्वविद्यालय परिसर होने के बाद भी यहां रोजाना आते हैं, इससे काफी सुकून मिलता है।

    मिथिला के पहले श्रीराम मंदिर में पूजा-अर्चना करने से मन को शांति मिलती है वह कहीं प्राप्त नहीं होती है। दरभंगा राज धरोहर के शोधार्थी कुमुद सिंह ने कहा कि 16वीं शताब्दी में राजा नरपति सिंह ने सीतामढ़ी जिले के जानकी मंदिर की भूमि को बंदोबस्त किया था।

    इसके बाद 1806 में महाराज क्षत्र सिंह ने अपने परिसर में श्रीराम मंदिर की स्थापना की। इसके बाद 1886 में अयोध्या के सरयू तट से प्राप्त प्रतिमा को जनकपुरधाम में स्थापित किया गया। ऐसी स्थिति में मिथिला की सबसे पुरानी भगवान श्रीराम की कोई प्रतिमा व मंदिर है तो वह दरभंगा की है।

    उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना तो मिथिला में जानकी काल से हो रही है। हालांकि, भगवान श्रीराम के मिथिला के दामाद होने के बावजूद कोई प्रतिमा अथवा मंदिर की स्थापना 1806 से पहले नहीं हुई।

    हालांकि, महाराज क्षत्र सिंह के प्रयास से ना सिर्फ उन्होंने अपने परिसर में मंदिर की स्थापना की, बल्कि 1817 में अहिल्यास्थान में भी रामजानकी मंदिर की स्थापना कर इस परंपरा को मिथिला के गांव-गांव तक पहुंचाया। इसके बाद तो गांव-गांव में रामजानकी मंदिर की स्थापना होने लगी।

    उन्होंने कहा कि 1934 के भूकंप में मंदिर के क्षतिग्रस्त होने पर तात्कालिक महाराज कामेश्वर सिंह ने इसका जीर्णोद्धार कराया था। इसके बाद दरभंगा निवासी (वर्तमान में समस्तीपुर जिले के विदेहनगर डरोरी) वैदेही विवाह संकृतन के रचयिता स्व. स्नेहलता की रचना ने मिथिला के दामाद श्रीराम को हर जुबां पर ला दिया।

    राज परिवार में संरक्षित है रामचरित्र मानस की मूल प्रति

    राज धरोहर की शोधार्थी कुमुद सिंह ने बताया कि वर्ष 1560 के आस-पास तुलसीदास की रचित रामचरित्र मानस की मूल प्रति आज भी दरभंगा महाराज परिवार के पास संरक्षित है। कहा जाता है कि यह पांडुलिपि तत्कालीन महाराज महेश ठाकुर के वशंज को प्राप्त हुई थी।

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