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    Darbhanga News : मिथिला मखाना ने बिहार को वैश्विक पटल पर दी नई पहचान

    By Vinay Kumar Edited By: Dharmendra Singh
    Updated: Sun, 09 Nov 2025 08:02 PM (IST)

    मिथिला मखाना ने बिहार को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान दी है। इस उत्पाद ने न केवल बिहार में, बल्कि पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मिथिला मखाना बिहार की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

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    राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा। जागरण

    विनय कुमार, दरभंगा । विगत 23 वर्षो में मिथिला के मखाने ने बिहार को वैश्विक पटल पर एक नई पहचान दिलाई है। मखाने में मौजूद पौष्टिक तत्वों और औषधीय गुणों के प्रति बढ़ती जागरूकता के चलते यह एक स्वास्थ्यवर्धक सुपरफूड के रूप में वैश्विक स्तर पर स्थापित हो चुका है।

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    इसकी वैश्विक मांग और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसकी कीमतों में भी अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इस स्थिति ने बिहार, विशेष रूप से मिथिला क्षेत्र के किसानों और उद्यमियों के लिए आमदनी बढ़ाने का एक स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है।

    विदित हो कि विश्व के कुल मखाना उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत बिहार में होता है। दरभंगा स्थित राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र के निरंतर शोध और प्रसार प्रयास, कृषकों एवं उद्यमियों की बढ़ती रुचि, अनुकूल नीतियां, और मखाने के उत्पादन व प्रसंस्करण में आर्थिक संभावनाओं ने मिलकर हाल के वर्षों में कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं।

    पिछले सात वर्षों में मखाने की खेती का क्षेत्रफल लगभग तीन गुना बढ़ा है। वर्तमान में यह लगभग 40 हजार हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित उच्च उत्पादक किस्म ‘स्वर्ण वैदेही’ और उन्नत तकनीकों की सहायता से मखाने की उत्पादकता तथा इससे प्राप्त शुद्ध आय में भी अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है।

    अब बिहार के बाहर भी असम, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मखाने की खेती का विस्तार हो रहा है, जिससे यह फसल अब एक राष्ट्रीय फलक पर अपनी जगह बना रही है।

    वैश्विक स्तर पर मखाने के बढ़ते महत्व और त्वरित अनुसंधान की आवश्यकता को देखते हुए मई 2023 में दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र को राष्ट्रीय दर्जा प्रदान किया गया, जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी विस्तार को नई गति मिली है।

    एक जिला, एक उत्पाद योजना के तहत मखाना में उत्कृष्ट योगदान के लिए दरभंगा जिला को वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री पुरस्कार प्राप्त हुआ। वर्ष 2022 में 'मिथिला मखाना' को जीआई (भौगोलिक संकेतक) टैग मिला।

    इसी वर्ष बिहार में राष्ट्रीय मखाना बोर्ड की स्थापना हुई है, जिसका उद्देश्य मखाने के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन एवं विपणन को संस्थागत समर्थन देना है।

    मखाने को अलग से अंतरराष्ट्रीय एचएस कोड भी प्राप्त हो चुका है, जिससे इसे वैश्विक बाजार में विशिष्ट पहचान मिली है। मखाना की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए 75 प्रतिशत अनुदान की सुविधा अब बिहार के 10 जिलों की जगह 16 जिलों को दी जा रही है। इनमें दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, सुपौल, अररिया, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया, समस्तीपुर, भागलपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण एवं मुजफ्फरपुर शामिल हैं।

    योजना के क्रियान्वयन पर अगले दो वर्षों में लगभग 17 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे। जिसमें स्वर्ण वैदेही एवं सबौर मखाना-1 की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा।

    मखाना उद्योग उत्तर बिहार के ग्रामीण विकास का इंजन

    राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा के वरिष्ठ विज्ञानी डा. मनोज कुमार ने कहा कि मखाना उद्योग उत्तर बिहार के ग्रामीण विकास का इंजन बन चुका है। यह स्थानीय युवाओं को रोजगार के साथ ही बाहरी युवाओं को आकर्षित कर बिहार को पलायन-मुक्त राज्य की ओर ले जा रहा है।

    अब बिहार सिर्फ श्रमिक भेजने वाला राज्य नहीं, बल्कि अवसर देने वाला राज्य बन रहा है। अगले दस वर्षों में भारत में मखाने का उत्पादन 40 हजार टन से बढ़कर 3.5 लाख टन तक पहुंच सकता है। इसका बाजार मूल्य 6,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 50 हजार करोड़ रुपये तक जा सकता है। यह परिवर्तन निश्चित रूप से मिथिला सहित समूचे बिहार की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को सशक्त करने वाला है।