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    Darbhanga: त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने की थी शिवलिंग की स्थापना, नाम पड़ा कुशेश्वरस्थान

    By Mrityunjay BhardwajEdited By: Ashish Pandey
    Updated: Fri, 17 Feb 2023 04:26 PM (IST)

    Kusheshwarsthan Darbhanga बिहार ही नहीं झारखंड बंगाल आदि से भी लोग मन्नतें पूरी करने मिथिलांचल की प्रसिद्ध शिवनगरी कुशेश्वरस्थान पहुंचते हैं। पड़ोसी मुल्क नेपाल से भी शिव भक्त बाबा कुशेश्वरनाथ का जलाभिषेक करने आते हैं। यहां के शिवलिंग की स्थापना के संबंध में दो तरह की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं।

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    दरभंगा- त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने की थी शिवलिंग की स्थापना, नाम पड़ा कुशेश्वरस्थान

    अरुण कुमार राय, संवाद सहयोगी, (कुशेश्वरस्थान) दरभंगा: सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि राज्य की सीमा से सटे अन्य राज्यों झारखंड, बंगाल आदि से भी लोग अपनी मन्नतें पूरी करने मिथिलांचल की प्रसिद्ध शिवनगरी कुशेश्वरस्थान पहुंचते हैं। इसके अलावा पड़ोसी मुल्क नेपाल से भी शिव भक्त बाबा कुशेश्वरनाथ का जलाभिषेक करने बाबा की नगरी आते हैं। यहां पूरे दिन 'हर-हर महादेव' व 'बाबा कुशेश्वरनाथ की जय' के समवेत स्वर का जयकारा लगता रहता है।

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    स्थापना के संबंध में दो जनश्रुतियां हैं प्रचलित

    कुशेश्वरस्थान के शिवलिंग की स्थापना के संबंध में दो तरह की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। पहली किंवदंती के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के पुत्र कुश द्वारा यहां शिवलिंग की स्थापना की गई। इसलिए इसका नाम कुशेश्वरस्थान पड़ा।

    दूसरी किंवदंती के अनुसार यहां कुश का घना जंगल था, जिसके साक्ष्य अभी भी यहां दिखाई पड़ते हैं। इन जंगलों में आस-पास के चरवाहे अपनी गायें चराने के लिए लाते थे। इन्हीं में से एक कुंवारी गाय (बाछी) इसी जंगल में एक निश्चित स्थान पर प्रतिदिन आकर दूध गिरा कर चली जाती थी। इसकी भनक चरवाहों को लगी। इनमें खगा हजारी नामक संत प्रवृत्ति का एक चरवाहा भी था।

    उन्होंने उक्त कुंवारी गाय के द्वारा दूध गिराए जाने वाले स्थान पर खुदाई की तो वहां शिवलिंग अवतरित हुआ। उसी रात भगवान शिव ने खगा हजारी को स्वप्न दिया कि यहां मंदिर बना कर पूजा-अर्चना शुरू करो। बताया जाता है कि तब खगा हजारी ने उक्त स्थान पर फूस के मंदिर का निर्माण कर पूजा-अर्चना करना शुरू किया।

    ढाई से तीन लाख श्रद्धालु करते हैं जलाभिषेक

    18वीं शताब्दी में नरहन सकरपुरा ड्योढ़ी की रानी कमलावती ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया। 70 के दशक में कोलकाता के बिड़ला ट्रस्ट द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। 90 के दशक में स्थानीय बाजार के नवयुवक संघ ने मंदिर की देखभाल शुरू कर दी। इसके बाद वर्ष 2016-17 से यह मंदिर न्यास समिति के अधीन है।

    यहां प्रत्येक साल महाशिवरात्रि के अवसर भारी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। सहरसा, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर सहित पड़ोसी देश नेपाल से भी ढाई से तीन लाख श्रद्धालु जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि में यहां भव्य शिव विवाह महोत्सव का आयोजन किया जाता है। मंदिर को गेंदे के फूल एवं रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से आकर्षक रूप से सजाया जाता है।