Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कोसी की बाढ़ में बहे सपने, एक साल बाद भी 25 परिवार प्लास्टिक के तंबुओं में सिसकते

    Updated: Sun, 28 Sep 2025 12:12 PM (IST)

    दरभंगा के भुभौल गांव में 29 सितंबर 2024 को कोसी नदी में आई बाढ़ ने तबाही मचा दी। एक साल बाद भी गांव के लोगों का दर्द कम नहीं हुआ है। कई घर बह गए खेत बर्बाद हो गए और जिंदगियां उजड़ गईं। पीड़ितों को सरकारी सहायता मिली लेकिन वह नाकाफी है। कई परिवार अभी भी प्लास्टिक के तंबुओं में रहने को मजबूर हैं।

    Hero Image
    ध्यानार्थ : भुभौल की तबाही के एक साल गुजरे, न आंसू सूखे, न दर्द थमा

    संवाद सहयोगी, गौड़ाबौराम। 29 सितंबर, 2024 की वह रात आज भी भुभौल गांव के लोगों की नींद में सिहरन बनकर लौटती है। उस रात कोसी नदी का टूटा पश्चिमी तटबंध जैसे गांव को निगल गया था। एक साल गुजरे, लेकिन न तो आंसू सूखे, न ही दर्द थमा। गांव के नाम पर अब सिर्फ टूटी दीवारें, गहरे गड्ढे और उजड़ी हुई जिंदगियां बची हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    किरतपुर प्रखंड के नरकटिया भंडरिया पंचायत का भुभौल गांव कभी हरियाली और चहल-पहल से भरा रहता था। लेकिन कोसी की बाढ़ ने सब छीन लिया। घर, खेत, रिश्ते और उम्मीदें।

    बाढ़ में बह गए 244 घर

    अंचलाधिकारी आशुतोष सनी के अनुसार, 180 कच्चे और 64 पक्के मकान, यानी कुल 244 घर बह गए थे। पीड़ितों को सरकारी सहायता दी गई, फूस एवं झोपड़ी के मकान की आंशिक क्षति के लिए चार हजार रुपये, पूरी तरह ध्वस्त झोपड़ी के लिए आठ हजार, एस्बेस्टस वाले कच्चे मकान के लिए 75 हजार और पूर्ण ध्वस्त पक्के मकान के लिए आपदा प्रबंधन विभाग से एक लाख 20 हजार रुपये गृह क्षति राशि के तौर पर दिए गए।

    पर ग्रामीणों का सवाल है- क्या चंद हजार रुपये एक पूरा घर, एक पूरी जिंदगी वापस ला सकते हैं? घर बहने के बाद जितने गहरे गड्ढे हैं उनमें प्राप्त गृह क्षति राशि से गड्ढे भी नहीं भरे जा सकते हैं । मोहन साहू की आंखें भर आती हैं।

    शुभ मुहूर्त के इंतजार में बहा घर

    वे कहते हैं, पांच कमरे का नया मकान बनाया ही था। गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा में मकान तो बहा ही, भाई विंदेश्वर और भाभी द्रौपदी भी कोसी में समा गए। शव चार दिन बाद झगड़ुआ में मिला। जहां कभी घर थे, वहां अब प्लास्टिक की झोपड़ियां हैं।

    सिर्फ जिंदा हैं, जिंदगी व जिंदादिली गुम

    आज भी 25 परिवार प्लास्टिक के तंबुओं में दूसरों की जमीन पर रह रहे हैं। वृद्ध महिलाएं पबिया देवी, मुनिया देवी, रूना देवी, हीरा देवी कहती हैं कि शुद्ध पानी नहीं, शौचालय नहीं, पोषण नहीं। एक इंसान के जीने की बुनियादी जरूरतें तक नहीं मिल रहीं। वहीं विस्थापित पीड़ित उमेश कमती के अनुसार- बाढ़ में हमारा सब कुछ बह गया, अब सिर्फ जिंदा हैं, जिंदगी व जिंदादिली गुम है।

    अस्थायी स्कूल एक किलोमीटर दूर

    बाढ़ में न्यू अनुसूचित प्राथमिक विद्यालय ध्वस्त हो गया। अस्थायी स्कूल एक किलोमीटर दूर बनाया गया। बच्चों को पहुंचने के लिए तीन जगह पानी और एक जगह नाव से गुजरना पड़ता है। रास्ते में 15 फीट गहरा जलभरा गड्ढा है, जहां दो महीने पहले एक बच्चे की मौत हो चुकी है। शमसुल राइन कहते हैं कि हर दिन लगता है कि बच्चे स्कूल नहीं, खतरे की ओर जा रहे हैं।

    तटबंध की मरम्मत हुई, नई सड़क भी बनी। लेकिन स्थानीय निवासी श्याम साहू और राहुल पासवान कहते हैं, ये नई सड़क, टूटी उम्मीदों पर टिकी रेंगती हुई सांस है। अगली बार बाढ़ में क्या बचेगा,कोई नहीं जानता।

    यह पुनर्निर्मित बांध टूटे हुए धागों में लगाए गए गांठ जैसा है, जिसके पुनः खुलने की आशंका है। संतोष मुखिया और बुच्ची साहू बताते हैं कि मुआवजा कर्ज में गया, खेती बर्बाद हुई । राहत राशि से तो उधारी चुकाई और इलाज कराया… खेत, अनाज, घर, कुछ नहीं बचा।

    जिनके पास जमीन नहीं, आवेदन दें : सीओ

    अंचलाधिकारी आशुतोष कुमार कहते हैं कि जिनके पास जमीन नहीं है, वे आवेदन दें। सरकार के पास जमीन उपलब्ध है। जिनके पास जमीन नहीं है उन्हें जमीन दी जाएगी । लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि एक साल में कोई स्थायी पुनर्वास योजना जमीन पर नहीं उतरी।

    मो. कौसर का कहना है कि 25 गृहविहीन परिवारों को अभी तक सहायता राशि नहीं मिली है। मो. शकूर और राजकुमार मुखिया ने कहा कि जब बाढ़ जाती है तो भरोसा भी डूब जाता है। आज भी विस्थापित पीड़ित परिवार चारों तरफ पानी से घिरे हुए हैं।