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    गंगेश्वरनाथ महादेव मंदिर

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 23 Jul 2019 06:31 AM (IST)

    जाले प्रखंड मुख्यालय से 10 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम एवं कमतौल थाना से लगभग नौ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में रतनपुर पंचायत में अवस्थित है बाबा गंगेश्वर नाथ मंदिर।

    गंगेश्वरनाथ महादेव मंदिर

    दरभंगा । जाले प्रखंड मुख्यालय से 10 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम एवं कमतौल थाना से लगभग नौ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में रतनपुर पंचायत में अवस्थित है बाबा गंगेश्वर नाथ मंदिर। यह मंदिर बाबा गंगेश्वरस्थान के नाम से प्रसिद्ध है। जो कि मिथिलांचल का बाबाधाम माना जाता है। इतिहास : मंदिर का इतिहास करीब आठ सौ वर्ष पुराना है। 1160 से 1170 ई. के बीच राजा नान्यदेव के पुत्र गंगदेव ने अपने पिता की हार का बदला एवं कैदी बने पिता को मुक्त कराने के लिए रतनपुर गांव के घने जंगल में सैन्य तैयारी के क्रम में पूजा अर्चना के लिए शिवलिग की स्थापना की और एक मंदिर बनवाया। जल सुलभता के लिए तालाब खोदवाया। अब यह रजखानी पोखर के नाम से प्रसिद्ध है। गंगदेव ने सैन्य तैयारी पूर्ण कर बल्लाल सेन के राज्य पर हमला बोल जीत हासिल की। अपने पिता राजा नान्यदेव को मुक्त कराया। कहते हैं कि मंदिर की स्थापना व प्राणप्रतिष्ठा गंगदेव ने ही कराई थी इसलिए शिवालय का नाम गंगेश्वरस्थान पड़ा। एक अन्य मान्यता के मुताबिक, लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व क्षेत्र के प्रसादी टोल निवासी शिवभक्त गंगेश्वर मिश्र ने अपने स्वप्न के अनुसार मंदिर की स्थापना व प्राण प्रतिष्ठा कराई। कालांतर में उनके नाम पर मंदिर का नामाकरण गंगेश्वर स्थान हुआ।

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    विशेषता : मंदिर परिसर में गहरे तालाब से जल लेकर पूजा करने वालों की कतार प्रतिदिन लगी रहती है।

    वसंत पंचमी, नरक निवारण, चर्तुदर्शी व महाशिव रात्रि पर बाबा भोले नाथ का दरबार विशेष रूप से सजता है। श्रद्धालु भक्त सिमरिया, पहलेजाघाट, सुल्तानगंज आदि से गंगाजल लाकर जलाभिषेक करते हैं। सावन में भक्तों की भीड़ को देखते हुए विशेष व्यवस्था की जाती है। मान्यता है कि पोखर के जल का प्रयोग सिचाई में नहीं होता है। ऐसी धारणा है कि इसमें देवी शक्ति का अंश है।

    कोटस--

    सावन शिव की उपासना के लिए अतिमहत्वपूर्ण माना जाता है। सावन में धतुर, पुष्प, दुर्वा, कनेर, बेल पत्र, शिवलिग पर चढ़ाने से भगवान शिव को शीतलता मिलती है। श्रद्धा के साथ शिव का पूजन करने से मनोकामना जरूर पूरी होती है।

    --रामनरेश ठाकुर, शिवभक्त शिवलिग भगवान शंकर का प्रतीक है।शिव का अर्थ, कल्याणकारी होता है।लिग का अर्थ सृजन होता है।सर्जनहार के रूप में उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में शिवलिग की पूजा होती है।लिग के मूल में ब्रह्मा,मध्य में विष्णु व उपर प्रणवाख्य में महादेव स्थित है।प्राचीन काल से अनेक देशों में शिवलिग की उपासना प्रचलित थी।जल का अर्थ प्राण है।शिवलिग पर जल चढाने का अर्थ परम।तत्व में प्राण विसर्जन करना।स्फटिक लिग सर्वकामप्रद है।पारा लिग से धन,ज्ञान,ऐश्वर्य व सिद्धि की प्राप्ति होती है।

    रामकुमार झा

    वर्तमान पुजारी