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    Darbhanga News : दक्षिणी हिन्दी साहित्य के अध्ययन को अपने पठन-पाठन में शामिल किया जाना चाहिए

    By Mrityunjay Bhardwaj Edited By: Dharmendra Singh
    Updated: Fri, 28 Nov 2025 07:02 PM (IST)

    ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में ईश्वर करुण ने 'दक्षिण भारत का हिन्दी साहित्य' विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने दक्षिण और उत्तर भारतीय साहित्य के अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला और साहित्य के महत्व को बताया। करुण ने तमिलनाडु के साहित्य और अनुवादों की चर्चा करते हुए कहा कि साहित्य हमें मिलाता है। उन्होंने दक्षिणी हिन्दी साहित्य के अध्ययन को महत्वपूर्ण बताया, जिससे ज्ञान का विकास होगा।

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    सभा को संबोधित करते अतिथि । जागरण

    जागरण संवाददाता, दरभंगा । ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के तत्वाधान में तमिलनाडु हिन्दी अकादमी के महासचिव सह कवि ईश्वर करुण ने ‘दक्षिण भारत का हिन्दी साहित्य’ विषय पर एकल व्याख्यान दिया। इसकी अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार ने की।

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    करुण ने अपने व्याख्यान में दक्षिण भारतीय हिन्दी साहित्य और उत्तर भारतीय हिन्दी साहित्य के अंतर्संबंधों के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। उन्होंने तमिलनाडु के भूगोल में रचित हिन्दी साहित्य और अनूदित हिन्दी साहित्य की विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि साहित्य हमें मिलाता है।

    इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि का राजनीति में पदार्पण है, जो हिन्दी विरोध से हुआ था। उसी मुख्यमंत्री ने बाद में कम्ब रामायण के संस्कृत अनुवाद का लोकार्पण किया था। साथ ही संत कवि त्रिवल्लुअर रचित 1320 त्रिपुरल (दोहों) का हिन्दी अनुवाद सरकारी खर्च पर करवाया।

    राजनीति की विडंबना देखिए कि उस अनुदित पुस्तक का लोकार्पण पटना में करवाया गया। ऐसे बहुत से साहित्यकार हैं जिन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत के साहित्य के बीच सेतु का काम किया है। इस श्रृंखला में एम. सुन्दरन जैसे विद्वान का जिक्र लाजमी है, जिन्होंने दक्षिण में मीरा को तथा उत्तर में आंडाल को पहुंचाया।

    वहां के लोकप्रिय गीतकार व कवि वैद मुथू ने बहुत प्रयास करके अपनी कविताओं का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करवाया। उन्होंने आगे कहा कि दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा जिसके संस्थापक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी थे, उसके हिन्दी प्रचारकों में सवार्धिक संख्या बिहार से थी। तो यह भी एक कड़ी है जो हमें दक्षिण के हिन्दी साहित्य से जोड़ती है।

    आज दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा में हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एमफिल, पीएचडी तथा डीलिट करने की सुविधा उपलब्ध है। व्याख्यान के अंत में उन्होंने कहा कि दक्षिणी हिन्दी साहित्य के अध्ययन को अपने पठन-पाठन में हमें शामिल करना चाहिए। इससे हमारा नजरिया विकसित होगा तथा साहित्यिक सामासिकता का विकास होगा।

    वहां के वैष्णव साहित्य, संगम साहित्य, आधुनिक साहित्य में ऐसा बहुत कुछ है जिससे हमारे ज्ञान में वृद्धि होगी। इस अवसर पर विभागीय प्रो. विजय कुमार, डा. सुरेंद्र प्रसाद सुमन, डा. महेश प्रसाद सिन्हा, डा. मंजरी खरे भी मौजूद थीं।