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    बाढ़ की त्रासदी कम करने के लिए उचित प्रबंधन व सामुदायिक तैयारी पर एक साथ करना होगा काम, शोध में सामने आईं कई बातें

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 01:17 PM (IST)

    Bihar flood दरभंगा के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की ओर से शोध किए गए। इस दौरान पाया गया कि 82 प्रतिशत दरभंगा की जमीन बाढ़ से प्रभावित है। विशेषकर किरतपुर गौड़ाबौराम कुशेश्वरस्थान कुशेश्वरस्थान पूर्वी व घनश्यामपुर प्रखंड के अधिकांश गांवों में हमेशा इसका खतरा रहता है।

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    लाल जोन वाले लक्ष्मीनिया, रघुनाथपुर और बगरस नदी के पास हैं। शोधकर्ता डा. महविश अंजुम। सौ. स्वयं

     विमलेंदु कुमार, गौड़ाबौराम (दरभंगा)। बाढ़ से निपटने के लिए उचित प्रबंधन और सामुदायिक तैयारी को प्राथमिकता देने की जरूरत है। गरीबी, अशिक्षा, कमजोर ढांचा और सामाजिक असमानता बाढ़ के प्रभाव को और गहरा कर देती है। इसे दूर कर बाढ़ की त्रासदी कम कर सकते हैं।

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    बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में शोध

    इसके लिए संरचनात्मक और गैर संरचनात्मक, दोनों उपायों पर ध्यान देना होगा। इस तरह की बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की सहायक प्राध्यापिका डा. महविश अंजुम के नेतृत्व में दरभंगा के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के शोध में सामने आई हैं।

    बगरस गांव में ग्रामीणों से बातचीत करते शोधकर्ता

    बाढ़ संवेदनशीलता का आकलन

    शोध निष्कर्ष के आधार पर तैयार माडल केवल दरभंगा ही नहीं, पूरे भारत और अन्य विकासशील देशों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है। गांव स्तर पर बाढ़ संवेदनशीलता का आकलन कर सरकारें बेहतर नीतियां बना सकती हैं।

    यह शोध यूरोप से प्रकाशित प्रतिष्ठित पत्रिका 'कार्पेथियन जर्नल अर्थ एंड एनवायरमेंटल साइंसेज' में 21 जुलाई, 2025 को प्रकाशित किया गया था। शोध में बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी आलोक कुमार दुबे और आकाश कुमार ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    दरभंगा जिले में बाढ़ से हुई आर्थिक क्षति का आकलन का ग्राफ। सौ. शोधकर्ता

    प्रबंधन की तैयारी की कमी

    बिरौल अनुमंडल के रघुनाथपुर, लक्ष्मीनिया और बगरस गांव हर साल बाढ़ की भीषण मार झेलते हैं। मार्च-अप्रैल, 2024 के अध्ययन में पाया गया कि कमला बलान नदी के किनारे बसे होने, कमजोर बुनियादी ढांचे और आपदा प्रबंधन की तैयारी की कमी के कारण ये गांव सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं।

    दोहरी रणनीति को अपनाना होगा

    इसके विपरीत कल्याणडीह और बेर गांव अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां ग्रामीणों की तैयारी और सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहतर है। बाढ़ प्रबंधन और सामुदायिक तैयारी को प्राथमिकता नहीं दी गई तो रघुनाथपुर, लक्ष्मीनिया और बगरस जैसे गांव आने वाले वर्षों में और भी बड़ी तबाही का सामना करेंगे। बाढ़ से निपटने के लिए इस दोहरी रणनीति को अपनाना होगा।

    रघुनाथपुर में ग्रामीण से बातचीत

    2020 में बाढ़ से 4415 करोड़ की क्षति

    शोध के अनुसार, दरभंगा की 82 प्रतिशत जमीन बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में आती है। जिले के किरतपुर, गौड़ाबौराम, कुशेश्वरस्थान, कुशेश्वरस्थान पूर्वी और घनश्यामपुर प्रखंड हर साल सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। कई गांवों में बाढ़ का पानी तीन से पांच महीने तक जमा रहता है। वर्ष 2017, 2020 और 2021 दरभंगा के लिए सबसे विनाशकारी साबित हुए। 2020 में ही 4415 करोड़ रुपये से अधिक की आर्थिक क्षति हुई।

    गांव-स्तरीय बाढ़ का जोखिम आकलन

    अध्ययन में जीआइएस (जियोग्राफिक इंफार्मेशन सिस्टम) और 67 अलग-अलग संकेतकों के आधार पर बाढ़ संवेदनशीलता सूचकांक तैयार किया गया। जीआइएस सिर्फ रास्ता नहीं दिखाता, बल्कि यह भी बताता है कि उस जगह की जमीन, आबादी व प्राकृतिक स्थिति कैसी है।

    सूचकांक के आधार पर बाढ़ खतरा, वहां की जनसंख्या, संसाधन और बुनियादी ढांचे कितने असुरक्षित इसका आकलन किया गया। इससे स्पष्ट हुआ कि एक ही क्षेत्र में गांव-गांव की असुरक्षा का स्तर अलग-अलग है।

    प्रभाव के अनुसार अलग-अलग जोन

    शोध में प्रभावित गांवों को अलग-अलग जोन में रखा गया। बाढ़ के प्रभाव वाले लाल जोन में लक्ष्मीनिया, रघुनाथपुर और बगरस गांव हैं। ये गांव नदी के बिल्कुल पास हैं। लाल जोन में हर साल एक किलोमीटर दूरी तक बाढ़ आती है। पीला जोन थोड़ी दूर बसे गांव हैं। ये मध्यम स्तर पर प्रभावित होते हैं।

    दो किलोमीटर दूरी तक बाढ़ आती है। नदी से दूर हरे जोन में बसे गांव तुलनात्मक रूप से सुरक्षित पाए गए। इसमें कल्याण डीह और बेर जैसे गांव हैं। इससे पता चला कि दरभंगा की बाढ़ त्रासदी में जोखिम का स्तर सभी गांवों में समान नहीं रहता, बल्कि नदी से दूरी, भू-स्थिति और सामाजिक-आर्थिक तैयारी पर निर्भर करता है।

    इन उपायों से मिलेगी मदद

    बाढ़ से बचाव के संरचनात्मक उपाय में तटबंधों को मजबूत करने के साथ जलनिकासी व्यवस्था सुधारनी होगी। इससे बाढ़ आने पर आसानी से पानी निकल सकेगा। इसके अलावा बाढ़ प्रबंधन का प्रशिक्षण, महिलाओं की अधिक भागीदारी, वित्तीय साक्षरता और सामुदायिक तैयारी को प्रोत्साहन जैसे गैर संरचनात्मक उपाय करने होंगे।

    उम्मीद की किरण

    बगरस के ग्रामीण मनोज सिंह कहते हैं कि यह शोध न केवल एक चेतावनी है, बल्कि उम्मीद की किरण भी है। यदि सही रणनीति अपनाई जाए तो सबसे संवेदनशील गांव भी सुरक्षित बनाए जा सकते हैं। रघुनाथपुर के ओम प्रकाश राय कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन और नीतिगत कमियों से बाढ़ की चुनौती भविष्य में और बढ़ सकती है।

    हमारा मकसद केवल बाढ़ का भूगोल समझना नहीं था, बल्कि यह देखना भी था कि गांव-गांव में लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से कितने असुरक्षित हैं।

    डा. महविश अंजुम, सहायक प्राध्यापिका, भूगोल विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय