Bihar Election 2025: जातीय समीकरण से बाहर निकला दियारा, अब इन मुद्दों पर पड़ेगा वोट
पश्चिम चंपारण का दियारा, जो कभी डकैतों के खौफ में था, अब विकास की राह पर है। लोग बाढ़ और कटाव से परेशान हैं, लेकिन वे अब जातीय समीकरण से ऊपर उठकर विकास के मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं। दरभंगा के भेड़ियारही गांव के लोग आज भी पुल का इंतजार कर रहे हैं, पीढ़ियां गुजर गईं, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ।

बिहार चुनाव में क्या बोलती पब्लिक। फाइल फोटो
सुनील आनंद, बेतिया (पश्चिम चंपारण)। डकैतों के खौफ से दहलने वाला दियारा आज विकास के पहिए पर सवार है। सड़कों पर फर्राटा भरती बाइक और कार। सफेद रेत की जगह हरियाली। स्वरोजगार से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़तीं जीविका दीदियां और गलियों में साइकिल की घंटी टुनटुनाती छात्राओं की टोली...ये सुनहरे भविष्य के लिए गतिमान हैं।
भयमुक्त वातावरण में किसान और मेहनतकश मजदूर देर शाम बिना किसी भय के सरेह से घर लौटते हैं। इन सब के बीच मतदान करने वाले लोगों में बाढ़ और कटाव की पीड़ा है। हर साल नदी में समाती जमीन का दर्द है।
नेपाल से निकली गंडक नदी की बाढ़ और कटाव से पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर, बगहा, लौरिया एवं नौतन विधानसभा क्षेत्र के 25 गांवों की 50 हजार से अधिक आबादी प्रभावित है। दियारा क्षेत्र की राजनीति अब जातीय समीकरण की जटिलता से निकल विकास के मुद्दों पर चल रही है।
वोट बैंक नहीं, मुद्दों का मैदान दियारा
वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र में भितहा के नरहवा दियारे के छात्र प्रियेश कुमार यहां के समीकरण समझाते हैं। राजनीतिक पार्टियां विकास के वादे तो कर रही हैं, लेकिन दियारे के लोग अब भरोसे के साथ-साथ जवाबदेही भी मांग रहे हैं।
सिर्फ सड़क और बिजली नहीं, बल्कि स्थायी तटबंध और पुनर्वास नीति भी चाहिए। दियारा अब ‘वोट बैंक’ नहीं, बल्कि ‘मुद्दों का मैदान’ बन चुका है। बाढ़ और कटाव की स्थिति में अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की जरूरत है।
उम्मीदों के अधार पर ले रहे निर्णय
योगापट्टी के रमना दियारे के 80 वर्षीय मनोहर प्रसाद कहते हैं कि ये वही गांव हैं, जहां कभी डकैतों का गढ़ था। मेहनत मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने वाले मजदूरों के घरों में चूल्हे पर पक रही खिचड़ी को भी डकैत उठा ले जाते थे। अब दियारे में सभी लोग अमन-चैन से रह रहे हैं। उन्नतशील खेती हो रही है। बिजली पहुंच गई है। सारी सुविधाएं हैं, लेकिन बरसात शुरू होते ही यहां के लोगों की चिंता बढ़ जाती है।
कटान के कारण लोग बेघर हो जाते हैं। दियारे के लोग इससे मुक्ति चाहते हैं। नौतन विधानसभा क्षेत्र के बैजुआ के मदन यादव कहते हैं कि दियारे की राजनीति की हवा विकास के मुद्दों की ओर मुड़ रही है। वह दिन नहीं रहा, जब जातीय समीकरण और डकैतों का दबदबा तय करता था कि कौन जीतेगा, अब यहां जनता अपने अनुभवों और उम्मीदों के आधार पर निर्णय लेने लगी है।
युवाओं में राजनीति को लेकर जागरूकता बढ़ी है। मोबाइल और इंटरनेट मीडिया के माध्यम से वे जनप्रतिनिधियों से सीधे सवाल पूछ रहे हैं, आखिर कब तक टापू में रहेगा बैजुआ। पखनाहा में गंडक नदी पर पुल का निर्माण कब कराएंगे नेता जी।
नाव की प्रतीक्षा में लगता जितना समय उतने में तो हम पहुंच जाते मुजफ्फरपुर
जागरण संवाददाता, तारडीह (दरभंगा)। चुनावी समय है। वादे और आश्वासनों की झड़ी है। कहीं विकास तो कहीं जातीय समीकरण के साथ उम्मीदवार जनता के बीच पहुंच रहे हैं। इन सबके बीच एक ऐसा भी गांव है जहां के लोग आजादी के सात दशक से एक पुल की आस लगाए बैठे हैं।
हर चुनाव में यह सोचकर नाव से 10 किमी आना-जाना कर अपना बहुमूल्य वोटे देते हैं कि शायद इस बार चुने गए जनप्रतिनिधि उनकी पीड़ा समझें और कमला नदी पर एक पुल बना विकास की पटकथा लिखें, लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि पीढ़ियां गुजरती गईं।
सरकारें आती-जाती रहीं, लेकिन इनकी सुध किसी ने नहीं ली। दरभंगा के अलीनगर का भेड़ियारही गांव अब भी विकास से वंचित है। गांव में करीब छह सौ मतदाता हैं। कमला नदी पर पुल नहीं बनने से यहां के लोगों की जिंदगी नाव और चचरी के सहारे गुजर रही है।
गांव से बाहर कहीं भी आना-जाना हो इन्हें नाव का ही सहारा लेना पड़ता है। झंझारपुर के संतोष कुमार यादव किसी काम से भेड़ियारही आए थे। वापस जाने के लिए कमला तट पर नाव के इंतजार में खड़े थे। चुनावी चर्चा चल रही थी। इसी क्रम में कहने लगे- नाव के इंतजार में जितना वक्त लगता है, उतने में लोग मुजफ्फरपुर पहुंच जाते हैं।
यह पीड़ा दशकों से चली आ रही है। निर्मला गांव के रामविलास यादव भी नाव का इंतजार कर रहे थे। बोल पड़े, निर्मला, खैरी, बेलही, गुणाकरपुर, राजा खरबार, दैया खरवार और कश्याम, झंझारपुर जैसे गांवों से भेड़ियारही का बेटी-रोटी का रिश्ता है।
लोग अपने बेटे-बेटियों की शादी इस गांव में करते हैं। यहां के लोगों का आठ महीने चचरी पुल और चार महीने नाव के सहारे आवागमन होता है। बरसात में तो गांव से निकलना तक मुश्किल हो जाता है। चचरी पुल पानी में बह जाता है।
आश्वासन के पुल पर चलते रहे लोग
इस गांव में मतदान केंद्र नहीं है। बगल के देवना गांव में लोग मतदान करने जाते हैं। वैसे तो देवना गांव की दूरी एक किमी है, लेकिन आने-जाने का मार्ग नहीं है। नाव से नदी पार कर जाने और आने में 10 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। बावजूद इस गांव के लोग उत्साह से मतदान में हिस्सा लेते हैं। महिलाएं भी जाती हैं।
लोगों का कहना है मतदान उनका अधिकार है। भले ही जन प्रतिनिधि उनकी सुध न लें, लेकिन वे इस बार भी इस उम्मीद पर मतदान करेंगे कि कहीं नई सरकार उनकी पीड़ा सुन ले और पुल बनाने की पहल हो।
गांव में चुनावी माहौल पर चर्चा के बीच भोला यादव कहने लगे यहां सभी प्रमुख पार्टी के विधायक हुए, लेकिन किसी ने आज तक पुल निर्माण की दिशा में ठोस पहल नहीं की। निर्मला गांव के सेवानिवृत्त शिक्षक बाबूनारायण यादव ने बताया कि राजनीतिक दलों ने केवल वादे किए, निभाया किसी ने नहीं।

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