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    बिहार: यहां एंबुलेंस नहीं... एक खाट, चार कंधों पर टिकी जिंदगी; जानिए क्‍या है पूरा मामला

    By Jagran NewsEdited By: Prateek Jain
    Updated: Wed, 04 Oct 2023 11:38 PM (IST)

    Darbhanga News हिरणी पंचायत के सकिरना गांव में भीखन राम की पत्नी सरयुगिया देवी को दो-तीन दिनों से बुखार था। बुधवार को उनकी स्थिति गंभीर हो गई। मोहल्ले में तो उनके निधन तक की सूचना फैलने लगी। गांव के लोग जुटने लगे। इसी दौरान किसी ने नब्ज टटोली तो उनके जीवित होने का अनुभव हुआ। तत्काल उन्हें अस्पताल ले जाने की सलाह दी गई।

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    कुशेश्वरस्थन के सकिरना में बीमार मां को खटिया पर टांग कर पीएचसी ले जाते पुत्र।

    अरुण कुमार राय, कुशेश्वरस्थान (दरभंगा): हिरणी पंचायत के सकिरना गांव में भीखन राम की पत्नी सरयुगिया देवी को दो-तीन दिनों से बुखार था। बुधवार को उनकी स्थिति गंभीर हो गई। मोहल्ले में तो उनके निधन तक की सूचना फैलने लगी। गांव के लोग जुटने लगे।

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    इसी दौरान किसी ने नब्ज टटोली तो उनके जीवित होने का अनुभव हुआ। तत्काल उन्हें अस्पताल ले जाने की सलाह दी गई। अब खोज होने लगी एंबुलेंस की... 102 नंबर पर एंबुलेंस बुलाने के लिए फोन किया गया। आधा घंटा हो गया, जब एंबुलेंस नहीं आई तो लोगों ने सलाह दी, इन्हें जैसे भी हो तत्काल अस्पताल पहुंचाया जाए।

    सरयुगिया के चार बेटों ने आनन-फानन उन्हें खाट पर लेटाया और कंधे पर रखकर करीब आधा किलोमीटर दूर पैदल चलकर कुशेश्वरस्थान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। समय रहते उपचार हो जाने से उनकी जान बची। 

    स्वास्थ्य सुविधा की अनुपलब्धता, एंबुलेंस का समय से गांव में नहीं पहुंचना, सड़कों का नहीं होना ये तमाम मुद्दे हैं, जिसकी पीड़ा दरभंगा के कुशेश्वरस्थान के दर्जनों गांवों की बड़ी आबादी हर रोज झेल रही है।

    स्वास्थ्य आपातकाल में यह बड़े संकट के रूप में सामने आता है और तस्वीर सरयुगिया देवी की हालत जैसी सामने आती है। यहां के लोग ऐसी स्थिति में खाट और चार कंधों पर ही भरोसा करते हैं। 

    वादे और दावे फेल

    रामानंद बताते हैं कि हमलोग तो मां की स्थिति देखकर हिम्मत हार गए थे। गांव के लोगों की सलाह पर एंबुलेंस का इंतजार नहीं किया और खाट पर रखकर उन्हें समय से अस्पताल ले गए तो उनकी जान बच गई।

    अब सवाल यह है कि यह स्थिति क्यों है? दावों और वादों में स्वास्थ्य की तमाम सुविधाएं हैं लेकिन वास्तविकता खाट पर लादकर अस्पताल पहुंचाने की है। इसे आप क्या कहेंगे? सिस्टम ठीक नहीं होने से आज भी यहां के लोगों को मरीजों को खाट पर लादकर सरकारी या निजी अस्पतालों में इलाज के लिए ले जाना पड़ता है।  

    स्वास्थ्य सुविधा की राह में सड़क व नदी की बाधा 

    रामानंद के भाई सज्जन राम, सत्यम राम बताते हैं कि कुशेश्वरस्थान की छह पंचायतों की स्थिति बेहद गंभीर है। यहां के दियारा क्षेत्र में बसे गइजोरी, झाझा, हरिनाही, चौकिया, बलथरबा, लक्षमीनिया, इटहर, सुघराइन, जिरौना, गढ़ैयपुरा, महिसोट, इटहर, कोदरा, रकठी, सिमरटोका, बुढ़िया सुकराती, गोलमा डीह, कुंज भवन, सिमराही, सगरदीना, अरराही सहित एक दर्जनों से अधिक गांवों की करीब 50 हजार आबादी हर मौसम में पीड़ा झेलती है।

    ये गांव पक्की सड़क से नहीं जुड़े हैं। अगर कोई जुड़ा भी है तो प्रखंड मुख्यालय तक आने में वहां के लोगों को लंबी यात्रा करनी पड़ती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से जो सबसे नजदीक गांव है, उसकी भी दूरी तीन किलोमीटर है। जो सबसे दूर है, वह करीब 13 किलोमीटर दूर है।

    कई गांवों के सामने कमला, कमला बलान और कोसी की बाधा है। किसी की तबीयत बिगड़ने पर मरीज को खाट पर लादकर अस्पताल ले जाने की विवशता है।

    गंभीर मरीजों की तो अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है। एंबुलेंस वाले साफ कह देते हैं, गांव में पहुंचने का रास्ता नहीं है, नहीं आएंगे। निजी वाहन वाले भी कुछ ऐसा ही तर्क देते हैं, अब ऐसे में कोई क्या करेगा ?

    मांग पर किसी का ध्यान नहीं 

    महिसोट पंचायत के मुखिया राजेश पासवान का कहना है कि महिसोट, गढ़ैयपुरा, रहिपुरा गांव के लोगों को सड़क पर आने के लिए कमला नदी को पार करना पड़ता है। इस नदी में आसपास कोई पुल नहीं है, इसलिए इन गांवों तक वाहन का पहुंचना मुश्किल है।

    अप्रैल से जून तक नदी का पानी सूखने के बाद गांव तक वाहन किसी तरह पहुंच पाते हैं। सांसद और विधायक से पुल निर्माण करने की मांग किया जाता है, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता है।

    मरीजों को एंबुलेंस की सुविधा मिलती है। वैसे इसका को-ऑर्डिनेशन पटना से होता है, इसलिए आने में देर होती है, लेकिन आमतौर पर पीएचसी के चिकित्सक, आशा एवं एंबुलेंस के चालक के मोबाइल नंबर पर जब भी सीधे फोन होता है तो समय पर सुविधा मिल जाती है। डॉ. भगवान दास, चिकित्सा पदाधिकारी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, कुशेश्वरस्थान

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