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बिहार के इस संग्रहालय में रखे एक इंच के दुर्लभ रामायण व कुरान ...जानिए

बिहार के दरभंगा में एक संग्रहालय है - चंद्रधारी संग्रहालय। यहां केवल एक इंच के दुर्लभ रामायण, दुर्गा शप्तशती व कुरान रखे हुए हैं। यहां कई अन्य दुर्लभ वस्तुएं भी रखी हुई हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 14 Oct 2016 10:22 AM (IST)Updated: Fri, 14 Oct 2016 10:56 PM (IST)
बिहार के इस संग्रहालय में रखे एक इंच के दुर्लभ रामायण व कुरान ...जानिए
बिहार के इस संग्रहालय में रखे एक इंच के दुर्लभ रामायण व कुरान ...जानिए

पटना [अमित]। बिहार के दरभंगा में स्थित चंद्रधारी संग्रहालय में कई बहुमूल्य धराहरें सुरक्षित रखी गई हैं। यहां ब्रह्मा का दुर्लभ पांचजन्य शंख है। दाईं ओर मुंह वाला दक्षिणवर्ती शंख है। 24 तरह के हीरे हैं। एक ऐसी अंगूठी भी है, जिसे पहनने से शरीर के तापमान की जानकारी मिलती है। हीरा जडि़त शिव विद्या यंत्र, श्रीचक्र, एकमुखी रुद्राक्ष समेत सोने के कई सिक्के हैं।

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यहां की धरोहरों की लिस्ट यहीं पूरी नहीं होती। यहां महज एक इंच के रामायण, दुर्गा सप्तशती, व कुरान भी रखे हुए हैं। इन पुस्तकों को लेंस की मदद से ही पढ़ा जा सकता है। यहां कई अन्य दुर्लभ चीजें भी हैं, जिनको देखने से समृद्ध विरासत की स्मृतियां जीवंत हो उठती हैं।

आकर्षण का केंद्र एक इंच के दुर्लभ ग्रंथ

संग्रहालय की विशेष दीर्घा में रखी एक इंच की तीनों धार्मिक ग्रंथों (रामायण, दुर्गा सप्तशती व कुरान) की लंबाई और मोटाई मात्र एक इंच है। इनमें रामायण या दुर्गा सप्तशती के सभी अध्याय और कुरान की तमाम आयतें समाहित हैं। लेखक अचलाईनाथ योगी ने पूरे ग्रंथ को इस तरह से समायोजित किया है कि देखने वाले आश्चर्यचकित रह जाते हैं। इनका प्रकाशन बनारस के गोरखानंद पुस्तकालय से हुआ है।

हर आदमी के पास धार्मिक ग्रंथ हो, इसलिए इन्हें छोटे आकार में तैयार किया गया। पिछले चार दशक से कार्यरत शिवेश्वर चौधरी आंगतुकों को इन ग्रंथों की विशेषता बताते हैं। इनकी महत्ता को देखते हुए रासायनिक तरीके से संरक्षित करने की योजना बनी है।

संग्रहालयाध्यक्ष डॉ. सुधीर कुमार यादव बताते हैं कि एक इंच की पुस्तकों में धार्मिक ग्रंथों का समावेशन केवल यहीं देखने को मिलता है। इन दुर्लभ ग्रंथों को रासायनिक ढंग से संरक्षित करने की योजना है। उम्मीद है कि शीघ्र यह कार्य कर लिया जाएगा।

1957 में हुई थी स्थापना

चंद्रधारी संग्रहालय की स्थापना 7 दिसंबर 1957 को की गई। पहले इसका नाम मिथिला संग्रहालय पड़ा। बाद में मुख्य दाता मधुबनी जिले के रांटी ड्योढ़ी के जमींदार बाबू चंद्रधारी सिंह के नाम पर इसका नामकरण हुआ। उनसे प्राप्त कलाकृतियों व धरोहरों से इसका निर्माण कराया गया है।

यहां 11 दीर्घाओं में पुरातात्विक व कलात्मक कृतियां प्रदर्शित हैं। आम दर्शकों के लिए दस से चार बजे तक संग्रहालय खुला रहता है। फिलहाल, कोई शुल्क नहीं लगता।

कई हस्तियाें का हो चुका आगमन

संग्रहालय में देश की कई हस्तियों का आगमन हो चुका है। दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह खुद धरोहरों का अवलोकन कर चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, लोकनायक जयप्रकाश नारायण व उनकी पत्नी प्रभावती, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सह, कर्पूरी ठाकुर, पूर्व राज्यपाल डॉ. एआर किदवई, डॉ. एलपी शाही, जगन्नाथ कौशल आदि इसका मुआयना कर चुके हैं।


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