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    मिथिलांचल में वैदिक रीति से होता अतिथि सत्कार

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    Updated: Mon, 18 Feb 2013 09:34 AM (IST)

    दरभंगा, [राम प्रकाश झा]। वर्तमान दौर में जब लोगों के पास हाल-चाल पूछने का भी समय नहीं है, वैसे में मिथिलांचल में अतिथियों का स्वागत वैदिक रीति से होता है।

    स्वागत के लिए न केवल पूरा परिवार सक्रिय रहता है, बल्कि कुछ दिनों तक उसकी समीक्षा भी होती है। खासकर महिलाओं के बीच इसकी चर्चा खूब होती है कि अमुक अतिथि को हमने इतने व्यंजन खिलाए। वे जितना अधिक सत्कार करती हैं उतना ही गौरवान्वित होती हैं।

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    गृह्य सूत्र में उल्लिखित स्वागत के 16 प्रकारों में अधिकांश यहां अभी भी चलन में हैं। पटना के हारुण नगर कॉलोनी से इरशाद निजामी दरभंगा आए तो अपने दोस्त के यहां ठहरे। दो ही दिनों में हुए आतिथ्य सत्कार से गदगद थे। उन्होंने कहा ऐसा पहली बार देखा। वहीं, भागलपुर जिले के बभनगामा गांव निवासी सत्य प्रकाश जी मधुबनी जिले के सिसवाड़ गांव में किसी काम से दोस्त के रिश्तेदार के यहां ठहरे। उनका कहना था कि हम भी मिथिलांचल में जन्म लेते तो ऐसे ही संस्कार सीखते। शायद अगले जन्म में यह लालसा पूरी हो। संस्कृत विवि के व्याकरण विभाग के प्राध्यापक शशिनाथ झा कहते हैं कि हम अपनी अतिथि सत्कार की परंपरा पर गर्व करते हैं। अतिथियों का मधुपर्क से स्वागत किया जाता है।

    मिथिलांचल में अतिथियों को देवतुल्य समझा जाता है। गृह्यं सूत्र में पांच महायज्ञों का उल्लेख है। इसमें एक अतिथि यज्ञ भी शामिल है। यहां लोग अतिथि यज्ञ करते हैं न कि सत्कार। -डा. विद्येश्वर झाए कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विभागाध्यक्ष।

    सचार से होती है भोजन की सज्जा

    छप्पन भोग की व्यवस्था नहीं हो तो अतिथि सत्कार कैसा। भोजन की थाली के साथ व्यंजनों की कटोरियों की सज्जा देखते ही बनती है। मिथिलांचल में इसे सचार कहा जाता है। अतिथियों को यदि इसकी कमी हो और आसपास के लोगों ने देख लिया तो उपहास निश्चित है।

    दामाद होते हैं विष्णु रूप

    भगवान राम की शादी मिथिला में होने के कारण यहां दामाद के उत्कृष्ट सत्कार की प्रथा है। इन्हें अतिथियों में अतिविशिष्ट स्थान हासिल है। छप्पन भोग का वास्तविक स्वरूप उनके भोजन के दौरान दिखता है। महिलाएं एक-दूसरे से बातचीत के दौरान थाली के साथ दी गई कटोरियों की संख्या गिनाती हैं, न कि व्यंजनों की।

    तिलकोरक तरुआ तऽ हेबे टा करै

    अतिथियों को भोजन कराते समय तिलकोर (एक पौधे का पत्ता) का तरुआ नहीं रहे तो सचार को पूर्ण नहीं माना जाता। इसका मिथिलांचल में खास महत्व है। वैसे इसके औषधीय गुण भी हैं।

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