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    बक्सर में विश्वामित्र से मिला श्रीराम को ज्ञान

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    Updated: Fri, 13 Nov 2015 08:21 PM (IST)

    बक्सर। यूंही बक्सर को ज्ञान विज्ञान का तपोवन नहीं कहा गया है। महर्षि विश्वामित्र के तप-बल का ही

    बक्सर। यूंही बक्सर को ज्ञान विज्ञान का तपोवन नहीं कहा गया है। महर्षि विश्वामित्र के तप-बल का ही प्रभाव था कि मर्यादा पुरूषोत्तम राम व अनुज लक्ष्मण ने, उनसे वीरोचित शिक्षा ग्रहण करके राक्षसी वृत्तियों का संहार किया था। धार्मिक पुस्तकों में बक्सर को महर्षि विश्वामित्र की जन्मस्थली तो नहीं बताया गया है, परंतु इस स्थल को उनका तपोभूमि कहा गया है।

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    तपोस्थली के कारण नाम पड़ा सिद्धाश्रम

    कहते हैं 88 हजार ऋषियों-मुनियों की तपोस्थली होने के कारण ही पूर्वकाल में बक्सर का नाम सिद्धाश्रम पड़ा। बक्सर ही वह पुण्य भूमि है, जहां विश्व के प्रथम तत्वदर्शी, वैज्ञानिक, मंत्रद्रष्टा व सृष्टि के संस्थापक महर्षि विश्वामित्र ने अपना आश्रम बनाया था। इस बाबत साहित्यकार रामेश्वर प्रसाद वर्मा बताते हैं कि महर्षि विश्वामित्र भारत की प्रचलित व्यवस्था के विरूद्ध क्रांतिकारी कदम उठाने वाले प्रथम व्यक्ति तो थे ही, उनके द्वारा स्थापित सिद्धाश्रम विश्व का पहला शैक्षणिक संस्थान भी था। उन्हीं के तपबल के प्रभाव से प्रभु श्रीराम-लक्ष्मण को शस्त्रनीति, धर्मनीति, कर्मनीति व राजनीति शास्त्र का विशेष ज्ञान प्राप्त हुआ। जहां दोनों भाइयों ने मिलकर राक्षसी वृत्ति का संहार करते हुए मानवीय आदर्शों के कीर्तिमान के रूप में रामराज्य की स्थापना की थी।

    कार्तिक शुक्लपक्ष तृतीया को हुआ था जन्म

    आचार्य रणधीर ओझा ने बताया कि शास्त्रों में राजा गाधि के पुत्र महर्षि विश्वामित्र का जन्म कार्तिक शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि में वर्णित है। खास बात यह है कि क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होते हुए भी राज्य-काज, संपदा व ऐश्वर्य से बढ़कर उन्होंने तप-बल को महत्व दिया। उन्होंने बताया कि धार्मिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि राज ऋषि होते हुए भी गुरूवर वशिष्ठ ने इन्हें ब्रह्मर्षि की उपाधि दी। बक्सर इनका कार्य स्थल रहा है और यहीं वे जप-तप, यज्ञ, योग आदि किया करते थे। ¨कवदंती है कि राम-राज्य की स्थापना भी यही से हुई थी।

    पर्यटन मानचित्र पर उपेक्षित

    महर्षि विश्वामित्र व भगवान श्रीराम से जुड़े होने के बावजूद बक्सर को पर्यटन मानचित्र पर अबतक नहीं लाया जा सका है। हालांकि, रामायण काल से जुड़े तथ्यों के आधार पर यहां कई परंपराओं का निर्वहन आज भी आस्था पूर्वक होता है। इनमें पंचकोश परिक्रमा व सिय-पिय मिलन समारोह आदि ऐसे भव्य धार्मिक आयोजन हैं, जिसमें देशभर के लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। परंतु, पर्यटन के मुताबिक सुविधाएं नहीं मिलने के कारण यहां केवल परंपरा निभा तुरंत वापस चले जाते हैं।