60-70 के दशक का अनोखा चुनाव प्रचार, गाते-बजाते गलियों में वोट मांगते थे नेताजी
60 और 70 के दशक में चुनाव प्रचार का तरीका बहुत ही अलग था। नेता गलियों में गा-बजाकर वोट मांगते थे। वे जनता से सीधे संवाद करते, उनकी समस्याएं सुनते और समाधान का वादा करते थे। गीतों और संगीत का खूब इस्तेमाल होता था, जिससे माहौल खुशनुमा बनता था। नेताजी पैदल चलकर लोगों के करीब जाते थे। आज का आधुनिक प्रचार इससे बिलकुल अलग है।
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60-70 के दशक का अनोखा चुनाव प्रचार
अशोक कुमार सिंह, बक्सर। बात उस दौर की है जब आज की तरह न तो इंटरनेट का युग था और न कैसेट टेप रिकॉर्डर ही प्रचलन में आया था। तब प्रत्याशी और उनके समर्थक टोलियां बनाकर गली मोहल्लों में गाते बजाते लोगों के घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करते और वोटरों को हैंडबिल देते हुए अपने लिए वोट मांगते थे।
60 से 70 की दशक के दौरान न तो संचार के इतने साधन थे और न ही आवागमन के ही पर्याप्त साधन मौजूद थे। तब होने वाले चुनाव के दौरान लोगों को वोटरों तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए खुद ही मेहनत करनी पड़ती थी। इसके लिए प्रत्याशी समर्थकों की अलग अलग कई टोलियां बनाई जाती थी और यह टोलियां गांव से लेकर शहर की गलियों में घुमकर अपने प्रत्याशी का चुनाव प्रचार करती थी।
चुनाव प्रचार में निकली टोलियां हारमोनियम और ढोलक गर्दन में टांगे गलियों से गाते बजाते निकलती थी और लोग घरों से बाहर निकलकर आते थे तो उन्हें हैंडबिल देते हुए अपने प्रत्याशी के समर्थन में वोट डालने का आग्रह किया जाता था।
ज्यादातर दूरियां पैदल ही तय करनी पड़ती
उपरोक्त बातें बता रहे हैं अपने दौर में इस तरह से चुनाव प्रचार में शामिल हो चुके सिविल लाइन निवासी प्रवीण कुमार सिंह। कहते हैं कि तब आवगमन के साधन भी आज की तरह पर्याप्त नहीं होने के कारण ज्यादातर दूरियां पैदल ही तय करनी पड़ती थी।
चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी के पक्ष में किसी स्थानीय गीतकार या कवि से गीत लिखवाकर उसके लिए धुन बनाया जाता था। फिर हर टोली में गाने के लिए एक गायक की जरूरत होती थी जिसके लिए अपने आसपास के माहौल से ही किसी गाने वाले लड़के को चुनकर टोली में घूमते हुए उससे प्रत्याशी के समर्थन में वोट डालने के लिए गीत गवाते हुए टोलियां गलियों में घूमा करती थी।
बताते हैं कि तब के दौर में आज की तरह प्रतिद्वंदी के प्रति द्वेष की इतनी भावना भी नहीं रहती थी। प्रतिद्वंदी प्रत्याशी भी जरूरत पड़ने पर दूसरे प्रत्याशी की विभिन्न तरीकों से मदद किया करते थे। तब के दौर में न तो कोई सीडी थी और न ही कैसेट टेप रिकार्डर ही मौजूद था जिससे एक बार गीत गाकर रिकॉर्ड करते हुए उसे बार-बार बजाया जा सके।
इसके लिए टोली के गायक को हर बार नए सिरे से ही गाना पड़ता था। तब चुनाव के दौरान कोई खून खराबा भी नहीं होता था।

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