बक्सर में धान की फसल पर तना छेदक और मिलीबग का कहर, किसानों की बढ़ी चिंता
बक्सर के डुमरांव में धान की फसल तना छेदक धड़छेदक और मिलीबग कीटों से प्रभावित है। किसान अपनी मेहनत की कमाई बर्बाद होते देख परेशान हैं। तना छेदक के लिए कारटाप हाइड्रोक्लोराइड और मिलीबग के लिए कार्बोफ्यूरान के छिड़काव का सुझाव दिया गया है। कृषि विभाग जागरूकता अभियान चला रहा है।

संवाद सहयोगी, डुमरांव (बक्सर)। इन दिनों धान की फसल तना छेदक, धड़छेदक और मिलीबग नामक कीटों के प्रकोप से जूझ रही है। यह कीट किसानों के अथक परिश्रम और मेहनत की कमाई पर पानी फेर रहे हैं। खेतों में लगे इन कीटों का प्रकोप इतना तेज है कि एक बार लगने के बाद यह पूरी फसल में फैल जाता है और धान को ठूंठ में बदल देता है। ग्रामीण इलाके में किसान इन कीटों को ‘चतरा’ के नाम से जानते हैं। किसान इसे धान के लिए सबसे घातक कीट मानते हैं।
किसानों का कहना है कि पटवन और खाद डालकर वे किसी तरह फसल को तैयार किए, लेकिन अचानक बढ़ते कीटों प्रकोप ने उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। किसानों के अनुसार, तना छेदक की सूंडियां हल्के पीले शरीर और नारंगी-पीले सिर वाली होती हैं, जबकि मादा सूंडी के पंख पीले रंग के होते हैं। ये कीट धान की गोभ में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है और पौधा सूखने लगता है। परिणामस्वरूप धान का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होता है।
स्थानीय किसान सूरज प्रसाद, भरत चौबे, राघवेंद्र तिवारी, प्रेम कुमार महतो, बबन यादव और कपिलमुनि पांडेय सहित कई लोगों ने बताया कि इस समय धान की खेती पर संकट मंडरा रहा है। खेतों में जगह-जगह ठूंठ दिखाई देने लगे हैं और लगातार नुकसान हो रहा है। किसानों के अनुसार, यदि समय रहते बचाव नहीं किया गया तो फसल बर्बाद हो जाएगी।
कृषि वैज्ञानिक ने बताए बचाव के उपाय
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. देवकरण ने बताया कि यह कीट फसल के लिए बेहद खतरनाक है। ऐसे में किसानों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यदि प्रति वर्ग मीटर खेत में पांच प्रतिशत से अधिक गोभ मृत दिखे, तो किसानों को तुरंत रसायनों का प्रयोग करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि तना छेदक की रोकथाम के लिए कारटाप हाइड्रोक्लोराइड (फोर-जी) 18 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से तीन से पांच सेंटीमीटर स्थिर पानी में छिड़काव करना चाहिए। वहीं, मिलीबग के प्रकोप से बचाव के लिए कार्बोफ्यूरान थ्री-जी 10 किलोग्राम प्रति एकड़ तीन से पांच सेंटीमीटर स्थिर पानी में घोलकर छिड़काव करना प्रभावी माना जाता है।
कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि यदि किसान समय रहते इन उपायों को अपनाते हैं, तो काफी हद तक फसल को सुरक्षित किया जा सकता है। कृषि विभाग भी किसानों को जागरूक करने के लिए लगातार अभियान चला रहा है।
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