Bihar Election: राजनीति में कहावत बन गए श्यामलाल, बार-बार दल बदलने पर भी नहीं खुला जीत का खाता
श्यामलाल, राजनीति में बार-बार दल बदलने के बावजूद सफल नहीं हो पाए और उनकी कहानी एक कहावत बन गई है। उन्होंने कई पार्टियाँ बदलीं, पर किसी में भी स्थायी सफलता नहीं मिली। जनता का समर्थन न मिलने से उनकी राजनीतिक रणनीति विफल रही। यह कहानी उन लोगों के लिए एक सबक है जो राजनीति में जल्दी सफलता चाहते हैं, क्योंकि दल बदलना हमेशा फायदेमंद नहीं होता।

बिहार विधानसभा चुनाव
जागरण संवाददाता, बक्सर। वर्ष 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election)से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी ने बक्सर सीट के लिए प्रोफेसर सुखदा पांडेय को अपना उम्मीदवार बनाया। उनका बक्सर से पहले का कोई विशेष नाता नहीं था। टिकट मिलने के बाद वह अचानक बक्सर आईं और पहले ही प्रयास में चुनाव जीत गईं।
यह उदाहरण बक्सर की राजनीति में अक्सर दिया जाता है। लेकिन इससे उलट भी एक उदाहरण है, जो बक्सर की राजनीति की चर्चा करते हुए अक्सर सामने आता है। यह उदाहरण है श्यामलाल कुशवाह का।
अगर कोई नेता अलग-अलग स्तर के चुनाव में बार-बार प्रयास के बाद भी सफलता नहीं हासिल कर पाता है, तो बक्सर के लोग उसकी तुलना श्यामलाल से करते हैं। बक्सर के लोगों ने 2007-08 के आसपास एक नए नेता का नाम सुना।
श्याम लाल सिंह कुशवाहा तब के समय के अनुसार पैसे के लिहाज से मजबूत नेता थे और बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गए। राजनीतिक जीवन में आते ही उन्होंने धड़ाधड़ कई चुनाव लड़े, लोकसभा से लेकर विधानसभा तक।
हर चुनाव में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई, लेकिन हर बार दल बदलते रहे। दूसरे स्थान तक पहुंचने के बाद भी चुनाव जीतने की उनकी हसरत कभी पूरी नहीं हो पाई। पहली बार बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव लड़े थे। तब करीब 20% मत हासिल करते हुए तीसरे स्थान पर रहे थे।
वर्ष 2010 में विधानसभा चुनाव हुआ तो राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर बक्सर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार बने और 22% मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे।
2014 में वह जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े और 13% मत पाकर चौथे स्थान पर रहे। इसके बाद भी उनकी हसरत तो रही, लेकिन किसी महत्वपूर्ण दल से टिकट नहीं मिलने के कारण उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।

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