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    कड़ी मेहनत की बदौलत ओलंपिक की दुनिया के चमकते सितारे बने थे बक्सर के शिवनाथ

    चंद्रकांत निराला बक्सर। अभावों की भट्ठी से तपकर निकले पक्के सोने की तरह थे शिवनाथ सिंह। उन्होंने कड़ी मेहनत की बदौलत जो मुकाम हासिल किया वह आज भी काबिलेतारीफ है।

    By JagranEdited By: Updated: Sat, 10 Jul 2021 10:22 PM (IST)
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    कड़ी मेहनत की बदौलत ओलंपिक की दुनिया के चमकते सितारे बने थे बक्सर के शिवनाथ

    चंद्रकांत निराला, बक्सर। अभावों की भट्ठी से तपकर निकले पक्के सोने की तरह थे शिवनाथ सिंह। जिन्होंने कर्तव्यनिष्ठा तथा कड़ी मेहनत के बदौलत सफलता की, जो लकीर खींची है उसे पार करना अब तक किसी के लिए संभव नहीं हो सका है। यह कहना है सदर प्रखंड के मंझरिया गांव के निवासी रहे दिवंगत ओलंपियन शिवनाथ सिंह के भाई बच्चन सिंह उर्फ चंद्रशेखर सिंह का।

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    शिवनाथ सिंह जैसे ओलंपियन की बदौलत ही बक्सर का नाम न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि, अंतराष्ट्रीय फलक पर भी खूब चमका। वर्ष 1970 से 80 के बीच ट्रैक और फील्ड पर लंबी दूरी की दौड़ में दुनियाभर में तहलका मचाने वाले शिवनाथ सिंह बक्सर ने दियारा के बालू पर दौड़ की प्रैक्टिस की और एथलेटिक्स में ऐसा मुकाम हासिल किया कि तेहरान एशियाड में पांच हजार मीटर की स्पर्धा में नंगे पांव दौड़ देश के लिए गोल्ड मेडल जीत लिया। आज ही के दिन 11 जुलाई 1946 को उनका जन्म हुआ था और 6 जून 2003 को 57 वर्ष की अल्प आयु में हेपेटाइटिस के कारण महान खिलाड़ी दुनिया को अलविदा कह चले गए। महान शिवनाथ के पिता भरदुल सिंह मंझरिया गांव के किसान थे। दो बहन और सात भाइयों में पांचवें नंबर पर रहे शिवनाथ सिंह का बचपन अभावों में बीता। उनके भाई बच्चन सिंह सिंह बताते हैं कि उस जमाने में कुश्ती बाक्सिग आदि खेल चर्चा में हुआ करते थे। उनकी गांव की टीम का फुटबाल में दबदबा था। लेकिन, शिवनाथ ने दौड़ को अपनी प्राथमिकता बनाया। गंगा की रेत पर भी वह मीलों सरपट भागते थे। दौड़ के बल पर वह 18 वर्ष की अल्पायु में सेना में चुने गए और वहीं से उनके लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में अपनी क्षमता दिखाने का मौका मिला। बाद में उन्हें टाटा स्टील ने अपने यहां उन्हें मानद नियुक्ति दी।

    गांव के विश्वामित्र सिंह और चंद्रमा सिंह कहते हैं कि 70 के दशक में शिवनाथ सिंह जैसा लंबी दूरी का एथलीट एशिया में नहीं था। 1974 के तेहरान एशियाड में 5000 मीटर की दौड़ स्पर्धा में 14 मिनट साढ़े 20 सेकंड का समय निकाल उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था। उसी एशियाड में उन्होंने 10 हजार मीटर की दौड़ में रजत जीता था। दोनों स्पर्धाओं में वे नंगे पांव दौड़े। पांच हजार मीटर और 10 हजार मीटर में राष्ट्रीय रिकार्ड आज भी स्व. शिवनाथ के नाम है। सेना में नायब सूबेदार रहते हुए राष्ट्रपति से विशेष सेवा मेडल पाने वाले वे बिहार के इकलौते एथलीट हैं। बाद में उन्हें अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा गया। घर में ही भुला दिए गए शिवनाथ :

    आज खेल में बिहार इतना पिछड़ चुका है कि अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में प्रदेश की नुमाइंदगी शायद ही दिखती है, लेकिन जिस बिहारी ने खेल के दम पर दुनियाभर में देश का नाम रौशन किया, उन्हें सरकार याद भी नहीं करती। उनके भाई बच्चन सिंह ने बताया कि पटना के एक स्टेडियम का नामकरण महान ओलंपियन के नाम पर करने के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री तक से अनुरोध किया लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। आज मंझरिया को छोड़ बक्सर में भी अब लोग इस महान खिलाड़ी को भूल गए हैं। एथलीट शिवनाथ सिंह की कुछ उपलब्धियां

    . 1970 में मिलिट्री पूर्व कमान में 5000 मीटर के दौड़ में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

    . 1971 क्रॉसकंट्री दौड़ में नेशनल रिकॉर्ड के साथ प्रथम स्थान।

    . 1973 में प्रथम एशियन एथलेटिक्स मनीला में 5000 व 10000 मीटर स्पर्धाओं में रजत पदक ।

    . 1974 में तेहरान एशियाड में 5000 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक एवं 10000 मीटर में रजत पदक।

    . 1975 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित एवं उसी साल 5000 मीटर के राष्ट्रीय चैंपियन भी रहे।

    . 1975 में द्वितीय एशियन एथलेटिक्स सियोल में दोनों स्पर्धाओं में रजत पदक

    . 1976 मांट्रियल ओलंपिक मैराथन दौड़ (42 किमी) में 11वां स्थान।

    . 1978 में एडिनबर्ग, कनाडा में राष्ट्रमंडल खेलो में भारतीय दल का नेतृत्व किया।

    . 1980 के मॉस्को ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया