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कम लागत में ज्यादा मुनाफे की राह है शैवाल

खेती की खस्ता हालत भारी नुकसान तथा अधर में लटके भविष्य के साथ कर्ज में दबे किसान अगर चाहें तो उन्हें महज कुछ हजार रुपयों के निवेश से प्रति माह लाखों रुपए की आमदनी हो सकती है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 05:24 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 05:24 PM (IST)
कम लागत में ज्यादा मुनाफे की राह है शैवाल
कम लागत में ज्यादा मुनाफे की राह है शैवाल

बक्सर । खेती की खस्ता हालत भारी नुकसान तथा अधर में लटके भविष्य के साथ कर्ज में दबे किसान अगर चाहें तो उन्हें महज कुछ हजार रुपयों के निवेश से प्रति माह लाखों रुपए की आमदनी हो सकती है। हालांकि, किसानों के बीच में इस बात को लेकर जागरूकता न होने के कारण आज भी किसान आत्महत्या जैसा दुखदाई कदम उठाने को मजबूर होते हैं। ऐसे में बक्सर के रहने वाले दो युवाओं ने किसानी की इस नई तकनीक को लोगों के बीच पहुंचाने का कार्य शुरू किया है। जिसमें किसानों को कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने के मुफ्त प्रशिक्षण के साथ-साथ उनके उत्पादन को सही बाजार तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।

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मूल रूप से बक्सर के सिविल लाइंस मोहल्ले के निवासी राजेश कुमार तथा सतीश कुमार ¨सह का पारिवारिक परिवेश भले ही किसानी का ना रहा हो, लेकिन किसानों के कष्ट से वे बखूबी वाकिफ थे। किसानों की दुर्दशा उन्हें अंदर ही अंदर किसानों के लिए कुछ करने को प्रेरित करते रहे नतीजा यह हुआ कि उन्होंने राजस्थान के नोहर जिले के हनुमान गढ़ के लीफ ग्रीन बायोटेक संस्था से संपर्क किया, जहां से उन्होंने नील हरित शैवाल जैसे सुपर फूड के बारे में जानकारी ली और सारीमपुर में अपना प्लांट स्थापित कर दिया। इस प्लान में उन्होंने किसानों को कम संसाधन में होने वाले इस बेहतरीन मुनाफे से भरी खेती की तकनीक से अवगत कराने का कार्य शुरू किया, जहां किसान अब इस खेती से जुड़कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने की तकनीक सीख रहे हैं। क्या है नील हरित शैवाल शैवाल का उत्पादन करने वाले राजेश कुमार बताते हैं कि नील हरित शैवाल में करीब 60 फ़ीसदी प्रोटीन होता है, इसके 1 ग्राम की मात्रा से छोटे बच्चों के दिन भर की प्रोटीन की जरूरतें पूरी हो जाती है। वहीं इसके 5 ग्राम की मात्रा का सेवन करने के बाद कोई भी वयस्क व्यक्ति अपने दिन भर के पोषण को पा लेता है। उन्होंने बताया कि कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए भी नील हरित शैवाल उन्हें कुपोषण से मुक्ति दिलाने में कारगर साबित हो सकता है। उन्होंने बताया कि यह पौष्टिक आहार होने के साथ-साथ इसका उपयोग कई दवाओं के निर्माण और सौंदर्य प्रसाधन में भी किया जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यूनिसेफ तथा डब्ल्यूएचओ से इसे सुपर ़फूड का दर्जा प्रदान किया है। असामान्य मानसून में भी हो सकती है अच्छी उपज व्यावसायिक स्तर पर इसकी खेती धीरे-धीरे भारत के किसानों विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र-प्रदेश, कर्नाटक सहित देश के 15 राज्यों में की जा रही है। उन्होंने बताया कि भारत के किसानों को असामान्य मानसून के बीच नील हरित शैवाल की खेती एक निश्चित बाजार और एक नियमित आय का वैकल्पिक स्त्रोत उपलब्ध कराती है। उन्होंने बताया कि इस शैवाल से प्रोटीन, आयरन, कॉपर और विटामिन्स की पूर्ति की जाती है। साथ ही इस शैवाल पॉवडर में ओमेगा 6 और ओमेगा 3 फैटी एसिड की मौजूदगी भी होती है। उन्होंने बताया कि यह 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले क्षेत्रों में यह अच्छी तरह बढ़ता है। इसे किसी भी सुविधाजनक आकार के सीमेंट या प्लास्टिक के टैंक में उगाया जा सकता है। एक एकड़ में उत्पादन से कमा सकते हैं हर माह एक लाख रुपये उन्होंने बताया कि 10 बाई 10 के एक सीमेंटेड टैंक में एक किलोग्राम शैवाल के बीज के साथ इसकी खेती को शुरू किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि लगभग 1 एकड़ भूमि में अगर नील हरित शैवाल की खेती की जाए तो किसान प्रति माह एक लाख रुपए तक की आमदनी कर सकता है। हालांकि, इसके लिए उन्हें अपनी जमीन पर उत्पादन टैंक बनवाना होगा, जिसमें चार-पांच लाख का निवेश करना होगा। छोटे स्तर पर कम जगह में भी यह शुरू किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि तैयार शैवाल पाउडर के खरीदार के रूप में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कंपनियां मौजूद हैं, जो पंद्रह सौ रुपये प्रति किलो से लेकर 2 ह•ार रुपये प्रति किलो की दर से उत्पादित शैवाल की खरीदारी करती हैं। जबकि, वही कंपनियां इस शैवाल पाउडर को खुदरा बाजार में 45 सौ रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचती हैं।


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