तंत्र-साधना के लिए विख्यात है राज-राजेश्वरी मंदिर
शारदीय व वासंतिक नवरात्र में कलश स्थापित कर शक्ति स्वरूपा की पूजा-अर्चना यहां की परंपरा।
बक्सर। शारदीय व वासंतिक नवरात्र में कलश स्थापित कर शक्ति स्वरूपा की पूजा-अर्चना यहां की परंपरा है। लेकिन, नगर में एक ऐसा भी मंदिर है। जिसमें कलश स्थापित नहीं होता है एवं न ही आम देवी-देवताओं की तरह पूजा-पाठ होती है। तंत्र साधना के लिए प्रख्यात राज-राजेश्वरी मंदिर में साधकों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। नगर के लाला टोली रोड़ स्थित महामाया, महाविद्या, दक्षिणेश्वरी, राज राजेश्वरी, त्रिपुर सुंदरी एवं मां भगवती मंदिर इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है।
वासंतिक नवरात्र में सुबह-शाम की पूजा व आरती के साथ ही देर रात तक तंत्र विद्या की सिद्धि के लिए इस मंदिर में साधक अपनी साधना में लीन रहते हैं। ऐसा मानना है कि इस मंदिर में साधकों की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है। निस्तब्ध निशा में मूर्तियों से आती है आवाज इस राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर की सबसे अनोखी मान्यता यह है कि निस्तब्ध निशा में मूर्तियों से बातचीत की आवाजें आती है। मध्य रात्रि में नागरिक जब यहां से गुजरते हैं तो उन्हें मूर्तियों की आवाज सुनाई पड़ती है। पुजारी पं.किरण मिश्र ने इस बात की पुष्टि की है। नगर के कई लोगों ने भी रात में मंदिर से कानाफूसी होने की आवाज सुनने की बात कही है। ऐसा लगता है मानों निस्तब्ध निशा में मूर्तियां आपस में बातें करती हैं। मंदिर में स्थापित है तीन महाविद्याएं राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर के प्रति साधकों की आस्था यूं ही नहीं है। इस मंदिर में प्रधान देवी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी के साथ ही बंग्लामुखी देवी, तारा माता के अलावा पांचों भैरव में दत्तात्रेय भैरव, बटुक भैरव, अन्नपूर्णा भैरव, काल भैरव व मातंगी भैरव की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर में काली, त्रिपुर भैरवी, द्युमावती, तारा, छिन्नमस्तिके, षोड़सी, मातंगड़ी, कमला, उग्र तारा एवं भुवनेश्वरी आदि दस महाविद्याएं भी हैं। मंदिर तांत्रिक पूजा करने वालों के लिए आस्था व विश्वास का केन्द्र है। चार सौ साल वर्ष पूर्व हुई थी मंदिर की स्थापना जाने-माने तांत्रिक पं. भवानी मिश्र द्वारा लगभग 400 वर्ष पूर्व इस मंदिर की स्थापना की गई थी। तब से आज तक इस मंदिर में उन्हीं के परिवार के सदस्य पुजारी की भूमिका निभाते आ रहे हैं। पुजारी किरण शंकर प्रकाश ने बताया कि पूर्णत: तांत्रिक इस मंदिर में कलश स्थापना नहीं किया जाता है। बल्कि, तंत्र साधना से ही यहां माता की प्राण-प्रतिष्ठा की गई है। श्रद्धालु भक्तजन यहां सप्तशती का पाठ कर मन्नतें मांगते हैं। यहीं नहीं, इस मंदिर में सूखे मेवे का ही प्रसाद चढ़ाया जाता है।
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