महाशिवरात्रि पर्व को शिवालयों में जोर-शोर से शुरू हुई तैयारी
बक्सर सनातन धर्म में फाल्गुन के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का प

बक्सर : सनातन धर्म में फाल्गुन के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जो एक मार्च दिन मंगलवार को है। इस मौके पर शिवालयों में हवन पूजन के विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। वहीं, नगर में शिव बारात की अलौकिक शोभा यात्रा भी निकाली जाएगी। इसकी तैयारी अभी से विभिन्न शिवालयों में जोर-शोर से शुरू हो गई है। महाशिवरात्रि को लेकर शिवालयों में तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गई हैं।
इस बाबत पातालेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी रामेश्वर नाथ पंडित ने बताया कि वाराणसी पंचांग के अनुसार सोमवार की मध्य रात में 1.59 बजे तक त्रयोदशी तिथि है। इसके बाद चतुर्दशी तिथि भोग कर रही है, जो मंगलवार की रात 12.17 बजे तक रह रही है। मनीषियों ने कहा है कि 60 दंड भोग करने के बाद त्रयोदशी-चतुर्दशी युक्त महाशिवरात्रि का व्रत माना जाता है, सो यह सर्वसम्मत एक मार्च को मनाई जाएगी। तिथि के महत्व को लेकर उन्होंने बताया कि पुराणों में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह संबंधित कथा का उल्लेख किया गया है, जिसमें शिव-पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि के दिन ही संपन्न हुआ था। प्रत्येक वर्ष की भांति इस साल भी शहर में भगवान शिव की बारात धूमधाम से निकाली जाएगी। यह शोभा यात्रा यहां के द्वय संस्थानों द्वारा निकाली जाती है। गाजे-बाजे के साथ निकलने वाली इस यात्रा में हाथी, ऊंट, पशु-पक्षी, भूत-प्रेत के प्रतीकात्मक रूप सहित विभिन्न देवताओं की झांकियों समेत काफी संख्या में श्रद्धालु भी मौजूद रहते हैं। इस दिन गंगा में स्नान किए जाने का भी विशेष महत्व है। कहते हैं कि बक्सर के उत्तरायणी गंगा में स्नान किये जाने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसी को लेकर हजारों की संख्या में श्रद्धालु गंगा स्नान को उमड़ते हैं। शिवलिग पर जलाभिषेक का है विशेष महत्व
पौराणिक मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवजी अग्नि ज्योर्तिलिग के रूप में प्रकट हुए थे। इस दिन जो भी भक्त सच्चे मन से शिवलिग का अभिषेक या जल चढ़ाते हैं, उन्हें महादेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसे लेकर यहां के प्राचीन रामेश्वरनाथ मंदिर, नाथबाबा मंदिर, पातालेश्वर महादेव मंदिर, गौरी शंकर मंदिर, सुमेश्वरनाथ मंदिर, सिध्नाथेश्वर मंदिर, संगमेश्वर मंदिर आदि शिवालयों में जलाभिषेक को श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ जुटती है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि की रात को ही भगवान शिवशंकर और माता शक्ति का विवाह भी संपन्न हुआ था। क्या है कथा
कथा अनुसार शिव को अपना वर बनाने के लिए माता पार्वती ने बहुत कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या के चलते सर्वत्र हाहाकार मच गया। बड़े-बड़े पर्वतों की नींव डगमगाने लगी। ये देख भोले बाबा ने अपनी आंखें खोली और पार्वती से आह्वान किया कि वो किसी समृद्ध राजकुमार से शादी करें। शिव ने इस बात पर भी जोर दिया कि एक तपस्वी के साथ रहना आसान नहीं है। परंतु, माता पार्वती अडग रही कि वो विवाह भगवान शिव से ही करेंगी। पार्वतीजी की ये जिद देख भोलेनाथ पिघल गए और उनसे विवाह करने के लिए राजी हो गए। ऐसे कर सकते हैं पूजन
मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर शिवलिग पर चढ़ाना चाहिए। शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ओम नम: शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही, महाशिवरात्रि पर रात्रि जागरण का भी विधान है।
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